आर्यखण्ड अब हो अखण्ड,अवतार धरा मे! आजाये
बहुत हो गया घनानन्द ,अब और धरा को ना खाये
जोड़ सके जो भारत को ,समृद्व भेश वो मांग रहा हॅूं
मै! तो बस भारत माता से, चाणक्य देष में मांग रहा हूं।
अखण्ड राष्ट्र की परिभाषा, हम को इतिहास बताता है
भू-मण्डल भारत ही होगा ,ये शास्त्र सदा से गाता है
धर्म शास्त्र भी कहते हैं, ये जगत ब्रह्म सा नेक बने
उपनिषद वेद की भाषा मे! बस, मानवता ही एक बने
कहीं बलि, कर्ण कहीं परषूराम कहीं हरीषचंद्र से दानी थे
ना जाने कितने ऋषि, मुनि,चाणक्य, विदुर से ज्ञानी थे
चन्द्रशेखर,सूभाष और भगत सिंह मरते हैं यहां जूनूना मे
क्यो! उसी राष्ट्र मे! आज यहां बहता है पानी खूनो मे!
मुझे बताओ भारत के अब कितने टुकडे़ काटोगे
सरदार पटेल के सपनो को किस्तो में किटना बांटोगे
कहीं छत्तीसगढ़ कहीं उत्तराखंड कहीं झारखंड बुंदेलखंड
मैं आग धधकती देख रहा हॅूं हर प्रदेष में, महा प्रचण्ड
पहले भी सभी रियासत थी, हमने कुछ राज्य बनाये थे
कुछ दुष्मन थे इस भारत के जो हमसे से सदा पराये थे
अंग्रेज हूकूमत भारत के दो टुकडे़ करके चली गयी
हो आर्यखंण्ड ऐसा अखंण्ड , इस आषा से संधर्ष करे
जो मातृ-भूमि के चरणो में निज ईश शीश को सदा धरे
ये चार युगों का चिन्तन है, बष, आर्य-खण्ड हो देव-धरा
ये मृत्यु-लोक से उपर है ,जहां काल तपो से सदा मरा
अखण्ड राष्ट्रª के भावों की ये आग षिखर पर टांग रहा हूं।
मैं तो बस भारत माता से, चाणक्य देष में मांग रहा हूं।