गुरुवार, 18 जून 2015

मोदी जी की सुन लेते!

कोई भी देश बंग्लादेश की टीम को हलके में लेने की गलती न करें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी बंग्लादेश यात्रा के दौरान यह बात कही। मगर उन्हें क्या पता था किउनके देश की टीम ही बंग्लादेश को हलके में लेगी और नतीजा। हार। प्रधानमंत्री मोदी की यह बात सच साबित  हो रही है। पहले बंग्लादेशी बल्लेबाजों ने टीम इंडिया के गेंदबाजों की खूब धुनाई की और स्कोर 300 के पार पहुंचा दिया। भारत ने शुरूआत जरूर सधी हुई की मगर अच्छी शुरूआत के बावजूद टीम बिखर गई। कोई भी खिलाड़ी टिक कर खेल नही सका। पूरा श्रेय बंग्लादेश के गेंदबाजों को देना चाहिए जिन्होंने न सिर्फ संतुलित गेंदबाजी की बल्कि जरूरत के मुताबिक विकेट भी निकाले। विराट कोहली तो आए और गए। कुल मिलाकर बंग्लादेश की टीम ने मौदान में अच्छा प्रदर्शन किया। क्रिकेट में हार जीत लगी रहती है। मगर भारतीय टीम के लिए यह सोचना जरूरी है कि आखिर क्यों बंग्लादेश जैसी टीम भी उनपर भारी पड़ गई। मोदी जी ने तो पहले ही कह दिया था बंग्लादेश को हलके में ना लें। हमारे खिलाड़ियों ने उनकी सुनी नही। नतीजा हार! 

बुधवार, 17 जून 2015

दुविधा में बीजेपी!

बीजेपी मुश्किल में है। अपने दो बड़े नेताओं सुषमा और वसंधरा पर लगे आरोपों का जवाब देते नही बन रहा है। ललित मोदी से रिश्तों को लेकर बीजपी कुछ भी बोलने की स्थिति में नही। प्रधानमंत्री मोदी को अपने मंत्र न खाउंगा, न खाने दूंगा के आधार पर इस मामले पर फैसला  लेना चाहिए। ललित मोदी की मदद करना न सिर्फ गैर कानूनी था बल्कि नेता अपने रसूक का इस्तेमाल कैसे करतें हैं उसका यह जीता जागता उहाहरण है। यही बीजेपी ने संसद के कितने सत्रो को सिर्फ इसलिए नही चलने दिया की भ्रष्टाचार में लिप्त उसके कई मंत्रियों का इस्तीफा दिया जाए। यूपीए में कलमाड़ी राजा, बंसल और अश्विनी कुमार सबका इस्तीफा हुआ। मगर अब बीजेपी की चुप्पी समझ में नही आ रही। सबसे ज्यादा चैंकाया प्रधानमंत्री ने जो मामले पर मौन है। मैं यकिन के साथ कह सकता हूं कि अगर बाकि मामलों पर भी जांच हो तो ऐसे मामलों की बाड़ आ जाएगी। क्योंकि ज्यादातर उच्च पदों पर बैठे लोग अपनों के लिए अपने विशेषाधिकार का गलत फायदा उठातें हैं। कई मुख्यमंत्रियों की पत्नियां तो सिर्फ टांसफर पोस्ंिटग के धंधों में लगी रही। उनके बेटों के तो कहने ही क्या। यह पूरी कहना इस हाथ ले, उस हाथ दे के इर्दगिर्द घूम रही है। क्या प्रधानमंत्री इंसाफ करेंगे? क्या सरकार ललित मोदी पर देश में मुकदमा चलाएगी? एक देश के भगोड़े और गंभीर आरोप झेल रहे देश को दूसरा देश कैसे शरण दे सकता है। ब्रिटेन की सरकार को इस बारे में सख्त संदेश देना चाहिए। आखिर क्यों सरकार ललित मोदी पर मेहरबान है? जरा पता लगाइये की नेताओं ने अपने बेटों को कैसे सेट कर रखा है। अब देखतें है कि इन दो बड़े नेताओं की छुटटी कर किसी गंभीर अपराध में लिप्त आरोपी करने के जुर्म में मुकदमा क्यों न दर्ज किया जाए। 

सोमवार, 15 जून 2015

सुषमा ने मोदी की मदद क्यों की!

सुषमा स्वराज ने ललित मोदी की मदद क्यों की। मानवीय आधार पर या किसी और आधार पर। बस यही सवाल हर कोई पूछ रहा है। सुषमा स्वाराज का कहना है कि कैंसर पीड़ित पत्नी के कैंसेंट पेपर साइन करने के लिए टैवल वीजा डाक्यूमेंट दिलाने में मदद की। मगर जब बात उनके पति और बेटी की आती है तो मामले उतना सीधा नहीं लगता जितने सामान्य तरीके से सुषमा स्वराज बता रहीं हैं। क्योंकि ललित मोदी पर गंभीर आरोप है और ईडी उन्हें तलाश रहा है। इस बात की जानकारी होने के बावजूद सुषमा ने मोदी की मदद की कांग्रेस अगर आज हमलावर है तो बीजेपी को भी उन दिनों की याद करनी चाहिए जब रेलमंत्री बंसल और कानून मंत्री अश्विनी कुमार के इस्तीफे को लेकर बीजेपी ने सड़क से संसद तक कोहराम मचा दिया। बीजेपी अध्यक्ष का ये कहना कि क्वात्रोक्कि और एंडरसन मललब बोफोर्स और भोपाल गैस कांड के आरोपियों को कांग्रेसियों ने भगाया। इस तर्क के आधार पर कल कोई यह कहने लगे की कांग्रेस की सरकार ने लाखों करोड़ों के घोटाले किये और हमने हजारों में कर लिये तो क्या गलत। दरअसल इस समस्या की जड़ में है मंत्रियों के पास मौजूद
विशेषाधिकार जो गाहे बगाहे वो अपने परिजनों और रिश्तेदारों को मदद करने के लिए इस्तेमाल में लाते हैं। प्रणव मुखर्जी के नेतृत्व वाली समिति ने इनको खत्म करने की सिफारिश की थी। यूपीए इसपर फैसला नही कर पाई। क्या मोदी इस पर गौर करेंगे? दूसरा ये पूरी कहानी बीजेपी के अंदरूनी झगड़े की भी है। मसलन कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान एक मंत्री मीडिया के जरिये दूसरे मंत्री को नीचा दिखाने में लगे रहते थे। इस पुरानी बीमारी के शिकार मोदी के मंत्री भी हैं। बहरहाल असली सच देश के सामने आना चाहिए। आप भी अपनी राय साझा करें।

रविवार, 14 जून 2015

चुनाव सुधार !

क्या आप जानतें है की भारत में अबू सलेम और दाउद इब्राहिम भी चुनाव लड़ सकतें है। ऐसा मुमकिन है। 2006 में मुख्य चुनाव आयुक्त ने यही चिंता प्रधानमंत्री के सामने रखी थी। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बाद की निचली अदालत से 2 साल की सजा़ या उससे ज्यादा में सदस्यता स्वतः रदद हो जाएगी कुछ उम्मीद जगी। जो आज आप कैंडिडेट की शैक्षिक योग्यता और आर्थिक स्थिति के बारे में जान पातें है, उसे भी सुप्रीम कोर्ट ने लागू किया। राजनेता संसद के जरिये इस आदेश पलटने की कोशिश भी की। मगर सुप्रीम कोर्ट नही माना। चुनाव सुधार। देश की सबसे बड़ी जरूरत। मित्रों अगर राजनीति की चाल सुधर जाए तो बाकी चीजें अपने आप दुरूस्त हो जाऐंगी। मगर इस राजनीति में बदलाव कोई लाना ही नही चाहता। ऐसा नहीं की सरकारों को मालूम नही की करना क्या है। सवाल है कि करेगा कौन? दर्जनों समितियों की सिफारिशें धूल फांक रही है। 1975 से अब तक। मगर राजनीति है की सुधरने का नाम ही नही लेती। मसलन
1975   तारकुन्डे समिति 
1990   गोस्वामी समिति
1993   एनएन वोहरा समिति
1998   इंद्रजीत गुप्ता समिति
1999   विधि आयोग की रिपोर्ट
2001  संवीधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए बनी राष्टीय समीक्षा समिति 
2004  चुनाव आयोग की सिफारिशें
2008  विधि मंत्रालय से जुड़ी स्थाई समिति की रिपोर्ट
2008  दूसरा प्रशासनिक सुधार अयोग
समितियों का खेल जबरदस्त हुआ। मगर 4 दशक बीत गए मगर सरकारों का एक ही रटारटाया बयान। सहमति बनाने के लिए प्रयासरत हैं?

अखिलेश का राजधर्म!

उत्तरप्रदेश में एक प्रत्रकार को जिंदा जलाने के आरोप अखिलेश यादव के मंत्री पर लगें हंै। पत्रकार ने मृत्यु पूर्व अपने बयान में यह साफ कर दिया की मंत्री के इशारे पर पुलिस कर्मियों ने उसे जिंदा जला दिया। मगर अब तक आरोपी मंत्री को पुलिस ने गिरफतार नही किया है। इसके पीछे वजह साफ है। रामस्वरूप वर्मा सपा की वोर्ट बैंक 
राजनीति में सटीक बैठते हैं। शाहजहांपुर में तकरीबन 1.5 लाख लोध वोट हैं। इसपर आरोपी मंत्री की पकड़ है।बस यही प्रश्न सपा सरकार को परेशान कर रहा है। आरटीओ की पीटाई करने वाला मंत्री कैलाश चैरसिया पुलिस की पकड़ से बाहर है। यूपी की पुलिस पूरी तरह से राजनीति की गिरफत में है। मतलब वोट बैंक के लालच में हमारे नेता या पार्टी किसी भी हद तक जा सकतें हैं। मगर अखिलेश यादव जैसे युवा नेता से यह उम्मीद नही थी। उनके कई मंत्रियों पर गंभीर आरोप है। मगर सब खुले में घूम रहें है। जब अखिलेश राजधर्म का पालन नही कर रहें है तो जनता वोट धर्म से उन्हें सबक सिखाएगी।

बिहार चुनाव! अवसरवाद की पराकाष्ठा

बिहार में जनता परिवार और एनडीए आमने सामने होंगे। या यूं कहिए कि अवसरवाद की राजनीति के धुरंधर जनता से विकास के नाम पर वोट मागेंगे। लालू के जंगलराज के लाफ लड़ने वाले नीतीश कुमार अचानक उनके अनुज बन गऐं हैं। दिल मिले हो या नही मगर मजबूरी ने मिलने को बाध्य कर दिया। बीजेपी के लिए बिहार का दंगल साख का सवाल है। चूंकि दिल्ली की ऐतिहासिक हार के बाद एक और हार का मतलब उससे बेहतर भला कौन जान सकता है? बीजेपी में मोदी से खार खाए कई नेता मौके का इंतजार कर रहें हैं। इसमें कोई दो राय नही की नीतीश ने बिहार में बदलाव की कोशिश की थी। मगर बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद वो अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहे। मांझी, पासवान और कुशवाहा एनडीए के घटकदल हैं। पप्पू जुड़ने की तिकड़म पर काम कर रहें हैं। मगर बिहार का दंगल राजनीतिक दलों के साथ साथ कई नेताओं के राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा। सवाल यह कि क्या अवसरवाद की राजनीति करने वाले नेताओं को जनता सबक सिखाएगी?

शनिवार, 13 जून 2015

बिन विचारे जो करे, सो पाछे पछताये!

बीजेपी के नेताओं का अतिउत्साह आप्रेशन म्यांमार में सरकार की किरकिरी कर गया। देश चाहे छोटा हो या बड़ा उसकी संप्रभुता उसके लिए सर्वोपरीहोती है। जब भारत में आप राज्यों के कामकाज में दखल नही दे सकते तो दूसरे देशों के बारे में सावर्जनिक टिप्पणी या यूं कहना की उनके जमीन पर जाकर उग्रवादियों पर हमला किया, किसी भी देश की संप्रभुता का मजाक बनाना है। प्रधानमंत्री कीविदेश नीति के पंचामृत मसलन संवाद, संस्कृति, सम्मान,सुरक्षा और समृद्धि के भी यह खिलाफ है। रक्षा मंत्री मनोहर परिकर ने अपने बयान से एक और भूचाल ला दिया कि आंतकियों को आतंकियों से मिटायाजाए। इन बयानों ने पाकिस्तान को बैठे बैठाये मुददा दे दिया। कुछ इसी तरह की गलती कोस्टगार्ड मामले में अलग अगल बयानों से हुई। एक तरफ मोदी सार्क देशों को साधने में लगे हैं। दुनिया में भारत की साख बड़ा रहें हैं। नतीजतन पाकिस्तान  सार्क में अलग थलग पड़ गया है। उसपर हमारे बचकाने बयान भारी पड़ रहें हैं। अब बात 56 इंच के सीने की।सीना आपका 56 का हो या 156 इंच का। क्या आप पाकिस्तान के खिलाफ इस तरह के आपरेशन को अंजाम दे सकतें हैं? मुंबई हमलों का मुख्य अरोपी जकीउर रहमान लखवी और मास्टरमाइंड हाफिज सईद खुले आम पाकिस्तान में घूम रहें है। भारत के खिलाफ आग उगल रहें है। इनके खिलाफ कोई कुछ नही करता। दाउद को पकड़कर क्यों नही लाया जाता। दूसरे देश की छोड़िये आपके श्रीनगर में आए दिन अलगाववादी भारत विरोधी गतिविधियों को हवा देने और पाकिस्तान जिन्दाबार के नारे लगाते में जुटे हैं। हम उनका क्या बिगाड़ पाए। एक एनसीटीसी तो आप राज्यों के मत के बिना बना नही सकते दूसरे देश की संप्रभुता के चीरहरण का अधिकार आपको किसने दिया। राज्यवर्धन सिंह राठौर से इसका जवाब मांगा जाना चाहिए। कहने का तात्पर्य कोई भी बयान समय पात्र और परिस्थिति को ध्यान में रखकर दिया जाए। आपका अतिउत्साह देश के शक्ति बोध को नुकसान पहुंचा रहा है। 

शुक्रवार, 12 जून 2015

दिल्ली का कूड़ा कांड!

दिल्ली को कूड़ा कूड़ा करने के लिए जिम्मेदार कौन है? आप, बीजेपी या कांग्रेस? वैसे देखा जाए तो सबसे ज्यादा जिम्मेदार कांग्रेस है। क्योंकि कांग्रेस ने जब एमसीडी का विभाजन किया तो इस बात का आंकलन नही किया की इनके राजस्व के स्रोत क्या होंगे?पिछले 8 साल में बीजेपी ने इसे भ्रष्टाचार का अड्डा बना डाला। उसके नेताओं ने इसे दुधारू गया की तरह दुहा। अब सवाल की एमसीडी की कमाई का साधन क्या है। एमसीडी का कमाई का साधन है हाउस टैक्स टोल टैक्स और विज्ञापन। ऐसे में दक्षिण दिल्ली की कमाई का मुकाबला पूर्वी दिल्ली से नही किया जा सकता। तो पूर्वी दिल्ली में यह हालात आने तय थे। तीसरा आम आदमी पार्टी ने इस समस्या को गंभीरत से नही लिया। बीजेपी औरआप इस मामले में गेंद एक दूसरे के पाले में डालते रहें। बीजेपी ने तो प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छता अभियान का भी मान नही रखा। ये वही नेता हैं जो 2 अक्टूबर को झाड़ू के साथ फोटो खिंचाने के लिए आतुर दिखे। तीनों दल सिर्फ और सिर्फ राजीनीति कर रहें हैं। हाईकोर्ट को मामले में दखल देना पड़ा। लानत है ऐसी राजनीति पर जो आम आदमी के दर्द के न समझती है न समझना चाहती। उन्हें सिर्फ राजनीति करनी है। आज आप के नेता सफाई कर रहें है। तोमर और सोमनाथ कांड से हुई किरकिरी की भरपाई की झूटी कोशिशें। बीजेपी जानबूझकर आप के लिए हर रोजनई मुश्किल खड़ी कर रही है। और आप झगड़ा सुलझाने के बजाय लड़ने को आतुर है। इन नेताओं की राजनीति और अहंकार ने जनता का कूड़ा कर दिया है। न प्रधानमंत्री टीम इंडिया के भाव का परिचय दे रहें है ना आप के नेता र्धर्य का। मुश्किल यह है की हालात आने वाले दिनों में और खराब होंगे। क्योकि यह वेतन संकट आगे भी जारी रहेगा। दिल्ली का कूड़ा कूड़ा होना तय है। आप भी अपने सुझाव अवश्य साझा करें।