मंगलवार, 10 जुलाई 2018

आबादी पर रोक जरूरी।


जनसंख्या के लिहाज से भारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बडा देश है। आज विश्व की 17 फीसदी आबादी भारत में रहती है। भूभाग के लिहाज के हमारे पास 2.5 फीसदी जमीन है। 4 फीसदी जल संसाधन है। लेकिन बीमारी में हमारी भागीदारी 20 फीसदी के आसपास है।  विश्व जनसंख्या दिवस की शुरूआत आज से 23 साल पहले 1987 से हुई। जनसंख्या नियन्त्रण का संदेश पहुंचाना ही मात्र उददेश्य था। भारत में कई राज्यों की आबादी कई देशों के बराबर है। मसलन देश के सबसे बडे राज्य उत्तर प्रदेश की आबादी ब्राजील के बराबर है जबकि बिहार की जर्मनी और थाइलैण्ड की दिल्ली के बराबर है। एक अनुमान के मुताबिक हम 15 से 20 साल में एक उत्तर प्रदेश भारत में जोड़ते है। रिपोर्ट के अनुसार अगर आबादी इसी रफतार से बढ़ती रही तो  भारत की आबादी 2050 तक 200 करोड़ को पार कर जाएगी। जरूरत है समय रहते कुछ गंभीर कदम उठाने की। अगर कर पाए तो  आबादी में 30 से 40 करोड तक की कमी ला सकते है।  देश में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, ध्यप्रदेश और असम जैसे राज्य  50 फीसदी तक आबादी बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। यह सारे राज्य भी मानव विकास सूचकांक में पीछे है। भारत में परिवार नियोजन को लेकर कई कार्य किये जा रहे है। मगर सरकार को कोई बड़ी कामयाबी अब तक नही मिली है। आज मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में भी तेजी से कमी आ रही है।  मगर एक बडी आबादी आज भी छोटा परिवार सुखी परिवार के क्या फायदे है इसको समझ नही पा रही है। यही कारण है कि भूखमरी बड़ रही है, जमीन पर लगातार बोझ बडा रहा है, खेती योग्य भूमि गैर कृषि कामों के उपयोग में लाई जा रही है। यानि जनसंख्या बढ़ने के साथ साथ कई समस्याऐं बढ़ रही है। आज 28 फीसदी आबादी शहरों में निवास कर रही है जबकि 2030 तक इसके 40 फीसदी होने का अनुमान है। और आगे चलकर 50 फीसदी आबादी शहरों में रहेगी। अहम सवाल यह है कि आने वाले समय में हम अपने शहरों के 50 फीसदी आबादी के लिए तैयार कर पाऐंगे।