tag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.comments2023-08-25T06:53:00.035-07:00न्यूज़ नेशनरमेश भट्टhttp://www.blogger.com/profile/03999746860464195738noreply@blogger.comBlogger232125tag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-51695490131957770242015-09-21T05:54:24.808-07:002015-09-21T05:54:24.808-07:00Sir apki debate dekhi kisaano pr.Dekhkr acha lga k...Sir apki debate dekhi kisaano pr.Dekhkr acha lga ki humare desh me patrakarita jeevit hai ab bhi.Aapne sbhi ko bolne ka pura mauka and unhe yaad bhi dilaya ki apni seema me rehkr wo kisano k lye kya kya kr skte the.Humara elite ENGLISH SECTION which feels watching english debates in which the anchor puts words in mouth of debaters must be seen to gain KNOWLEDGE,I want to say to them that THIS IS CALLED BEING AN ANCHOR AND CONDUCTING A HEALTHY DEBATE which really raises the issue.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09664653236517361738noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-38140372493937445062015-08-07T13:07:34.279-07:002015-08-07T13:07:34.279-07:00मुझे लगता है कि मोदी भी मनमोहन की तरह हैं। उनके भी...मुझे लगता है कि मोदी भी मनमोहन की तरह हैं। उनके भी आस पास दागी हैं जैसे मनमोहन जी के पास थेDhirendra garghttps://www.blogger.com/profile/15402877962031992910noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-54321624966404814052015-08-07T13:07:17.151-07:002015-08-07T13:07:17.151-07:00मुझे लगता है कि मोदी भी मनमोहन की तरह हैं। उनके भी...मुझे लगता है कि मोदी भी मनमोहन की तरह हैं। उनके भी आस पास दागी हैं जैसे मनमोहन जी के पास थेDhirendra garghttps://www.blogger.com/profile/15402877962031992910noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-36123003323897100572015-06-21T04:29:49.408-07:002015-06-21T04:29:49.408-07:00उसी अपराध में कोतवाल निलंबित और उसी आरोप में मत्री...उसी अपराध में कोतवाल निलंबित और उसी आरोप में मत्री खुल्ला घूम रहा हैDhirendra garghttps://www.blogger.com/profile/15402877962031992910noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-54585653751153449112015-01-10T20:18:53.156-08:002015-01-10T20:18:53.156-08:00अखण्ड भारत
यंहा रावण , यंहा लका , यंहा हनुमान का ड...अखण्ड भारत<br />यंहा रावण , यंहा लका , यंहा हनुमान का डंका<br />यंहा राहू , यंहा केतू , यंहा , सीता , यंहा सेतू<br />यंहा धरती, यंहा अबर, यंहा विष्णु का पीताम्बर<br />यंहा रघुवंश के राजे , यंहा ब्रह्माण्ड के बाजे<br />यंहा है भाव की दुनिया, यंहा है चाव की दुनिया<br />यंहा सत्पथ के वो मानव, यंहा है योगभ्रष्ट दानव<br />यंहा चंदा , यंहा तारे , यंहा है सप्त - ऋषि प्यारे<br />यंहा भानू की तप गर्मी यंहा सत्युग के सत्कर्मी<br />यंहा योगी , यंहा साधू, यंहा औघड़ , यंहा जादू<br />यंहा वेदो की वाणी है यंहा सत् पथ के प्राणी है<br />यंहा द्वापर, यंहा त्रेता, यहा है वेद के वेत्ता<br />यंहा वेदान्त गीता है , सनातन धर्म जीता है<br />यंहा मथुरा, यंहा काशी, यंहा ब्रहमाण्ड, के वाशी<br />यंहा सागर यंहा दरिया,यंहा हैं इन्द्र की परियाँ<br />यंहा जोगी, यंहा जगल, यंहा सिंहल, यंहा पिंघल<br />यंहा श्रवण का स्रोता जल,यंहा सम्राट सतपथ नल<br />यंहा पूजा , यंहा भक्ति , यंहा सृष्टि अनासक्ति<br />यंहा है ब्रह्म की माया, यहा है कल्प, की छाया<br />यंहा है राम की लीला ,यंहा शबरी, यंहा शिला<br />यंहा अकाश की वाणी यंहा उस धुन के है प्राणी<br />यंहा है सप्त ऋषियों की तपस्या की धरा क्या है<br />यंहा है सप्त श्रोतो का जल, जंगल जरा क्या है<br />यंहा है सात चक्रों का अन्तर मे‘ त्वरा’ क्या है<br />यंहा है सात अरूणो के भेदों में भरा क्या है<br />हमे ब्रहमाण्ड की भूमि घर जैसी ही भाती थी<br />सनातन धर्म की गाथा चराचर सृष्टि गाती थी<br />हमारा वेद सेतु है, मुक्ति पथ बनाने का<br />यंहा गीता बताती है पथिक पथ आने जाने का<br />हमारे योग में चिन्तन, हमारे भोग में चिन्तन<br />हमारे रोग मे चिन्तन, हर सहयोग मे चिन्तन<br />यंहा हर युग में चिन्तन है,यंहा रग-रग,में चिन्तन है<br />जन्म चिन्तन का कारण है,यंहा चिन्तन,उदाहरण है<br />हम हैं जीव, उस युग के प्रमाणों में नही जीते<br />हमारे शिव की सरिता का गंगाजल सभी पीते<br />ये है कुम्भ की नगरी जंहा अमृत बरसता है<br />यंहा अवतार लेने को ब्रह्मा भी तरसता है।।<br />राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)<br />मो0 9897399815<br />rajendrakikalam.blogspot.comaaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-32105642697339576042014-04-20T08:48:01.510-07:002014-04-20T08:48:01.510-07:00शुक्रिया सर,
कई जानकारी प्राप्त हुई .शुक्रिया सर,<br /><br />कई जानकारी प्राप्त हुई .rj creativityhttps://www.blogger.com/profile/06425430032593856184noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-5525662154358221782014-03-27T07:20:11.239-07:002014-03-27T07:20:11.239-07:00 न्याय में अन्याय
न्यायालयो की आड में ... न्याय में अन्याय<br />न्यायालयो की आड में कानून गिरता जा रहा है<br />राजनितिक भेश मे! मुजरिम षिखर को पा रहा है<br />खूनी खडा है सामने जज पूछता है कौन है<br />मजबूर है कानून देखो बिन गवाह के मौन है<br /><br />वकील तो हर भ्रश्टता बात को भी जानते है<br />कब कहां कैसे हुआ बारीकियों को छानते हैं<br />असत्य मेंऔर सत्य मे! क्या फर्क है पहचानते हैं पालकर कर अन्याय को ये कैसे सीना तानते है<br /><br />कानून भी न्यायालयो!की नालियो से बह रहे है!<br />हम नही अखवार, टी वी.चैनलो! से कह रहे है! <br />खुलकर दलाली हो रही हैे कचहरी परिवेश मे!<br />अब तो जज भी मुजरिमो! सा दिख रहा है देष मे!<br /><br />न्याय तो मजबूर है बन्द आंख है बष सुन रहा है<br />तर्क बे सिर पैर के ना जाने कैसे गुन रहा है<br />अन्त में सच्चाई की ही मौत हेाती जायेगी<br />एसी व्यवस्था देष में आतंक ही फैलायेगी<br /><br />गीता भरोसा बन गया न्याय में ईमान का<br />घनष्याम भी है बे खबर क्या हश्र है ईन्सान का<br />न्याय मेंगीता भरोसा क्या आदमी सच बोलता है<br />देेखो तराजू न्याय का अन्याय कैसे तोलता है!!<br /> राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग<br /> मो098973998<br /> <br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-61477047372569891672014-03-27T07:19:08.418-07:002014-03-27T07:19:08.418-07:00 न्याय में अन्याय
न्यायालयो की आड में ... न्याय में अन्याय<br />न्यायालयो की आड में कानून गिरता जा रहा है<br />राजनितिक भेश मे! मुजरिम षिखर को पा रहा है<br />खूनी खडा है सामने जज पूछता है कौन है<br />मजबूर है कानून देखो बिन गवाह के मौन है<br /><br />वकील तो हर भ्रश्टता बात को भी जानते है<br />कब कहां कैसे हुआ बारीकियों को छानते हैं<br />असत्य मेंऔर सत्य मे! क्या फर्क है पहचानते हैं पालकर कर अन्याय को ये कैसे सीना तानते है<br /><br />कानून भी न्यायालयो!की नालियो से बह रहे है!<br />हम नही अखवार, टी वी.चैनलो! से कह रहे है! <br />खुलकर दलाली हो रही हैे कचहरी परिवेश मे!<br />अब तो जज भी मुजरिमो! सा दिख रहा है देष मे!<br /><br />न्याय तो मजबूर है बन्द आंख है बष सुन रहा है<br />तर्क बे सिर पैर के ना जाने कैसे गुन रहा है<br />अन्त में सच्चाई की ही मौत हेाती जायेगी<br />एसी व्यवस्था देष में आतंक ही फैलायेगी<br /><br />गीता भरोसा बन गया न्याय में ईमान का<br />घनष्याम भी है बे खबर क्या हश्र है ईन्सान का<br />न्याय मेंगीता भरोसा क्या आदमी सच बोलता है<br />देेखो तराजू न्याय का अन्याय कैसे तोलता है!!<br /> राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग<br /> मो098973998<br /> <br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-43830925498421247542014-03-26T07:16:56.791-07:002014-03-26T07:16:56.791-07:00सियासत मे! भगवान
पहले हर-हर महादेव था,अब है हर-हर ...सियासत मे! भगवान<br />पहले हर-हर महादेव था,अब है हर-हर मोदी<br />आज सनातन की बुनियादे!,राम-भक्त ने खोदी<br />राम-राम को छोडो अब तो रामदेव को गाओ<br />आज कृश्ण का काम नही है, बालकृश्ण को लाओ<br /><br />षिव तो हिम पर चुप बैठा है,षिव सैना ही काफी<br />गणपति बाबा गण-नायक से मा!ग रहा है माफी<br />बलराम नही,सुखराम चलेगा,राजनीति है भाई<br />दुर्गा,लक्ष्मी गौण हो गयी,माया,ममता माई<br /><br />अब कुबेर का क्या मतलब हैे, डाकू घर-घर छाये<br />तै!तिस कोटि देवता घर के हो गये सभी पराये<br />यति,सति चुप चाप है!बैठी,देख के न!गी नारी<br />सडको! पर मर्यादा रोए,राजनीति बलिहारी<br /><br />अब तिहाड़मे!ब्रह्मा,विश्णु,सब पि!जरे के कैदी<br />द्वार-द्वार पर राजनीति के प!डित है मुस्तैदी<br />अल्लाह, ईष्वर, ईषा,मूसा,जेल की रोटी खाये!<br />जैसी करनी,वैसी भरनी, क्यो! धरती मे! आये<br /><br />ग!गा,यमुना मल ढोती है,वाह रे,भक्तो! प्यारे<br />गउ, ग!गा गायित्री के ये जलवे देखो न्यारे<br />राजनीति के चैराहो! पर भगवानो! की बोली<br />बाबा जी भी खेल रहे है!, देख सियासी होली<br /><br />बलात्कार मे! बाबा अन्दर, भीड़भक्त की रोये<br />ब्रह्मचर्य के सभी ल!गोटे ,अपनी गरिमा खोये<br />वेद, षास्त्र की चैराहो! पर होती,देख नुमाइस<br />तर्को और कुतर्को मे! भी होती है अजमाइस<br /><br />दो माह पहले लिखा था, ये मुर्दे देर से जागे<br />सभी सर्मथक मौेन हो गये षिव ष!कर के आगे<br />धर्मो के ठेकेदारो! से धर्मो का उपहास हुआ है<br />भारत का भगवानो! के अपमानो से नाष हुआ है<br /><br />राम देव क्यो! चुप बैठा था,योग के टुकडे़ चाटे<br />ये सभी गेरूवे लाल,ल!गोटे षिव ष!कर ने बा!टे<br />राजनीति के कालनेमि से क्यो! बिकता हैे भोला<br />कोतवाल क्यो! षान्त खडा हेै,काषी का टण्डोला<br /><br />राम,नाम पर जीने वालो! अब तो कुछ षर्माओ<br />भगवान को कुछ तो बख्सो,ना औकात दिखाओ<br />कवि ‘आग’कहता है,तुमने मर्यादा क्यो! धोदी<br />पहले हर-हर महादेव था, अब है ,हर-हर मोदी!!<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-59370403532110754172014-03-26T07:16:49.995-07:002014-03-26T07:16:49.995-07:00संसद की लाचारी
पुरातत्व के मानचित्र मे मंेैइस दुनि...संसद की लाचारी<br />पुरातत्व के मानचित्र मे मंेैइस दुनिया का जनपद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मंे भारत की संसद हॅूं<br />मैने मुगलों को देखा था मान नही अपना खोया <br />अंग्रेजों के अंकुष के नीचे भी दबा नही रोया <br />आजाद हुआ निर्पेक्ष बना मंेकाॅप रहा वो गणपद हूॅं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैं भारत का संसद हॅूं<br /><br />गाॅंधी,नेहरू,लाल बहादुर की मर्यादा को देखा<br />हर विरोध की सीमाओं मंे खींची प्यार की थी रेखा<br />सत्ता और विरोधो में भी कीचढ नही उछलता था<br />तर्को और कूतर्कों से केवल भारत ही पलता था<br />उन्ही दिनो की यादों में षिखरों से गिरता हिमनद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं<br /><br />आजादी के साथ - साथ अब अपराधी भी आतें है<br />देख रहा हॅूं भ्रश्टाचारी, कैसे षोर मचाते हैं<br />गुत्थम गुत्था में ये मेरे मेरूदण्ड को तोड रहे है<br />लोकतन्त्र की लोकलाज को अय्यासी पर मोड रहे हैं<br />लाचारी मंे देख रहा हॅूं,नेता से छोटा कद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं<br /><br />पक्षों और विपक्षों का सम्मान सदा मंे पाता था<br />गौरवषाली भारत का इतिहास जगत मंे गाता था<br />भ्रश्टाचारी,वैभवषाली की कुण्ठा से रोता हॅूं<br />लोक सभा हो राज्य सभा हो आज प्रतिश्ठा खोता हॅूं<br />सत्य,अहिंसा का प्रतिपालक आज लुटेरों का मद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं, मैे भारत का संसद हॅूं<br /><br />गुरूग्रन्थ गीता ,रामायण और कूरान बुनियादें थी<br />सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलियुग की भी सारी यादें थी<br />सम्प्रदाय निर्पेक्ष राश्ट्र हो ऐसा नियम बनाया था<br />चक्रव्रती सम्राटों ने आदर्ष यहीं से पाया था<br />मैं भारत का जटाजूट हॅूं कल्प वृक्ष हॅूं बरगद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं<br /><br />भगत सिंह षेखर, सूभाश की आषाओं मंे खडा हुआ<br />भारत भंजन करने वालों के चरणों मंे पडा हुआ<br />राजनीति के कीचढ मंे मैं उस पंकज को खोज रहा हॅू<br />राम राज्य में भारत माता जैसी सीता सोच रहा हॅूं<br />धर्म कर्म की इस धरती मंे पुनः धर्म का धम्पद हूॅ<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मंै भारत का संसद हॅूं<br /><br />संविधान की धाराओं को सबके उपर फेंक रहा हॅूं<br />संसद की कुर्सी पर बैठे अपराधी मैं देख रहा हॅूं<br />क्यों होती है आज मंत्रणा,डाकू,चोर चकारों में<br />स!विधान की देख नुमाइस,आज खुले बाजारोंमें<br />चीर-हरण होता है मेरा सिद्या!त की सरहद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं <br /><br />आरक्षण,क!ही स!रक्षण,क!ही सम्प्रदाय से मरता ह!ू!<br />सबकी इच्छा घुट-घुट करके लुट के पूरी करता हू!<br />जाति,वर्ण और कौम कबीले मेरे पन्ने फाड़रहे है!<br />राजनीति के सारे दल भी स!विधान को ताडरहे है!<br />कवि‘आग’के छन्दो! से मै!,बस थोडा सा गदगद हू! ।।<br />राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)<br />मो0 9897399815<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-52689226762268773492014-03-23T00:21:29.410-07:002014-03-23T00:21:29.410-07:00 षहीदो! की तोहीन
कभी वतन की षान थे आज क्य... षहीदो! की तोहीन<br />कभी वतन की षान थे आज क्यो! अहसान है!<br />दो चार की गिनती य!हा मजबूर हे!बेजान है!<br />राश्ट्र के गौरव किसी को क्यो! समझ आते नही?<br />कुछ बात है नई नष्ल को रणबा!कुरे भाते नंही<br /><br />शडयन्त्र की ये राजनीति राश्ट्र से क्यो!दूर है?<br />पाष्चात्य की परछायी हर दिल में भरी भरपूर है<br />आदमी भी नष्ल को अ!ग्रेजियत समझा रहा है<br />किस तरह से राश्ट्र नेता राश्ट्र को ही खा रहा है?<br /><br />राश्ट्र के बलिदानियो!की याद अब फरियाद है<br />गौवंष के इस देष मे! भी यूरिया की खाद है<br />सम्प्रदायी जंग मे! स!स्कार अपने खो गये<br />राश्ट्र के जो पूत थे कैसे मजहब के हो गये?<br /><br />परतन्त्र थे जब इस जमी पर ना कबीला कौम था<br />आधार था धरती बिछौना सर पे साया व्योम था<br />आज हम आजाद है! पर ना जमी आकाष है<br />हे, तिरंगे राजनीति पर तेरी क्यो! आष है<br /><br />हम मर गये, गुमनाम है!,आज अपने देष मे!<br />अब याद भी आते नही हम इस सियासी भेश मे!<br />हम नही चाहते हे!ैगौरव,मृत षवो!की षान का<br />प्रष्न उठता है य!हा,इस देष की पहचान का<br /><br />अब राश्ट्र के मरघट पे तस्वीरे!बिछाना छोड दो<br />अब हमारी याद म!े झण्डा झुकाना छोड़ दो<br />स्वाभिमान तो बष षोभता है सरहदो! के वीर पर<br />मै! लिख रहा हूॅं गीत भारत मां तेरी तकदीर पर ।।<br /><br /> <br /><br /><br /> <br /> <br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-63674118705225313362014-03-22T23:22:29.356-07:002014-03-22T23:22:29.356-07:00 मजबूरी
भ्रश्टता पर अब ... मजबूरी<br />भ्रश्टता पर अब कलम का वार भी बेकार है<br />बे - बेहया सी राजनीति बेवफा बेधार है<br />कुछ पता चलता नही कब कौन सा नेता क!हा<br />कौन से दल से दबा है कौन दल देता पनाह<br /><br />राजनेता की नजर सत्ता षिखर पर है गढी<br />वाषना के खेल मे! इस देष की किसको पढी<br />लक्ष्य दिल्ली को बनाकर राजनीति हो रही है<br />धृतराश्ट्र् की औलाद देखो बीज कैसे बो रही है<br /><br />हर जगह षकुनि के पासे चैपडो!का खेल है<br />ये कौरवो! की राजनीति मेल है बेमेल है<br />न्यायालयो!मे!कृश्ण की गीता गुनाहो!के लिये<br />हाथ रखता है वही कूकर्म जिसने भी किये<br /><br />कैसे षपत लेते है नेता राश्ट्ª के उत्थान मे!<br />क्यो! बदलती है धरा ये मजहबी षमषान मे<br />फिर चुनावी ज!ग चैराहो!मे!चढकर बोलती है<br />राजनीति की हवस औकात सब की खोलती है<br /><br />स!सद भी अब मरघट बनी मुर्दे जलाने के लिये<br />क्यो! कबर से लाष भी जाती है खाने के लिये<br />सढ़ रही है लाष, स!सद के सढे़ षनषान मे!<br />हर जगह मुर्दो!को देखो आज हिन्दुस्तान मे!<br /><br />हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई के कफन मे!वोट है!<br />जो सियासी मर गये, उनके दफन मे! वोट हेै!<br />हर कौेम की नयी नष्ल के उजडे़ चमन मे! बोट हैे!<br />अब तो सियासी के अमन,जनमत दमन मे!बोट है<br /><br />यह सोचकर ही बोलता हूॅं,अब कवि क्या गायेगा<br />मृत षवों के बीच से श्रृंगार कैसे आयेगा<br />विभत्स मे!भी हास्य की और व्य!ग की बौछार है<br />तुम लिखो लिखते रहो मेरी कलम लाचार है ।।<br /> राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा (आग )<br /> मो0 9897399815<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-5961382174532665322014-03-19T07:13:46.211-07:002014-03-19T07:13:46.211-07:00कार्टून बनाने वाले ने किसी भी भाव से कार्टून बनाया...कार्टून बनाने वाले ने किसी भी भाव से कार्टून बनाया हो,पर मै असमे! सकारात्मकता देख रहा हॅ!ू,काष ऐसा हो जाये तो यह देष आदर्ष राश्ट्र बन जायेगा<br /><br />थक गया मोदी धरा मे! आ गया<br />पक गया मोहन भी अब षर्मा गया<br />छक गया राहुल, जो धोखा खा गया<br />बक गया अरविन्द था, भरमा गया<br /><br />ये चार मिल जाये!तो भारत बन गया<br />झण्डा हमारा विष्व मे!भी तन गया<br />दूर सब सिकवे ,गिले हो जाये!गे<br />आदर्ष को ये चार फिर से लाये!गे!<br /><br />क्या कल्पना साकार भी हो पायेगी<br />मा! भरती की आबरू बच पायेगी<br />पद के मद के कद,हदो! को छोड़दो<br />बस इस तरह भारत को फिर से जोड़दो<br /><br />बस,एक ही झण्डा,तिर!गा हाथ हो<br />अब देष मे! ना सम्प्रदायी जात हो<br />आदमियत लक्ष्य हो हर भाव मे!<br />बस,‘आग ’ लगनी चाहिये भटकाव मे! !!!<br /> राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग<br /> मो098973998<br /><br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-72738333502441632002014-03-18T07:54:25.069-07:002014-03-18T07:54:25.069-07:00 अचेतन चिन्तन
खण्डहरो! से अब सडानो! की महक ... अचेतन चिन्तन<br />खण्डहरो! से अब सडानो! की महक आने लगी<br />बुतपरस्ती कौम कब्रिस्तान को भाने लगी<br />मुर्दा जवानी,गीत मातम के मधुर गाने लगी<br />ठू!ठ मे!नई को!पले,आयी!,तो घबराने लगी<br /><br />अब कबर के षव सियासत के सबब बनने लगे<br />ये भूत भी,मुर्दा मषानो! के गजब बनने लगे<br />मजहबी,मरघट के जमघट मे! अजब लगने लगे<br />सिरमोर से ये चोर,हमको मोर अब लगने लगे<br /><br />भूत ही,जिन्न को जिगर मे!जानकर के पालते है!<br />ताबूत म!ेभी नाप कर हर लाष को हम डालते है!<br />हम भविश्यत,लाष मे!इतिहास मे!ख!गालते है!<br />मौत के सा!चो!मे!,कौमो को हमेषा ढालते हे!ै<br /><br />हम पिचासो! के लिबासो!, को लपेटे घूमते है!<br />मुर्दा कहानी की जवानी, को समेटे घूमते है!<br />कब्र मे!भी सब्र का वो सामियाना ढू!ढते है!<br />अस्थियो! मे!,आस्था का आसियाना ढू!ढते है!<br /><br />हर समाधी,व्याधियो!के कीट को क्यो!पालती हेै<br />ये लोकसाही मरघटो!के,ढीठ को क्यो!पालती है<br />सल्तनत खच्चर गधो!की पीठ को क्यो!पालती हेै<br />मुर्दे पूराने,राजनीति ,ढीट को क्यो!पालती है<br /><br />कीमते!,क्यो! लोकसाही के कबाडी खो रहे है!<br />मल्कियत क्यो!नौकरो!के हाथ अपनी धो रहे हे!<br />सम्पन्न है!सारे भिखारी,दीन हो कर रो रहे है!<br />कवि‘आग’भी इस लाष को बस छन्द ही ढो रहे है!!!<br /> राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग<br /> मो098973998<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-336129646536977602014-03-18T07:53:14.508-07:002014-03-18T07:53:14.508-07:00 अचेतन चिन्तन
खण्डहरो! से अब सडानो! की महक ... अचेतन चिन्तन<br />खण्डहरो! से अब सडानो! की महक आने लगी<br />बुतपरस्ती कौम कब्रिस्तान को भाने लगी<br />मुर्दा जवानी,गीत मातम के मधुर गाने लगी<br />ठू!ठ मे!नई को!पले,आयी!,तो घबराने लगी<br /><br />अब कबर के षव सियासत के सबब बनने लगे<br />ये भूत भी,मुर्दा मषानो! के गजब बनने लगे<br />मजहबी,मरघट के जमघट मे! अजब लगने लगे<br />सिरमोर से ये चोर,हमको मोर अब लगने लगे<br /><br />भूत ही,जिन्न को जिगर मे!जानकर के पालते है!<br />ताबूत म!ेभी नाप कर हर लाष को हम डालते है!<br />हम भविश्यत,लाष मे!इतिहास मे!ख!गालते है!<br />मौत के सा!चो!मे!,कौमो को हमेषा ढालते हे!ै<br /><br />हम पिचासो! के लिबासो!, को लपेटे घूमते है!<br />मुर्दा कहानी की जवानी, को समेटे घूमते है!<br />कब्र मे!भी सब्र का वो सामियाना ढू!ढते है!<br />अस्थियो! मे!,आस्था का आसियाना ढू!ढते है!<br /><br />हर समाधी,व्याधियो!के कीट को क्यो!पालती हेै<br />ये लोकसाही मरघटो!के,ढीठ को क्यो!पालती है<br />सल्तनत खच्चर गधो!की पीठ को क्यो!पालती हेै<br />मुर्दे पूराने,राजनीति ,ढीट को क्यो!पालती है<br /><br />कीमते!,क्यो! लोकसाही के कबाडी खो रहे है!<br />मल्कियत क्यो!नौकरो!के हाथ अपनी धो रहे हे!<br />सम्पन्न है!सारे भिखारी,दीन हो कर रो रहे है!<br />कवि‘आग’भी इस लाष को बस छन्द ही ढो रहे है!!!<br /> राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग<br /> मो098973998<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-156453694269051442014-03-12T00:48:01.130-07:002014-03-12T00:48:01.130-07:00 होली की बोली
होली खेलो, कूदो ना... होली की बोली<br />होली खेलो, कूदो नाचो ,खुल कर गाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br />गिरधारी को कितना अब बदनाम करोगे<br />भा!ग,मदिरा, कब तक गोकुल धाम धरोगे<br />इस परम्परा मे!गन्दी हरकत तो मत लाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />गोकुल, मथुरा, बृन्दाबन,लठ मार फाग है<br />हर मजहब मे! प्रेम, प्यार है,क!हा राग है<br />हिन्दू,मुस्लिम कोइ खेले कुछ भेद नही हेै<br />र!ग,उम!ग हेै,ज!ग,भ!ग,कोइ खेद नही हेै<br />इस र!ग बिर!गी होली से, कुछ तो षर्माओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />होली मे! हम कीचड़ मु!ह मे! डाल रहे है!<br />त्यौहारो! मे! धृणा क्लेश को पाल रहे है!<br />क्या वैमनस्यता इस होली मे! गले मिलेगी<br />जाति,मजहब की बुनियादे! हर रोज खिलेगी<br />अब होली से अल्लाह, ईष्वर को,ना खाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />निर्पेक्ष धरम की भाशा केवल र!ग आज है<br />मै! देख रहा हू!,उसमे!ही बस,बची लाज है<br />ये कौम,कबीले, हर मजहब मे! उपयोगी है<br />सबके अन्दर रमा हुआ, योगी, भोगी है<br />इन र!गो से मानवता की लाज बचाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />ये भारत माता बागवानी हैे, पुश्प वाटिका<br />ना जाने कितनी कौमो! की हैे नृत्यनाटिका<br />सतयुग,त्रेता, द्वापर,कलियुग परम्परा हेै<br />निर्मल ग!गा बहती निष्चल धार त्वरा है<br />अब तो जल की धारा देखो होष मे!आओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />राजनीति ने भारत का सब कुछ खोया है<br />प्रहलाद बचा है,बचकर भी घर-घर रोया हेै<br />ब्राह्ममण,क्षत्रिय,वैष्य,षुद्र का भेद क!हा है<br />इस बैतरणी मे! भेद-भाव का छेद क!हा है<br />कवि‘आग’ को रागफाग कुछ तो समझाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ !!<br /><br />राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग<br /> मो09897399815<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-56967809476033862702014-03-12T00:46:39.746-07:002014-03-12T00:46:39.746-07:00 होली की बोली
होली खेलो, कूदो ना... होली की बोली<br />होली खेलो, कूदो नाचो ,खुल कर गाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br />गिरधारी को कितना अब बदनाम करोगे<br />भा!ग,मदिरा, कब तक गोकुल धाम धरोगे<br />इस परम्परा मे!गन्दी हरकत तो मत लाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />गोकुल, मथुरा, बृन्दाबन,लठ मार फाग है<br />हर मजहब मे! प्रेम, प्यार है,क!हा राग है<br />हिन्दू,मुस्लिम कोइ खेले कुछ भेद नही हेै<br />र!ग,उम!ग हेै,ज!ग,भ!ग,कोइ खेद नही हेै<br />इस र!ग बिर!गी होली से, कुछ तो षर्माओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />होली मे! हम कीचड़ मु!ह मे! डाल रहे है!<br />त्यौहारो! मे! धृणा क्लेश को पाल रहे है!<br />क्या वैमनस्यता इस होली मे! गले मिलेगी<br />जाति,मजहब की बुनियादे! हर रोज खिलेगी<br />अब होली से अल्लाह, ईष्वर को,ना खाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />निर्पेक्ष धरम की भाशा केवल र!ग आज है<br />मै! देख रहा हू!,उसमे!ही बस,बची लाज है<br />ये कौम,कबीले, हर मजहब मे! उपयोगी है<br />सबके अन्दर रमा हुआ, योगी, भोगी है<br />इन र!गो से मानवता की लाज बचाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />ये भारत माता बागवानी हैे, पुश्प वाटिका<br />ना जाने कितनी कौमो! की हैे नृत्यनाटिका<br />सतयुग,त्रेता, द्वापर,कलियुग परम्परा हेै<br />निर्मल ग!गा बहती निष्चल धार त्वरा है<br />अब तो जल की धारा देखो होष मे!आओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />राजनीति ने भारत का सब कुछ खोया है<br />प्रहलाद बचा है,बचकर भी घर-घर रोया हेै<br />ब्राह्ममण,क्षत्रिय,वैष्य,षुद्र का भेद क!हा है<br />इस बैतरणी मे! भेद-भाव का छेद क!हा है<br />कवि‘आग’ को रागफाग कुछ तो समझाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ !!<br /><br />राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग<br /> मो09897399815<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-27538375551070382492014-03-12T00:33:35.366-07:002014-03-12T00:33:35.366-07:00 होली की बोली
होली खेलो, कूदो ना... होली की बोली<br />होली खेलो, कूदो नाचो ,खुल कर गाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br />गिरधारी को कितना अब बदनाम करोगे<br />भा!ग,मदिरा, कब तक गोकुल धाम धरोगे<br />इस परम्परा मे!गन्दी हरकत तो मत लाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />गोकुल, मथुरा, बृन्दाबन,लठ मार फाग है<br />हर मजहब मे! प्रेम, प्यार है,क!हा राग है<br />हिन्दू,मुस्लिम कोइ खेले कुछ भेद नही हेै<br />र!ग,उम!ग हेै,ज!ग,भ!ग,कोइ खेद नही हेै<br />इस र!ग बिर!गी होली से, कुछ तो षर्माओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />होली मे! हम कीचड़ मु!ह मे! डाल रहे है!<br />त्यौहारो! मे! धृणा क्लेश को पाल रहे है!<br />क्या वैमनस्यता इस होली मे! गले मिलेगी<br />जाति,मजहब की बुनियादे! हर रोज खिलेगी<br />अब होली से अल्लाह, ईष्वर को,ना खाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />निर्पेक्ष धरम की भाशा केवल र!ग आज है<br />मै! देख रहा हू!,उसमे!ही बस,बची लाज है<br />ये कौम,कबीले, हर मजहब मे! उपयोगी है<br />सबके अन्दर रमा हुआ, योगी, भोगी है<br />इन र!गो से मानवता की लाज बचाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />ये भारत माता बागवानी हैे, पुश्प वाटिका<br />ना जाने कितनी कौमो! की हैे नृत्यनाटिका<br />सतयुग,त्रेता, द्वापर,कलियुग परम्परा हेै<br />निर्मल ग!गा बहती निष्चल धार त्वरा है<br />अब तो जल की धारा देखो होष मे!आओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />राजनीति ने भारत का सब कुछ खोया है<br />प्रहलाद बचा है,बचकर भी घर-घर रोया हेै<br />ब्राह्ममण,क्षत्रिय,वैष्य,षुद्र का भेद क!हा है<br />इस बैतरणी मे! भेद-भाव का छेद क!हा है<br />कवि‘आग’ को रागफाग कुछ तो समझाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ !!<br /><br />राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग<br /> मो09897399815<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-38437177157283041412014-03-12T00:31:01.908-07:002014-03-12T00:31:01.908-07:00 होली की बोली
होली खेलो, कूदो ना... होली की बोली<br />होली खेलो, कूदो नाचो ,खुल कर गाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br />गिरधारी को कितना अब बदनाम करोगे<br />भा!ग,मदिरा, कब तक गोकुल धाम धरोगे<br />इस परम्परा मे!गन्दी हरकत तो मत लाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />गोकुल, मथुरा, बृन्दाबन,लठ मार फाग है<br />हर मजहब मे! प्रेम, प्यार है,क!हा राग है<br />हिन्दू,मुस्लिम कोइ खेले कुछ भेद नही हेै<br />र!ग,उम!ग हेै,ज!ग,भ!ग,कोइ खेद नही हेै<br />इस र!ग बिर!गी होली से, कुछ तो षर्माओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />होली मे! हम कीचड़ मु!ह मे! डाल रहे है!<br />त्यौहारो! मे! धृणा क्लेश को पाल रहे है!<br />क्या वैमनस्यता इस होली मे! गले मिलेगी<br />जाति,मजहब की बुनियादे! हर रोज खिलेगी<br />अब होली से अल्लाह, ईष्वर को,ना खाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />निर्पेक्ष धरम की भाशा केवल र!ग आज है<br />मै! देख रहा हू!,उसमे!ही बस,बची लाज है<br />ये कौम,कबीले, हर मजहब मे! उपयोगी है<br />सबके अन्दर रमा हुआ, योगी, भोगी है<br />इन र!गो से मानवता की लाज बचाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />ये भारत माता बागवानी हैे, पुश्प वाटिका<br />ना जाने कितनी कौमो! की हैे नृत्यनाटिका<br />सतयुग,त्रेता, द्वापर,कलियुग परम्परा हेै<br />निर्मल ग!गा बहती निष्चल धार त्वरा है<br />अब तो जल की धारा देखो होष मे!आओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ<br /><br />राजनीति ने भारत का सब कुछ खोया है<br />प्रहलाद बचा है,बचकर भी घर-घर रोया हेै<br />ब्राह्ममण,क्षत्रिय,वैष्य,षुद्र का भेद क!हा है<br />इस बैतरणी मे! भेद-भाव का छेद क!हा है<br />कवि‘आग’ को रागफाग कुछ तो समझाओ<br />इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ !!<br /><br />राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग<br /> मो09897399815<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-50009451560332586522014-03-10T01:01:37.413-07:002014-03-10T01:01:37.413-07:00 अभीशिप्त-वर्ग
मै! गरीब हू!,मध्य ... अभीशिप्त-वर्ग<br />मै! गरीब हू!,मध्य वर्ग हू!, मेरी बेटी भी जवान है<br />मै! समाज के तरकस की ,झुकी हुयी सी सर, कमान हू!<br />परम्परा की प्रत्य!चा को क!पित कर से खी!च रहा हू!<br />निम्न वर्ग और उच्च वर्ग के बीच फ!सा हॅ!भ!ी!च रहा हू!<br /><br />कन्या भ्रूण हनन की बाते! सुनने मे! अच्छी लगती हेै!<br />मध्यवर्ग की कन्याए! , तालाबो! की मच्छी लगती है<br />मछुआरो! के इस समाज मे!, का!टा,आटा फ!सा हुआ है<br />घर कुलीन हो,परम्परा मे!,दीन बाप तो ध!सा हुआ है<br /><br />मेरी बेटी हाट हो गयी, आज नुमाइस को ढोती हेै<br />स!स्कारो! की बुनियादो!पर,क्यो! घुट घुट करके रोती है<br />लडके वाले नाप -तोल कर मण्डी का सौदा करते है!<br />लावारिस भी मध्य-वर्ग की बुनियादे! ,खोदा करते है!<br /><br />जन्म -कुण्डली, फोटो लेकर,लडको! के घर झा!क रहे है!<br />हम लडकी के बाप, श्राप है!,धूल सडक की फा!क रहे है!<br />इन्टरव्यू के प्रष्न - पत्र भी लाज षरम से भरे पडे़है<br />हम अनाथ है!, बेषर्मो से , लावारिस चुपचाप खडे़है!<br /><br />अब तो मेरी बेटी भी बस,पषुओ! सी ही मौन खडी है<br />नक्षत्र, ग्रह, पल की पैदाइस,ना जाने वो कौन घडी है<br />ब!जर भूमि, सहमी बछिया,झुके नयन की आस निरासा<br />मुख मे! भी अब षब्द नही ,केवल मन हेै, तन की भाशा<br /><br />ना परिचय हेै, ना पैसा है, सूनी राहे! अन्धकार मे!<br />ना ह!सता हू!,ना रोता हॅ!ू,फ!सा पडा हू!इसी विकार मे!<br />सामान नही है, मेरी बेटी ,किस हिम्मत से टालू! मे!ै<br />जीवन भर मै!ने दुख पाले, और क!हा तक पालू! मे!ै<br /><br />भू्रण हनन और मातृषक्ति पर,प्रष्नचिह्म मै! दाग रहा हॅ!ू<br />मै बाप हू!,इस बेटी का ,हा!प-हा!प कर भाग रहा हू!<br />टी.वी.चैनल,अखवारो! मे! सुन करके राहत मिलती है<br />कन्याभ्रूण गर्भ मे! हो तो कब-किस को चाहत मिलती हेै<br /><br />ये समाज की विडम्बना है,क्या इसका कुछ हल आयेगा<br />गर्भपात,कण्डोम दिखाकर, ये विकार क्या रूक पायेगा<br />अबला जीवन,भ्रूण गर्भ सब,बलात्कार की परिभाशा है<br />पुरूशो! को लावण्य रूप, सौन्दर्य जगत से ही आषा है<br /><br />पुरूश प्रधान के इस समाज मे! मध्यवर्ग अभिशाप बना है<br />सूरज की किरणे! रूकती है!,कोहरा भी है, मेघ घना है<br />परम्परा और स!स्कारो! की कन्याओ! का यही हाल है<br />कवि‘आग’की लपटो! से ,हर चिन्गारी को ये मलाल है!!<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-49472350876558026392014-03-04T05:23:44.696-08:002014-03-04T05:23:44.696-08:00नारायण
बिन परमिट की कितनी गाडी चला रहे थे
इन्द्र-...नारायण<br />बिन परमिट की कितनी गाडी चला रहे थे <br />इन्द्र-देव का सिहा!सन क्यो!हिला रहे थे<br />उर्वषी,मेनका,रम्भा भी तो आॅ!क रही थी<br />लालाहित हो कर उपर से झाॅ!क रही थी<br /><br />हे विकास के परिणेता तू चमत्कार है<br />उत्तराखण्ड की धरती का तू अवतार है<br />विरह, वेदना नारी की, तूने पहचानी<br />तू प्रथम पुरूश है वीर्यवान पर्वत मैदानी<br /><br />एक उज्वला तुझको अपना मान रही है<br />केवल रोहित से तेरी पहचान रही है<br />ना जाने कितनी नारी तुझसे सम्मोहित है!<br />इस पुरातत्व के बरगद पर पक्षी मोहित है<br /><br />गलती से कोई बीज छिटक कर जमजाता है<br />तू किसान हेै तेरा इससे क्या नाता है<br />धन्य-धन्य उस ध रती को जिसने पहचाना<br />मुष्किल होता है बूढे को बाप बनाना<br /><br />तू कामदेव का रूप लिये पर्वत मे! आया<br />जाने कितनी अबलाओ! की तू है छाया<br />हे गुप्तदान के माहिर तुझको जगवन्दन है<br />तू देवदार के बीच हिमालय मे! चन्दन है<br /><br />तेरे जो विपरीत खडे़ है! लाचारी है<br />इतिहास पुरूश तू वर्तमान मे! भी भारी है<br />काम-वाषना भी तुझसेे अब षर्मिन्दा है<br />नारायण, बष ,नारी के कारण जिन्दा है<br /><br />जाने कितने साडू भाई चरित्र- वान है!<br />जा!च कराओ लावारिस का मरूधान है<br />काम - वाषना राजनीति का पायदान है<br />सत्ता और सियासत का ये अनुदान है<br /><br />तुम भरत व!ष के षान्तनु हो भीश्मतात हो<br />पुत्र पिता कहता है फिर , क्यो!अनाथ हो<br />गलती से ऊसर धरती मे! अ!कुर फूटा<br />नारायण ही कर सकता है काम अनूठा<br /><br />महाभारत आदर्ष बना है लावारिस था<br />मुरलीधर प्रमाण-पत्र का भी वारिस था<br />नारायण की ग!गा तो निष्चल बहती है<br />ये राजनीति है, घटनाये! होती रहती है!<br /><br />आखिर तूने बीज,वृक्ष,फल मान लिया है<br />कामवाषना का प्रतिफल भी जान लिया हैे<br />तू धन्य- भाग हैे मूल सूद को लेकर आया<br />अभी ना जाने क!हा-क!हा बिखरी हैे माया<br /><br />पा!च साल तक चोराहे मे! भत पिटवायी<br />चलो, बुढापे मे,एक लाठी हाथ तो आयी<br />हे वीर्यवान,हे इन्द्र-देव तू चमत्कार हेै<br />कवि ‘आग’का कामदेव को नमस्कार है!!aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-80565749439372220282014-02-28T22:37:13.070-08:002014-02-28T22:37:13.070-08:00 सौहार्द
जज्बात में भी खुद फना होता हु... सौहार्द<br />जज्बात में भी खुद फना होता हुआ क्यों दिख रहा है<br />सम्प्रदायी भाग्य भारतवर्श का,क्यों लिख रहा है<br />हर कौम की भाशा में षमषीरें चमकती देखता हूॅं<br />ये कारवॅंा तो आज भी बाजार में खुद बिक रहा है<br /><br />छाछ को भी फूॅंक की पीने की आदत हो गयी<br />आज हिन्दुस्तान में कैसी इबादत हो गयी<br />बन्दगी में गन्दगी किस कदर फैली यहाॅं<br />अब तो पूजा और नमाजी भी षहादत हो गयी<br /><br />मजहबों के ये मदरसे जालिमो के हो गये<br />हम तो इस फिरका परस्ती , तालिमो के हो गये<br />पूजा, नमाजी , खाकसारी,बुतपरस्ती, ये बला<br />इस जंग में भगवान भी मवालियों हो गये<br /><br />कौम हिन्दुस्तान की दो-गज जमी को लड रही है<br />देख लो फिरका परस्ती बे- वजह क्यों अड रही है<br />पागलों की पैरवी ने ये सबक सिखला दिया<br />पैगंबरों की नष्ल कब्रिस्तान में क्यों सढ रही है<br /><br />ये ! षियासी लोग भी केवल बहाना ढूॅंढते हैं<br />कोहराम की खूनी नदी में,बष! नहाना ढूॅंढते हैं<br />रोंदते हैं किस कदर , इस मजहबी अंदाज से<br />हर कफन में भी दफन का षामियाना ढूॅंढते हैं<br /><br />वो कौन है जो फर्क करता है यहाॅं पर कौम का<br />नुमाइन्दगी का तर्क करता है यहाॅं पर कौम का<br />बष ! जालिमो पर गौर करने की कला को ढूॅंढिये<br />मिल जायेगा जो नर्क करता है यहाॅं पर कौम का<br /><br />हर पत्थरों पर है लिखी,फरियाद मेरे देष की<br />इन पत्थरों पर है टिकी ,बुनियाद मेरे देष की<br />रंजिषों में भी अमन और प्यार की उम्मीद से<br />बिखरी पडी है हर जगह औलाद मेरे देष की<br /><br />इतिहास में तो हर दरिन्दों का गवाह मौजूद है<br />धर्म के इस आसियाने का तवाह मौजूद है<br />हम तो गुलदस्ता बनाते हैं यहाॅं हर कौम का<br />सिलसिला हर नष्ल का वो आज भी मौजूद है<br /><br />मन्दिरों और मस्जिदों को अब ढहाना दो<br />खूनी नदी में इस तरह से अब नहाना छोड दो<br />बष!परिन्दों से खुले आकाष मे ं उडते रहो<br />कवि आग कहता है अदब से,ये बहाना छोड दो!!<br /><br /> <br /> aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-42082767918682477412014-02-28T21:40:27.479-08:002014-02-28T21:40:27.479-08:00
रेल
ये हिन्दुस्तान की रेले!ज!हा ...<br /><br /> रेल<br />ये हिन्दुस्तान की रेले!ज!हा का बोझ ढोती है!<br />गरीबो! और अमीरो! की ये पुस्तैनी बपौती है<br />कोई कीमत चुकाता है कोई है मुफ्त का आदि<br />यहा! ए0सी0 मे!बापू की चमकती देख लो खादी<br /><br />यहाॅ!हिन्दू और मुस्लिम भी सफर मे! साथ चलते है!<br />यहाॅ! पर सिक्ख,इसाई के,मिलकर मन मचलते है!<br />यहाॅ! पर धर्म और मजहब का दरिया साथ बहता है<br />यहाॅ!निर्पेक्ष कौमो! का हमेषा साथ रहता है!<br /><br />यहा! फिरका परस्ती भी अदब से पेष आते है!<br />यहाॅ! तहजीब हिन्दुस्तान की ज!क्सन बताते है!<br />हरी और लाल झण्डी के करारो! के इषारे है!<br />यहाॅ! पर मौन अनुषाषन ,ये कैसे नजारे! है!<br /><br />हरकत भी नही होती है जब पटरी बदलती है <br />यहा! मजहब मचलते है! तो पूरी कौम जलती है<br />हूकूमत भी तो रेलो! के रवेलो! से ही पलती है<br />य!हा फिरकापरस्ती भी सियासत से निकलती है<br /><br />जीवन के सफर मे! भी मिलकर रेल बन जाओ<br />इसकी मौन भाशा का अमल जीवन मे! दिखलाओ<br />हर मजहब के डिब्बे को ,ई!जन एक ढोता है<br />सिमट कर आज भी डबरो मे!,हिन्दुस्तान रोता है<br /><br />रेलो! के ही खेलो! से ये हिन्दुस्तान पलता है<br />सियासत की हूकूमत से क्यो! अरमान जलता है<br />सभी डिब्बो! मे! बैठे है!अमन और चैन लाने को<br />य!हा ज!जीर खि!चती है वतन अपना जलाने को<br /><br />हर मजहब सिखाता है अमन और प्रेम को लाना <br />यहा! इ!जन का हर डिब्बा है पटरी का ही दीवाना <br />काफिर हो! ,मुसाफिर हो! सफर अ!जाम देता है<br />ना झण्डा है ,ना सीटी है यहाॅ! फरमान नेता है<br /><br />सब डिब्बे एक जैसे है!, जो सारा भार ढोते है!<br />सियासत मे! सभी दल आज क्यो! औकात खोते है!<br />हमारी सबकी म!जिल एक है इ!जन बताता है<br />मुसाफिर को सुरक्षित ये, अपना घर दिखाता हेै<br /><br />सफर का एक ही चिन्तन ,ये जीवन खेल हो जाये<br />हिन्दुस्तान का जज्बा जगत की रेल हो जाये<br />बने पटरी मजहब और धर्म , का ये मेल हो जाये<br />चालक आग जैसा हो , दरिन्दा फेल हो जाये।।<br /> राजेन्द्रप्रसाद बहुगुणा(आग)<br /> मो0 9897399815<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-57219576500569318592014-02-26T20:39:21.770-08:002014-02-26T20:39:21.770-08:00
संसद की लाचारी
पुरातत्व के मानचित्र मे मंेैइस दुन...<br />संसद की लाचारी<br />पुरातत्व के मानचित्र मे मंेैइस दुनिया का जनपद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मंे भारत की संसद हॅूं<br />मैने मुगलों को देखा था मान नही अपना खोया <br />अंग्रेजों के अंकुष के नीचे भी दबा नही रोया <br />आजाद हुआ निर्पेक्ष बना मंे काॅप रहा वो गणपद हूॅं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैं भारत का संसद हॅूं<br /><br />गाॅंधी, नेहरू,लाल बहादुर की मर्यादा को देखा<br />हर विरोध की सीमाओं मंे खींची प्यार की थी रेखा<br />सत्ता और विरोधो में भी कीचढ नही उछलता था<br />तर्को और कूतर्कों से केवल भारत ही पलता था<br />उन्ही दिनो की यादों में षिखरों से गिरता हिमनद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं<br /><br />आजादी के साथ-साथ अब अपराधी भी आतें है<br />देख रहा हॅूं भ्रश्टाचारी ,कैसे षोर मचाते हैं<br />गुत्थम गुत्था में ये मेरे मेरूदण्ड को तोड रहे है<br />लोकतन्त्र की लोक-लाज को अय्यासी पर मोड रहे हैं<br />लाचारी मंे देख रहा हॅूं, नेता से छोटा कद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं<br /><br />पक्षों और विपक्षों का सम्मान सदा मंे पाता था<br />गौरवषाली भारत का इतिहास जगत मंे गाता था<br />भ्रश्टाचारी ,वैभवषाली की कुण्ठा से रोता हॅूं<br />लोक सभा हो राज्य सभा हो आज प्रतिश्ठा खोता हॅूं<br />सत्य,अहिंसा का प्रतिपालक आज लुटेरों का मद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं, मैे भारत का संसद हॅूं<br /><br />गुरूग्रन्थ गीता ,रामायण और कूरान बुनियादें थी<br />सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलियुग की भी सारी यादें थी<br />सम्प्रदाय निर्पेक्ष राश्ट्र हो ऐसा नियम बनाया था<br />चक्रव्रती सम्राटों ने आदर्ष यहीं से पाया था<br />मैं भारत का जटाजूट हॅूं कल्प वृक्ष हॅूं बरगद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं<br /><br />भगत सिंह षेखर,सूभाश की आषाओं मंे खडा हुआ<br />भारत भंजन करने वालों के चरणों मंे पडा हुआ<br />राजनीति के कीचढ मे!उस प!कज को खोज रहा हॅू<br />राम राज्य मेंभारत माता जैसी सीता सोच रहा हॅूं<br />धर्म कर्म की इस धरती मंे पुनः धर्म का धम्पद हूॅ<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मंै भारत का संसद हॅूं<br /><br />संविधान की धाराओंको सबके उपर फे!क रहा हॅूं<br />संसद की कुर्सी पर बैठे अपराधी मैं देख रहा हॅूं<br />क्यों होती है आज मंत्रणा,डाकू,चोर चकारों में<br />स!विधान की देख नुमाइस,आज खुले बाजारोंमें<br />चीर-हरण होता है मेरा सिद्या!त की सरहद हॅूं<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं<br /> <br />फिर से कोई क्या मुझको सम्मान दिलाने आयेगा<br />फिर से कोई आर्यखण्ड की लाज बचाने आयेगा<br />मै!निराष हू!देख-देख कर डेढ़अरब की भीडो!को<br />सभी परिन्दे मौेन खडे़ है! देख के अपने नीडो!को<br />मै कवि‘आग’हू!,रावण के दरबार खडा हू!अ!गद हू!<br />चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं ।।<br /><br /> राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)मो0 9897399815<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8066802980146754032.post-14720673955229927072014-02-26T06:30:16.505-08:002014-02-26T06:30:16.505-08:00 बिहार बिक रहा है
हे बिहार के पासवा... बिहार बिक रहा है<br />हे बिहार के पासवान, हे राजनीति के नाषवान<br />हे लावारिस राश्ट्र-गान, हे अवसर-वादी पहलवान<br />हे सत्तादल के माल छान,हे लक्ष्य-भेद तरकस कमान<br />हे कटे वस्त्र के फटे थान,हे भीमराव के गुप्त-दान<br /><br />हे राजनीति,दुर्गन्ध द्वन्द,हे अगडे़,पिछडे़मतिमन्द<br />हे धरती मे! दबे अन्ध,अपषिश्ट धरा के सडे़कन्द<br />हे तुकबन्दी के अन्ध बन्द,हे छपरा के छगन छन्द<br />उलझी सत्ता मे!पडे़फन्द,हे नन्द व!ष के घनानन्द<br /><br />हे राजनीति के बैसाखी, हे र!ग-म!च नृतक राखी<br />तू फटे दुध की हैे माखी,हे सत्ता के चम-चम चाखी<br />हे अगडे़पिछडो! की झा!की,nहे खादी मे!व्याधी खाकी<br />हे हरिजन, दुर्जन के पाखी, हे सुरा-सुन्दरी के साखी<br /><br />हे लालू नीतीष के सिर दर्दी,हे राहुल, मोदी हमदर्दी<br />हे आसमान, गुण्डागर्दी, अब राम लला की है वर्दी<br />तूने सत्ता मे! हद करदी,अब राजनीति पूरी चरदी<br />तू हरदी मे! भी है जरदी, नयी-नयी नसल पैदा करदी<br /><br />तू जोकर भी कि!ग मेकर है, लालू का केयर टेकर है<br />आर.आर.एस की नेकर है,क!ही ब्रोकर है,क!ही ब्रेकर है<br />ये राजनीति ही गन्दी है, तू इसमे! पडा फुफन्दी है<br />कवि ‘आग ’ की भाशा मे!,बस, तू आवारा नन्दी हेै!!!<br /> राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग<br />aaghttps://www.blogger.com/profile/15730481024105988156noreply@blogger.com