लोकतंत्र हिताथाZय, विवेकालोकवर्धनी,उदभोधनाय लोकस्य लोकसत्ता प्रतििष्ठता।हम सच्ची श्रद्धा और सर्मपण के साथ इस मूल मंत्र को अपना आदशZ मानकर समाजकल्याण के भगीरथ प्रयासों में सहभागीदार बन रहे है। यही हमार चिंतन है यही हमारा प्रयत्न है और यही हमारा स्वप्न है।
पिछले दिनों लोकसभा टेलीविज़न के बारे में अपने मित्रो द्धारा उठाई गई बातों को जानने का मौका मिला। मैं उन्हे व्यक्तिगत तौर पर तो नही जानता, पर बडी विनम्रता के साथ उनका धन्यवाद जरूर करना चाहूंंगा जिन्होंने इस चैनल की कार्यशैली व उसके कार्यक्रम के बारे में अपनी महत्वपूर्ण राय रखी। इससे भविष्य में सुधारात्मक कदम उठाने में हमें अवश्य मदद मिलेगी।आगे भी हम चाहेेंगे कि उनके सुझाव और समर्थन इस चैनल को मिलते रहे। मगर कुछ सवाल हमारे मन में भी कौंध रहे है। आखिर मानव स्वभाव है। पहला सवाल जिन किसी महानुभावों ने चैनल पर टिप्पणी की, उन्हे इस चैनल के बारे में कितना पता है या फिर उन्होने कितनी बार अपनी आखों को कष्ट देकर इसके कार्यक्रमों को देखा है ये उनसे बेहतर और कोई जान सकता है। इस चैनल के उदेदश्य और इसके उदय की जानकारी उनको है या नही। हमें नही मालूम। बस उन्हे इतना बताना चाहता हंेूं कि शुरूआती दौर से ही में इस चैनल के साथ जुडा हंू तथा इसके उदेदश्यों रचनात्मक सोच का में कायल हंूं। कुछ भी कहने से पहले यह जान लेना जरूरी होगा कि इस चैनल को लाने का उदेदश्य क्या था। यह किसके स्वप्न की सार्थकता का जीता जागता प्रमाण है। इस चैनल को लाने की सोच माननीय लोकसभा अध्यक्ष श्री सोमनाथ चैटजीZ की थी। जिनका संसदीय अनुभव और सामाजिक समर्पण किसे से छिपा नही है। जिनकी सोच ने एक क्रांति को जन्म दिया जिसका नाम है लोकसभा टेलीविजन । दरअसल उनकी सोच थी कि लोकतंत्र में लोगेा को विकास का सहभागिदार बनाया जाए। एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जाए जिसके माध्यम से जनता अपने जनप्रतिनिधी की कार्यशैली तथा जनकल्याण हेतु उसकी कोिशशों का जान पाये। उसे यह जानने का अधिकार हो कि जिस व्यक्ति पर उसने विश्वास जताया है वह कितना उनकी अपेक्षाओं में खरा उतर रहा है। इसके अलावा आम आवाम को संसदीय प्रणाली तथा प्रक्रियाओं की पूर्ण जानकारी हो सके। इस मिथ का अन्त हो की सरकार कुछ नही करती बल्कि इस सच्चाई का उदय हो कि सराकर की हर योजना के पिछे मकसद सिर्फ और सिर्फ समाज कल्याण है। इतनी प्रबल इच्छाऐं मगर पूरी कैसे हेा। यह सबसे बड़ा सवाल था। सवाल का जवाब मिला और उदय हुआ लोकसभा टीवी का। हम विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र के तौर पर जाने जाते हैैं। इससे ज्यादा गौरव की बात और क्या होगी कि वहॉं कि हर गतिविधीयेां पर जो उनके कल्याण से जुडी है वहॉं के नागरिकेां की नजर हेा।। इससे भी बडी खुशी की बात यह है कि यह विश्व का पहला ऐसा चैनल है जिसको चलाने का दारेामदार संसद का है। हॉ इतान जरूर है कि हम किसी भी विषय को व्यवसायिक चश्मे से नही देखते। हमारी कोिशश न तो सनसनी फेेेैलाने कि रहती है और न ही हम टीआरपी के गेम में मर्यादाओं और और लक्ष्मण रेखाओ का उल्लंघन कर रहे है। हम न तो लोगो की धार्मिक भावनाओं से खेल रहे है और न ही किसी की निजि जिन्दगी को खुले आम समाज के सामने नंगा कर रहे है। बल्कि हम गांधीजी के उस भाव केा आत्मसात कर निरंतर प्रयास कर रहे ह,ै जो चाहते थे विकास का मकसद तभी पूरा होगा जब इसका फायदा गॉंव में बैठे आखिरि व्यक्ति तक पहुंचगा। हम खबरिया चैनलों के कतार में शामिल नही बल्कि हम 24 घंटों मे कई रचनात्मक और ज्ञानवर्धक कार्यक्रम प्रस्तुत करते है। मैं पूछना चाहूंगा अपने उन साथियों से जिन्हे इस चैनल व उसके कार्यक्रमों में अनेक खामियॉं नजर आती है। वह संसद जो देश की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था है, में हेाने वाली बहस को अपने अखबरों में जगह देते है। सच्चाई यह है कि हंगामा जरूर अखबारेां की सुिर्खया बनता है मगर बहस, सवाल जवाब तथा विभिन्न नियमों के तहत उठने वाले मुददे उनके अखबारों से अकसर नदारद रहते है। जबकि इसके ठीक विपरित हमारी कोिशश ज्यादा से ज्यादा मुददों, सवालों तथा सरकार द्धारा चलाई जा रही योजनाओं से जुडी जानकारी लोगों तक पहुंचाने की रहती है। अन्तर सिर्फ इतना है हमें देश के एक प्रिंस कि चिंता नही बल्कि हमें उन करेाडो प्रिंस की चिंता है जो हर रोज किसी न किसी कारणों से मौत के मुंह में समा रहेे है। हमारे देश में जागरूकता का अभाव विकास में हेाने वाली देरी का एक प्रमुख कारण है। और हम इमानदारी से इस और सकारात्मक रवैये के साथ काम कर रहे है। इसमें हमें समय समय पर लोगेा ंका प्रेम और स्नेह भी प्राप्त होता है। इसका जीता जागता प्रमाण है हमारा कार्यक्रम लोकमंच और पब्लिक फोरम है। जिसमें दशZक देश के कोने कोन से अपने राय और सवाल रखते है। महज 50 मीनट में 40 फोन कौल आना अपने अपने आप सब पे सब बयॉं कर देता है। इसके अलावा महिलाओं और विभिन्न क्षेत्रों से दर्जनों कार्यक्रम हम प्रसारित करते है।लोकसभा चैनल अभी अपने शैशव काल में है। ऐसे मै बहुत सारी कमियों को हम सहज स्वीकार करते है। मगर इन सब के सहारे पूरी चैनल पर प्रश्न चिन्ह लगाना किसी भी तरह से उचित नही। जहॉं तक सवाल कर्मचारियों के छोड़ने का है यह एक अवश्यसंभावी प्रक्रिया है जिससे कोई भी मुंह भी चुरा सकता। इसके सहारे यह कह देना की चैनल में सब कुछ ठीक नही चल रहा है, एक नादानी भरा तर्क है। जहॉं तक परिवर्तन का सवाल है तो यह तो संसार का नियम है फिर भला हम इस प्रक्रिया से कैसे मुंह मोड़ सकते है। समय के साथ साथ हमने कई सुधार किये है और आगे भी हमारे यह प्रयास जारी रहेंगे।
रमेश भट्ट
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें