सोमवार, 1 जून 2009

15वीं लोकसभा से उम्मीद





15 वीं लोकसभा का पहला दिन कई मायनों में याद रखा जायेगा। पहली बार कोई महिला वह भी दलित लोकसभा में अध्यक्ष पद पर आसीन होंगी। महिला आरक्षण पर घिरी सरकार के लिए यह कदम किसी सिक्सर से कम नही। जानकारों की माने यह कदम न सिर्फ महिला सशक्तिकरण को बढावा देगा बल्कि कांग्रेस ने दलित समुदाय को यह संकेत भी दिया है कि कांग्रेस से अच्छा विकल्प उनके पास नही है। कुल मिलाकर दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र के लिए यह एक अच्छी शुरूआत है। इस बार सत्ता पक्ष के साथ साथ विपक्ष में भी कई महारथी है जो मुददों पर सरकार के सामने कम मुश्किल नही खडी करेंगे। बीजेपी में लालकृश्ण आडवाणी जहॉ 14वीं लोकसभा में सरकार के खिलाफ अकेले हल्ला बोलते थे। वहीं अब उनके साथ जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा, सुशमा स्वराज, राजनाथ सिंह और मुरलीमनोहर जोशी जैसे नेता खडे होगें। कांग्रेस के लिए सबसे बडी राहत इस बात की है कि उनकी स्थिति आंकडों के लिहाज से मजबूत है। पिछली बार की तरह नही कि बाहर से समर्थन दे रहे वामदल गाहे बगाहे सरकार को नीचा दिखाने से पीछे नही हटते थे। पिछली बार सदन का ज्यादातर समय शोरगुल में बीत गया। यहॉं तक की बजट और कई महत्वपूर्ण विधेयक बिना बहस के पारित हो गये। आशा करतें है कि इस बार यह नही होगा। इस बार सदन में युवाओं की भी एक लम्बी फौज मौजूद है। दिलचस्प देखना यह होगा कि यह इस कार्यशैली में कितनी जल्दी अपने को ढालते है। इनमें से ज्यादातर युवा वाकपटु है। श ायद कह रहें हो हम साथ साथ है। भारत की जनता को भी इस लोकसभा से बहुत उम्मीदें है। जनता चाहती है उनकी हर वोट के बदले जनप्रतिनीधि ईमानदारी के साथ काम करें और उनके कल्याण के लिए नीतिया और कानून बनाये।

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