इससे आशय है की सेहत सही तो सब कुछ सही। मगर सेहर के मामले में हमारी हालात पतली है। हर दिन नई बीमारियॉ हमारे सामने आ रही है। अब इस नई मसीबत स्वाइन फलू को ही देख लिजिए। दुनिया के साथ साथ भारत की परेशानी भी बड गई है। स्वास्थ्य मंत्री नॉट फिकर का मंत्र दे रहे है। अब इस इंसान को कौन समझाये । कैसे विश्वास करे सरकार की चिकनी चुपडी बातों पर वो भी तब जब उसे पता लगता है कि विश्व जनसंख्या में हमारी भागीदारी भले ही 16.5 हो मगर बिमारी के मामले में 20 फीसदी है। 2005 में सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के सहारे गांव की सेहत सुधारने के लिए कार्यक्रम बनाया। इस कार्यक्रम ने कुछ आशाऐं भी जगाई। मगर नतीजे खुश होने वाले नही है। आज स्वास्थ्य क्षेत्र की 76 फीसदी कमान नीजि हाथों में है। बाकी 22 फीसदी सरकार के नियंत्रण में है। नीजि अस्पतालों की तो पूछो मत। मरीज को बकरा समझते है। सही मायने में ये अस्पताल होटल बन गए है। अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का इनको अहसास नही। लिहाजा सरकार को चाहिए की इनकी मुनाफाखोरी की बीमारी का इलाज करेे। हमारे देश में स्वास्थ्य क्षेत्र को लेकर सरकारों ने गंभीरता नही दिखाई। आज भी हम स्वास्थ्य क्षेत्र में जीडीपी का महज 1.06 प्रतिशत खर्च कर रहे है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक विकासशील देशों को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 6 फीसदी हिस्सा सेहत पर खर्च करना चाहिए। 2004 में यूपीए सरकार ने इसपर जीडीपी का 2 से 3 फीसदी खर्च करने की बात कही थी। मगर लगता है यह सफर अभी लंबा है। स्वास्थ्य क्षेत्र के आंकडों पर अगर गौर किया जाए तो डर लगने लगता है। देश के 4711 उप केन्द्र राम भरेसे है। न एएनएम है, न ही स्वास्थ्य कर्मचारी। 68.6 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बिना डाक्टर के है। योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 10 लाख नर्स, 6 लाख डाक्टर और 2 लाख दन्तचिकित्सकों का टोटा है। भारत में सालान 36000 डाक्टर निकलते है। लगभग 60 हजार डाक्टर विदेशों में अपनी सेवा दे रहे है। हमारे गरीब भाई सरकारी अस्पतालों में घंटों इंतजार करते है। ऐसे में कुछ नीतियों में सख्त बदलाव की जरूरत है। देश के 1188 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में बिजली नही है। 1647 बिना पानी के है। आज डाक्टरों के एक साल के लिए गॉव में भेजनेकी बात कही जा रही है। मगर उससे पहले सरकार को वहांं बुनियादी सुविधाऐं मुहैया करानी होंगी। इसकेअलावा 56 प्रतिशत बच्चों का समय से टीकाकरण नही हेा पाता। देश के 40 फीसदी बच्चो का वजन कम है। कुपोषण को दूर करने में हमारी नाकामयाबी झलक रही है। यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 3साल से कम उम्र के 42.8 फीसदी बच्चे कुपोषण की गिरफत में है। मध्यप्रदेश का रिकार्ड कुपोषण के मामले में बेहद खराब है। आधी आबादी केे पास अब भी शौचालय की सुविधा नही है। बावजूद इसके हम लम्बे समय से सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान चला रहे है। 55 फीसदी जनसंख्या आज भी खुले में शौच जाने के लिए मजबूर है। विकसीत सरकारो ने एक नायाब तरीका अपनाया। इन सरकारों ने पानी को साफ बनाने और पर्यायवरण की शुद्धता बानने के लिख सरकारी खर्च बडा दिया है। भारत में भी आज दूशित पानी और हवा ने लोगो की सेहत खराब कर रखी है। और यह बडता जा रहा है। स्वस्थ्य रहने के लिए साफ पानी हवा और दैनिक जीवन में व्यायाम की जरूरत है। जिससे आज हम कोसो दूर है। बडी बात आज हम सभी को अपने स्तर पर भी कुछ न कुछ रचनात्मक भूमिका निभानी होगी।
umda !
जवाब देंहटाएंabhinav !
anupam !
बढिया आलेख।
जवाब देंहटाएंzxczxasdasd
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