गुरुवार, 15 अप्रैल 2010
नक्सली रणनीति पर पुनर्विचार हो।
क्या सरकार दन्तेवाड़ा से सबक लेकर नई रणनीति पर विचार करेगी। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि दन्तेवाडा जैसे घटनाक्रम की पनरावृत्ति न हो। मगर लगता है सरकार पूर्व आईपीएस अधिकारी ई एन राम मोहन की रिपोर्ट आने के बाद ही अगली रणनीति पर विचार करेगी। एक साधारण सिद्धान्त है कि युद्ध से पहले दुश्मन की क्षमता का सही आंकलन होना अनिवार्य है। उनके पास कितने लोगों की संख्या है, हथियारों की संख्या कितनी है। खफिया तन्त्र की स्थिति क्या है। इन सभी मामलों में यह अभियान पूरी तरह फेल रहा। दूसरी तरफ युद्ध लडने वालों का उत्साह। सोचिए उन हालातो के बारे में जहां सिर छिपाने के लिए छत नही है। भोजन की सही व्यवस्था नही है। पीने के साफ पानी का कोई इन्तजाम नही । बिजली की तो खैर छोडिए। खुले में शौच जाना उनकी मजबूरी है। इन सबमें सबसे बडी चुनौति भोगौलिक स्थिति की सही जानकारी में न होना। इन हालातों में लडाई बहुत मुिश्कल हो जाती है। इन हालातों में आप किसी से क्या अपेक्षा करेंगे। क्या इन हालातों में आप कोई युद्ध जीत सकते है। वही नक्सली इलाके के चप्पे चप्पे से वाकिफ है और आसानी से सुरक्षा बलों को अपने जाल में फंसा लेते है और देखते ही देखते 76 जवानों को अपनी जान गवानी पडती है। साढे तीन घंटे तक उनकी सहायता के लिए कोई नही पहुंचता। नक्सली इन सबका फायदा उठाकर सुरक्षा बलों के हथियार भी छीन ले जाते है। इस पूरे अभियान में राज्य पुलिस बल की भूमिका अहम है। मोर्चा उन्हें सम्भालना है जबकि अद्धसैनिक बल उन्हें सहायता करेंगे। मगर राज्य पुलिस की हालत भी खस्ता है। सीएजी की मानें तो अकेले छत्तीसगढ पुलिस के पास 20 फीसदी हथियारों की कमी है। जनसंख्या पुलिस अनुपात में भारी अन्तर है। पुलिस आधुनिकीकरण मामले में राज्यों का रवैया भी हिलाहवाली भरा रहा है। बिहार सरकार ने अभी तक सालाना योजना ही तैयार नही की है। पिश्चम बंगाल ने ऐसे-ऐसे साजोसमान की फेहरिस्त तैयार की है जो योजना में मूल रूप से अलग है। उधर सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नागरिक प्रशासन बहाली के साथ साथ विकास का कार्य कराने के लिए प्रतिबद्ध है। 8 राज्यों के प्रभावित 33 जिलों में में इन योजनाओ की प्रगति रिपोर्ट अपे्रल 2009 से जनवरी 2010 तक की सरकार ने जारी की है। नक्सल प्रभावित राज्यों में विकास कार्यक्रमों की स्थिति। जिन 33 जिलों की हम बात कर रहे है। उनमें झारखण्ड 10, छत्तीसगढ़ 7, उडीसा 5, बिहार 6, महाराश्ट्र 2, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के 1-1 जिले शामिल है। केन्द्र की कल्याणकारी योजनओं में खर्च प्रतिशत में इस साल सुधार देखने को मिला है। खासकर मनरेगा जैसी योजनाओं में।नरेगा -72.76 फीसदी, प्रधानमन्त्री ग्राम सडक योजना - 41.04 फीसदी, राश्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन -57.44 फीसदी, वनाधिकार कानून 2006 -37.06 फीसदी। पिछले साल के मुकाबले यहां सुधर देखने को मिला है। केन्द्र सरकार को राज्यों के साथ मिलकर दुबारा इस रणनीति पर विचार करना होगा। दूसरी तरफ राज्यों सरकारों को भी गम्भीरता के साथ इस अभियान से जुडना होगा। साथ ही विकास के कामों को तेजी से आगे बड़ाया जाय।
पुनर्विचार शुरू हो चुका है.....दिग्विजय सिंह और मणिशंकर अय्यर जैसे भोंपुओं को काम पर लगाया जा चुका है.....जो कह रहे हैं नक्सलियों के खिलाफ सख्ती नहीं की जानी चाहिये....
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