गुरुवार, 6 मई 2010
राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतिकरण योजना
हर गांव में बिजली के बल्ब जलेंगे। गांव की झोपडियों में दूधिया प्रकाश फैलेगा। गलियों से अंधेरे का नामोनिशान मिट जायेगा। 2012 तक भारत का हर गांव जगमगाने लगेगा। ऐसा मुमकिन हो पायेगा राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतिकरण योजना के कारण। 5 अप्रैल 2005 से यह योजना लागू हुई। लक्ष्य, 1 करोड 20 लाख गांवों केा बिजली से जोडना। कोशिश, 7 करोड़ 80 लाख परिवारों का अंधेरा दूर करना। सपना, 2 करोड़ 34 लाख बीपील परिवारों को मुफत बिजली के कनेक्शन देना । इसके लिए 11वीं पंचवषीZय योजना में 28000 करोड का आवंटन किया गया। योजना के मुताबिक 90 फीसदी अनुदान केन्द्र सरकार देती है। बाकी 10 प्रतिशत कर्ज राज्यो को आरईसी देती है। आरईसी इस कार्यक्रम की नोडल एजेंसी है। मौजूदा वित वर्ष में 5500 करोड का प्रावधान किया गया है।। खास बात यह है कि यह राशि पिछले वर्ष 6000 करोड के मुकाबले कम है। जबकि उर्जा मन्त्रालय से जुडी स्थाई समिति ने इसे 9000 करोड़ करने की सिफारिश की है। अब नज़र योजना के सफरनामे पर। 1 मार्च 2010 के मुताबिक सरकार 1 लाख 97 हजार 26 परिवारों को बिजली के कनेक्शन मुहैया करा चुकी है।योजना के तहत राज्य सरकारो केा डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंपनी होती है। रिपोट उस शर्त में शामिल की जाती है जब राज्य सरकारें 12 से 13 घंटे बिजली मुहैया कराने का वादा करें। मतलब केन्द्र सरकार पोल लगाकर तार खींच देगी। बिजली देना राज्य सरकार का काम है। बहरहाल यह योजना मिशन 2012 तक अपने लक्ष्य को भेद पायेगी इसको लेकर कई सवाल है। मसलन कई राज्यों ने ग्रामीण विद्युतिकरण कार्यक्रम तैयार ही नही किया है। उपर से जमीन अधिग्रहण में हो रही देरी, समय से पर्यायरवण की मंजूरी न मिल पाना, मानव संसाधन की कमी और सही बीपील सूची का न बन पाना जैसी समस्याऐं आम है। पर्याप्त बजट का आवंटन न होना भी इसकी राह में रोड़ा अटका रहा है। विद्युतिकरण समवर्ती सूची में नीहित है। लिहाजा इसके तहत निर्धारित किये गए लक्ष्य को प्राप्त करना केन्द्र और राज्य दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है। योजना के बेहतर तेजी लाने के लिए त्री स्तरीय निगरानी तन्त्र का गठन किया गया है। जिला स्तर में ग्रामीण विद्युतिकरण पर नज़र रखने के लिए निगरानी तन्त्र बनाने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है। साथ केन्द्र के स्तर पर अन्तर मन्त्रालय समिति का गठन किया गया है।
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