बीते लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने लोकसभा की 22 सीटें जीतकर सबकों चौंका दिया। शायद खुद कांग्रेस के लोगों के लिए यह जीत किसी अचम्भे से कम नही थी। मगर जीत तो जीत है चाहे उसके लिए कोई भी कारण गिनाए जाए। कांग्रेसियों के इसके पीछे राहुल फैक्टर काम करता दिखाई दिया। पिछले कुछ सालों में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने उत्तरप्रदेश को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला बनाया है। देश को सबसे ज्यादा प्रधानमन्त्री देने वाले इस राज्य में कांग्रेस का ग्राफ 1989 के बाद लगातार गिरता चला गया। एक समय जो मुस्लिम समुदाय कांग्रेस का प्रबल समर्थक था, बाबरी विध्वंस के बाद वह उससे दूर होता चला गया। मगर 2009 के लोकसभा चुनाव में वह वापस कांग्रेस की तरफ आता दिखाई दिया। यही कारण है कि कांग्रेस को न सिर्फ वोट फीसदी बल्कि सीट का भी फायदा मिला। उपर से मुलायम कल्याण मैत्री अध्याय का लाभांस सीधे-सीधे कांग्रेस के खाते में गया। बहरहाल कारण जो भी हो कांग्रेसी 2012 में यूपी के दुर्ग में झण्डा गाड़ने का सपना अकेले दम पर देखने लगे है। अब सवाल यह कि क्या यह ख्याली पुलाव है या वाकई इस बात पर दम है। दरअसल पिछले कुछ महिनों में यूपी में हुए 16 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के छोली में 2 सीटें ही गई। जबकि सबसे अहम मुददा यह रहा कि फिरोजाबाद सीट पर 1800 वोट लाने वाली कांग्रेस मात्र 6 महिने में 350000 वोट के साथ सपा के गड़ में सेंध लगा गई। इस चुनाव ने मुलायम को एक सबक भी दिया की जनता ज्यादा दिन तक परिवारवाद और मनमाने फैसले के बोझ तले नही दबी रह सकती। कांग्रेस पार्टी ने इस समय युद्ध स्तर पर सदस्यता अभियान चला रखा है। हाल के आंकड़ों से यह पता लगता है कि यह अभियान के तहत कांग्रेस से जुड़ने वाले लोगों की संख्या 20 लाख से बड़कर 60 लाख के आसपास पहुंच गई है। इस साल यूपी में पंचायत चुनाव तय है। 2011 में शहरी निकाय के चुनाव और 2012 में विधानसभा चुनाव है। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव। बहरहाल सबसे पहले राहुल गांधी यूपी में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में नए जोश का संचार कर रहे है। दलितों के घर भोजन कर रहे है ताकि माया की दलित जमीन को दरका सके। इधर मायावती की सामाजिक संरचना को तोड़ना किसी भी पाट्री के लिए नामुमकिन दिख रहा है। मुलायम सिंह मुसलमानों से कल्याण को गले लगाने के लिए माफी मांग चुके है। देखना दिलचस्प यह होगा कि यह माफीनामा वापस मुस्लिमों को उनकी ओर खींच पायेगा या नही। इधर अजीत सिंह की पार्टी का कांग्रेसीकरण होना मुश्किल लग रहा है। इस काम में सबसे बडी चुनौति उनके खुद के बेटे है जो मथुरा लोकसभा सीट से सांसद हैं। बहरहाल देश को सबसे बड़े राज्य जहां से 404 विधायक चुने जाते है। 80 सांसदों दिल्ली चुन कर आते है। वह राजनीतिक लिहाज से कितना महत्वपूर्ण है आप और हम समझ सकते है।
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