आज से लगभग 4 साल पहले देश भर में रोजगार यात्राऐं निकाली जा रही थी। गीत गाया जा रहा था। हमारे लिए काम नही, हमें काम चाहिए। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए 2006 में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की शुरूआत हुई। यह विश्व की अकेली ऐसी योजना है जो मांगने पर जरूरतमन्दों को रोजगार की गारंटी देती है। योजना का मकसद लोगों को गांव में ही काम मुहैया कराना है। गांव में न सिर्फ स्थाई परिसंपत्तियों का निर्माण हो बल्कि महिला और पुरूषों को समान मजदूरी मिल सके। बीते चार सालों में केन्द्र सरकार इस योजना पर भारी भरकम खर्चा कर रही है। काम का आवेदन करने पर 15 दिन में रोजगार देना अनिवार्य है। काम पूरा होने की तिथि से 15 दिन के भीतर मजदूरी देने का प्रावधान है। अगर मजदूरी समय पर नही मिलती तो मजदूरी मुआवजा अधिनियम 1936 के तहत मुआवजा देना होगा। मनरेगा योजना 16000 करोड़ के बजट के साथ शुरू हुई । आज यानि 2010-11 में इस योजना को 41100 करोड़ रूपये आवंटित किये है। यह मांग आधारित कार्यक्रम है लिहाजा सरकार को जरूरत पड़ने पर धन की उपलब्धता करवानी होगी। बीते तीन साल के औसत रोजगार के आंकड़ों पर अगर नज़र डाली जाए तो
साल औसत काम दिनों में
2007-08 42
2008-09 48
2009-10 52
इससे एक बात तो स्पष्ट है कानून बनने के चार साल के बाद में 100 दिन का रोजगार उपल्ब्ध कराने में आज भी हम नकामयाब रहे हैं। 11वीं पंचवषीZय योजना के अर्धवाषिZक समीक्षा में मनरेगा कार्यक्रम में क्रियान्यवयन में पिश्चम बंगाल का रिपोर्ट कार्ड सबसे खराब रहा है। पिश्चम बंगाल 28 दिन का ही औसल रोजगार उपलब्ध करा पाया है। जबकि काम मुहैया कराने का राष्ट्रीय औसत 48 दिन है। मगर 15 राज्य मसलन हिमांचल, महाराष्ट्र, हरियाणा, असम, मेघालय, तमिलनाडू जम्मू और कश्मीर, उत्तराखण्ड, उड़ीसा, कर्नाटक, पंजाब, पिश्चम बंगाल, बिहार, गुजरात और केरल जैसे राज्य सालाना 48 दिन का औसत रोजगार मुहैया कराने में नकामयाब रहे हैं। सालाना आधार में देश भर में कितने परिवारों को रोजगार मिला इन आंकड़ों पर अगर गौर करें तो
साल कितने परिवारों को रोजगार मिला करोड़ों में
2006-07 2.10
2007-08 3.39
2008-09 4.51
2009-10 5.06
नरेगा के तहत 60 फीसदी न्यूनतम राशि मजदूरी के लिए खर्च करनी आवश्यक है। राज्यों ने इस बात का ध्यान रखा है कि योजना के मुताबिक 60 फीसदी न्यूनतम हिस्सा मजदूरी के तौर पर प्रदान करना है। एक नज़र राज्यवार मजदूरी के औसत आंकड़ों पर
साल आवंटित राशि का मजदूरी पर खर्च
2006-07 66
2007-08 68
2008-09 67
2009-10 68
नरेगा के तहत कानून के मुताबिक 100 दिन का रोजगार मुहैया कराना जरूरी है। मगर इस कार्य में ज्यादातर राज्यों का रिपोर्ट कार्ड निराश करने वाला है। 100 दिन रोजगार पाने वाले परिवारों की अगर बात की जाए को रोजगार गारंटी का सच खुद पर खुद सामने आ जायेगा। 2006-07 में 10.29 फीसदी, 2007-08 में 10.62 फीसदी, 2008-09 में 14.48 फीसदी और 2009-10 में 13.24 फीसदी परिवारों को 100 दिन का रोजगार मिला पाया। अरूणांचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणीपुर और मिजोरम जैसे राज्यों में किसी भी परिवार को 100 दिन का रोजगार नही मिल पाया। फरवरी 2006 से सितम्बर 2009 के बीच 79 लाख कार्य चलाए गए जिनमे केवल 31 लाख ही पूरे हो पाये जो पूरे काम का 39 फीसदी है। 2009-10 में 40.98 लाख काम चलाए गए जिनमें 67 फीसदी काम जल संरक्षण से जुड़े है।
महात्मा गांधी नरेगा में शिकायतों का अंबार है। यह बात दिगर है कि हमारी सरकारों के कानों तक कितनी शिकायतें पहुंच पाती है। जो शिकायतें आम है उनमें प्रमुख है जागरूकता का अभाव, समय से काम का न मिलना, मजदूरी का समय पर और पर्याप्त राशि का न मिलना, मस्टर रोल जैसे उचित रिकार्ड का ना रखा जाना, बैंक और पोस्ट आफिसों के बार बार चक्कर लगाना और योजना के तहज तैयार का की गुणवत्ता। सरकारी आंकड़़ों के लिहाज से बीते तीन सालों में 1331 शिकायतें सरकार के संज्ञान में आई जिसमें सबसे ज्यादा 419 उत्तर प्रदेश से 235 मध्य प्रदेश 180 राजस्थान 125 बिहार और 87 झारखण्ड से है।
महात्मा गंाधी नरेगा में महिलाओं की हिस्सेदारी में तमिलनाडू राज्य अव्वल रहा है। इस राज्य में मनरेगा में महिलाओं की हिस्सेदारी 79 फीसदी है जबकि 2008-09 साल में बिहार में 30 फीसदी झारखण्ड में 28 फीसदी और उत्तरप्रदेश में 18 फीसदी रही जो की कानून के प्रावधन जिसमें महिलाओं की न्यूनतम 33 फीसदी हिस्सेदारी होनी चाहिए से काफी नीचे है। नरेगा के तहत जारी किये जार्ब कार्ड की वैधानिकता 5 साल की होती है। पिछले साल सरकार के मजदूरी राशि को 100 रूपये तो कर दिया है मगर रोजगार की अवधि 100 दिन से ज्यादा करने पर हाथ खड़े कर दिये हैं। इसके पीछे सीधा सा तर्क है जब हम 100 दिन का रोजगार ही मुहैया नही कर पर रहे है तो काम के दिन बड़ाने से क्या फायदा। मनरेगा के काम का विस्तार किया गया है। इसके तहत सिंचाई सुविधा, बागवानी, पौंधा रोपण और वनीकरण जैसे कामों को लिया गया है। साथ ही इस बात पर जोर दिया गया है कि रोजगार देने में गरीब, अनुसूचित जाति, जनजाति को प्राथमिकता दी जाए। सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का फायदा नरेगा कामगारों को देने का रास्ता साफ कर दिया है
महात्मा गांधी रोजगार में सरकार हर स्तर पर निगरानी व्यवस्था को मजबूत करना चाहती है। इसके लिए हर जिले पर एक लोकपाल नियुक्त करने के दिशानिर्देश जानी किये गए मगर पंजाब को छोड़कर अब तक किसी राज्य ने इस पर अमल नही किया। समाज के जागरूक लोगों का एक पैनल गठित करने की बात कही गई है। सोशल आडिट को आवश्यक कर दिया गया है। पंचायतों को अपनी भूमिका प्रमुखता से निभानी है। इस योजना को सफल बनाने में सांसदों का भी योगदान अहम हो सकता है। दरअसल जिला स्तर में निगरानी समिति का अध्यक्ष सासन्दों को बनाया गया है। बकायदा सालाना कितनी बैठकें राज्य वार होनी है या जिले वार होनी है इसके दिश निर्देश केन्द्र ने जानी कर रखें हैं। मसलन सालान आधार में 28 राज्यों में 112 बैठकें होनी चाहिए मगर 2006-07 में 35, 2007-08 में 36 और 2008-09 में 35 बैठकें भी हो पायी। हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, मिजोरम ,दादर और नागर हवेली में पिछले 2 सालों में एक भी बैठक नही हुई। वही 619 जिलों में कुल 2476 बैठकें होनी चाहिए। मगर 2006-07 में 619, 2007-08 में 912 और 2008-09 में 579 बैठकें ही हुई। इन बैठको की अध्यक्षता हमारे सासन्द महोदयों को करनी थी। इससे पता चलता है कि निगरानी व्यवस्था की स्तर क्या है। यहां सांसदों का यह भी कहना है कि महज अध्यक्ष बना दिया गया है उनके पास किसी तरह की कोई ताकत नही है।
महात्मा गांधी नरेगा एक ऐतिहासिक योजना है। इसके लिए ग्रामीण विकास का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया जा रहा है। मगर जरूरतमन्दों तक अभी भी योजना का सम्पूर्ण लाभ नही पहुंच पा रहा है। इसके लिए राज्य सरकारों को गम्भीरता से काम करना होगा। साथ ही केन्द्र सरकार को अच्छा प्रदशZन करने वाले राज्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए साथ ही खराब प्रदशZन करने वाले राज्यों पर जुर्माना लगाना चाहिए। सिर्फ पैसा बहाने से कुछ नही होगा । मनरेगा के तहत कराये जा रहे कार्यो की समीक्षा करनी होगी। योजना जरूरत ऐतिहासिक है मगर इसे बेहतर बनाने के लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना पड़ेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें