12वी पंचवर्षिय योजना के दस्तावेज को राष्ट्रीय विकास परिषद ने हरी झंडी दिखा दी। 2012 से 2017 तक विकास की तस्वीर और देष की तकदीर किस दिशा में चलेगी इसकी लिए विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक बदलावों की तरफ इशारा किया गया है। 12 पंचवर्षीय योजना का असली मकसद विकास को तेज, टिकाऊ और ज्यादा समग्र बनाना है। आने वाले सालों में 9 फीसदी विकास दर का लक्ष्य रखा गया है। जबकि 11वीं पंचवर्षिय योजना में 8.2 फीसदी विकास दर रहने का अनुमान है। खासकर तब जब वैश्विक स्तर में सुस्त विकास के चलते हमारी अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ा है। अर्थव्यवस्था के पहले 6 माह के आंकड़ों को देखकर इस वित्तिय वर्ष में रखे गए विकास दर के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल लग रहा है। आर्थिक संपादकों के सम्मेलन में प्रणब मुखर्जी यह स्वीकार भी कर चुकें हैं कि मौजूदा वित्तिय वर्ष में निधार्रित किए गए विकास लक्ष्य तक पहुंचना कठिन काम होगा। साथ ही राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.6 फीसदी तक लाने का काम भी आसान नही होगा। यह दस्तावेज ऐसे समय में सामने आया है जब सरकार के सामने कई चुनौतियां मुंह बाएं खड़ी है। महंगाई बेलगाम है। अर्थव्यवस्था की रफतार सुस्त है। कच्चे तेल के दाम आसपमान छू रहे हैं। भ्रष्टाचार के चलते सरकार की साख गिरी है। हमारे लिए चुनौति वैश्विक आर्थिक बदलाव के झंझावातों को भी सहते हुए समग्र विकास की राह में आगे चलना है। 12वी पंचवर्षिय योजना में चार क्षेत्रों को प्रमुखता दी गई है। स्वास्थ्य के स्थर को सुधारना, शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव के साथ उसका कुशल क्रियान्वयन करना। साथ ही कौशल विकास कार्यक्रम को तेजी से लागू करना। पर्यायवरण संबंधी रूकावटों केा दूर कर विकास मे तेजी लाना और आधारभूत ढांचे में बड़े निवेष लाने के लिए नीतिगत सुधारों को अमलीजामा पहनाना।
वर्तमान में सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में 1 फीसदी के आसपास खर्च करती है जबकि 2004 में उसके न्यूनतम साझा कार्यक्रम में 11 वें प्लान के अंत तक जीडीपी का 2 से 3 फीसदी खर्च की बात कही गई थी। अब सरकार आने वाले सालों में जनस्वास्थ्य की स्थिति को सुधारने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर ज्यादा खर्च करेगी। चूंकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है इसलिए राज्य सरकारों को अपने बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता देनी होगी। ताकि उपकेन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को बेहतर सुविधाऐं मिल पाए। इस क्षेत्र में मानव संसाधनों की कमी को दूर किया जा सके। दूसरा सवाल शिक्षा के अधिकार को लागू करने से जुड़ा है। इसके लिए सरकार आने वाले सालों में भारी भरकम खर्च करेगी। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है जहां 10वीं पंचवर्षिय योजना में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में 17 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया था वहीं 11 वें प्लान में यह 71 हजार करोड़ था। अब शिक्षा 1 से 14 वर्ष के बच्चों का संवैधानिक अधिकार है इसलिए सरकार इस क्षेत्र में पर्याप्त संसाधन मुहैया कराने के लिए बाध्य है। भारत सरकार 2020 तक 50 करोड़ युवा आबादी को कौशल विकास कार्यक्रम से जोड़ना चाहती है ताकि उन्हें आजीविका के लिए बेहतर रोजगार मिल सके।
तीसरा पर्यायवरण के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। खासकर 33 फीसदी वनीकरण के लक्ष्य को पाना जो वर्तमान में 23 फीसदी के आसपास है। पूरे विश्व के सामने जलवायु परिवर्तन आज बड़ी चिंता का विषय है। इस मुद्दे पर पूरे विश्व में चिंतन मनन चल रहा है। भारत सरकार ने इससे निपटने के लिए दिर्घकालिक रणनीति के तहत आठ मिशनों का गठन किया है जो पर्यायवरण संरक्षण के भावना से ओतप्रोत हैं। इसके अलावा परियोजनाओं में होन वाली देरी का सबसे बड़ा कारण समय से पर्यावरण की मंजूरी न मिलन है। इसके चलते न सिर्फ परियोजनाऐं लंबित है बल्कि उसकी लागत में भी भारी इजाफा हो रहा है। नतीजतन इसका सीधा असर विकास की गति पर पड़ता है। नदियों को प्रदूषण से बचाने के गंभीर उपाय हमें करने होंगे। गंगा एक्शन प्लान, यमुना एक्शन प्लान और राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर खास ध्यान देना होगा। चैथा बुनियादी ढांचा। सही मायने में यह विकास का इंजन है। इसकी कमी के चलते विकास की रफतार को बरकरार रखना मुमकिन नही है। बुनियादी ढांचे मसलन सड़क, रेल, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली उत्पादन, दूरसंचार तेल एवं गैस पाइपलाइन और सिंचाई व्यवस्था में व्यापक सुधार आज देश की सबसे बड़ी जरूरत है। 12वें प्लान में 9 फीसदी विकास दर को पाने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की बात कही है। 10 वे प्लान में बुनियादी ढांचे में खर्च जीडीपी के 5 फीसदी था जो बढ़कर 11वें प्लान में 8.9 फीसदी था। अब 12 प्लान में जीडीपी का 11 फीसदी तकरीबन 41 लाख करोड़ रूपये बुनियादी ढांचे पर खर्च किए जाऐंगे। गौर करने की बात यह है कि इसका 50 फीसदी हिस्सा निजि क्षेत्र से लाने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे देखा जाए तो 11 वे प्लान के पहले चार साल में दूरसंचार और तेल व गैस पाइपलाइन में अच्छा निवेश हुआ। मगर बिजली उत्पादन, रेलवे, सड़क और बंदरगाह में निवेश जरूरत में मुताबिक नही हो पाया। खासकर बिजली उत्पादन के तहत रखे गए 78700 मेगावाट के लक्ष्य को हम प्राप्त नही कर पाए। कहा जा रहा है कि केवल 50 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली के उत्पादन का लक्ष्य पूरा हो पाएगा। योजना आयोग के मुताबिक 11 वे प्लान में 500 बिलियन डालर के निवेश के लक्ष्य 15 फीसदी से पीछे रह जाएगा। 11 वे प्लान में कुल निवेश का 30 फीसदी निजि क्षेत्र से आया। इसलिए 50 फीसदी निजि निवेश को पाने के लिए हमें हर स्तर पर मौजूद कार्यषैली में बदलाव लाने की जरूरत है। वर्तमान में भारत में 1017 सार्वजनिक निजी भागीदारी के कुल 486603 करोड़ लागत की परियोजना अमल में लाई गई हैं। भारत में योजनाओं का सफल क्रियान्वयन हमेशा एक चुनौति रहा है। केन्द्र सरकार की ज्यादातर केन्द्रीय प्रयोजित योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को नही मिल पाता। यहां तक की राज्य सरकारें संसाधनो के अभाव में पूरी राशि खर्च नही कर पा रही हैं। व्यापक निगरानी व्यवस्था का कमी के चलते योजनाऐं अपने मकसद से भटक रहीं है। आज देश में सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, शिक्षा का अधिकार जैसे कानून मौजूद हैं। भोजन के अधिकार का सबको इंतजार है। सवाल उठता है की आजादी के 64 साल बीत जाने के बाद भ्रष्टाचार, बरोजगारी, अशिक्षा और भूखमरी जैसी समस्याऐं क्यों व्याप्त हैं। आज इन ज्वलंत सवालों के जवाब तलाशने की जरूरत है ? 11 विकासोन्मुखी पंचवर्षिया योजनाओं ने इस देश को क्या दिया? इन योजनाअेां के क्रियान्वयन को लेकर हमारा अनुभव क्या रहा ? क्या यह दस्तावेज पुरानी योजनाओं के अनुभव से सीख लेकर तैयार किया गया है? है या यह एक महज रस्मअदायगी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें