मैं मीडिया मजदूर हूं मैं इल्म से मजबूर हूं
जो हो गये है भष्ट पथ मैं उन पथों से दूर हूं
मै! प्रशासन की प्रसव पीडा में दृष्टि डालता हूं
राजनीतिक रूग्णता के रोग को खंगालता हूं
मैं आइना हूं आज हिन्दुस्तान के हर भाग का
चिन्गारियो! में भी भरोसा हूं लपट और आग का
विश्वास है खुद का खुदी पर इसलिये मैं शूर हूं
मैं मीडिया मजदूर हूं और इल्म से मजबूर हूं
कल्पना साकार करने की कला मै! जानता हूं
हर तन्त्र का प्रहरी बना, प्रहार करना जानता हूं
मैं वतन की सरहदों से भी खबर को खी!चता हूं
मै! विवश होकर वतन के हर चमन को सी!चता हं
मै! सियासी हर खबर को कैमरे मे! डालता हूं
संसद में हो रहे व्यभिचार को ख!गालता हूं
खोलने को हर खबर , इस राज की ,मजबूर हूं
मैं मीडिया मजदूर हूं और इल्म से मजबूर हूं
बीथिका , बाजार में बे - खो!प हो कर घूमता हूं
खुद खबर बनकर खबर को हर खबर मे! ढूंढता हूं
ढूंढता हूं मैं वतन के ,तल में दबे अवशेषों को
धारणा दिल में बसी है मैं संवारू देश को
मैं खोजता हूं हर उपायों को ,धरा बचती रहे
सहयोग में मेरी कला भी कुछ नया रचती रहे
इसलिये हर भ्रष्टता का बन गया नासूर हूं
मै! मीडिया मजदूर हूं और इल्म से मजबूर हूं
दे रहा हूं हर खबर जनता जगाने के लिये
संघर्श है व्यभिचार को जड़ मिटाने के लिये
हर सियासी अडचनों में मुस्करा कर खेलता हूं
कुर्बानिया गम्भीर होकर मैं हमेशा झेलता हूं
लोग चाहें कुछ कहे! अपना हूनर में जानता हूं
मै! कैमरे से सा!सदो! की बाणीयों को छानता हूं
मैं मीडिया के इस हूनर में भी हमेशा हूर हूं
मैं मीडिया मजदूर हूं और इल्म से मजबूर हूं
आभार राजेन्द्र बहुगुणा
जो हो गये है भष्ट पथ मैं उन पथों से दूर हूं
मै! प्रशासन की प्रसव पीडा में दृष्टि डालता हूं
राजनीतिक रूग्णता के रोग को खंगालता हूं
मैं आइना हूं आज हिन्दुस्तान के हर भाग का
चिन्गारियो! में भी भरोसा हूं लपट और आग का
विश्वास है खुद का खुदी पर इसलिये मैं शूर हूं
मैं मीडिया मजदूर हूं और इल्म से मजबूर हूं
कल्पना साकार करने की कला मै! जानता हूं
हर तन्त्र का प्रहरी बना, प्रहार करना जानता हूं
मैं वतन की सरहदों से भी खबर को खी!चता हूं
मै! विवश होकर वतन के हर चमन को सी!चता हं
मै! सियासी हर खबर को कैमरे मे! डालता हूं
संसद में हो रहे व्यभिचार को ख!गालता हूं
खोलने को हर खबर , इस राज की ,मजबूर हूं
मैं मीडिया मजदूर हूं और इल्म से मजबूर हूं
बीथिका , बाजार में बे - खो!प हो कर घूमता हूं
खुद खबर बनकर खबर को हर खबर मे! ढूंढता हूं
ढूंढता हूं मैं वतन के ,तल में दबे अवशेषों को
धारणा दिल में बसी है मैं संवारू देश को
मैं खोजता हूं हर उपायों को ,धरा बचती रहे
सहयोग में मेरी कला भी कुछ नया रचती रहे
इसलिये हर भ्रष्टता का बन गया नासूर हूं
मै! मीडिया मजदूर हूं और इल्म से मजबूर हूं
दे रहा हूं हर खबर जनता जगाने के लिये
संघर्श है व्यभिचार को जड़ मिटाने के लिये
हर सियासी अडचनों में मुस्करा कर खेलता हूं
कुर्बानिया गम्भीर होकर मैं हमेशा झेलता हूं
लोग चाहें कुछ कहे! अपना हूनर में जानता हूं
मै! कैमरे से सा!सदो! की बाणीयों को छानता हूं
मैं मीडिया के इस हूनर में भी हमेशा हूर हूं
मैं मीडिया मजदूर हूं और इल्म से मजबूर हूं
आभार राजेन्द्र बहुगुणा
लोग चाहें कुछ कहे! अपना हूनर में जानता हूं
जवाब देंहटाएंwah bahut khooobbbbbb
अपनी कविता मिडीया मंच डॉट कॉम पर प्रकाशन की अनुमति देते हुए इस sathii66@gmail.com भेजने का कष्ट करें,,
जवाब देंहटाएं