मौका जश्न का है। उपलब्धियों के बखान का है। जनता के सामने रिपोर्ट पेश करने का है। दरअसल संयुक्त प्रगतीशील गठबंधन ने सत्ता में अपने 9 साल पूरे कर लिए है। प्रधानमंत्री ने प्राथमिकताऐं न सिर्फ गिनाई उसमें सफलता पाने की दमखम भी रखा। खाली मिले ग्लास को भरने का दावा किया। 9 सालों में विकास वह भी सर्वसमावेशी हुआ, अर्थव्यवस्था में सुधार आया, गरीब घटी, महंगाई काबू में आई। विदेशी दोस्तों के साथ रिश्ते आगे बढ़े यानी हर क्षेत्र में सरकार ने चैका मारा। हमार अच्छा काम विपक्षी दलों को रास नही आया इसलिए सरकार के खिलाफ गलत प्रचास प्रसार कर रहे है। सोनियां गांधी ने भाषण दिया तो 9 सालों में शुरू हुई योजनाओं का डंगा पीटा बल्कि बीजेपी को भी लगे हाथ खरी खोटी सुना दी। प्रधानमंत्री के पीछे खड़े होने की बात कही और बचाव की मुद्रा में न रहने की पार्टी को नसीहत दी। 22 मई 2004 को सत्ता में आया यूपीए ने अपने पहले पांच साल में कई ऐतिहासिक काम किए। सबसे पहले 2005 में सूचना का अधिकार काूनन के जरिये पारदर्शिता को एक नया अघ्याय लिखा। 2006 में महात्मा गांधी नरेगा कानून अमल में आया। इसमें काम मांगने में 100 दिन का रोजगार देने का प्रावधान था। साथ ही 15 दिन में मजदूरी देने का प्रावधान किया गया। समय से पैसा न मिलने पर मुआवजा देने की बात भी कही गई। अकुशल कामगारों के लिए गांवों में यह कानून एक वरदान बन गया। अब रोजगार के बाद नजर दौड़ाई गई स्वास्थ्य क्षेत्र की ओर। मातृ मृत्यृ दर और शिशू मृत्यु दर में कमी लाने के लिए राष्टीय गा्रमीण स्वास्थ्य मिशन की शुरूआत की गई। इसमें सब सेन्टर, प्राइमरी हेल्थ सेन्टर, कम्यूनिटी हेल्थ सेन्टर और जिला अस्पताल में मानव संसाधन के साथ साथ उपचार के लिए जरूरी साजो समान का आपूर्ति होने लगी। 108 जैसी इर्मेजेंसी सुविधाओं ने लोगों को बड़ी सहुलियत प्रदान की। इसके लिए अलावा सरकार ने भारत निर्माण के तहत चलाई जा नही योजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया। इसमें इंदिरा आवाज योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतिकरण योजना सिंचाई योजना के साथ साथ गांवों में दूरसंचार के विकास आदि योजनाऐं शामिल थी। न सिर्फ गांवों में बल्कि शहरों में भी जवाहरलाल नेहरू अरबन रेन्यूवल मिशन की शुरूआत की गई। ताकि शहरों के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए। 2008 के बजट में सरकार के किसानों के 71000 करोड़ का ऋण माफी योजना की घोषणा की। इस ऐलान ने सरकार को चुनावी लाभ तो दिया मगर हाल में आई सीएजी की रिपोर्ट ने इसमें हुई भारी अनिमियताओं का ख्ुालासा किया। बाद इतने तक ही समिति नही रही असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए एक सामाजिक योजना प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की शुरूआत की गई। इसमें प्रति परिवार 30 हजार रूपये के बीमा का प्रावधान है। साथ ही आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाने के लिए फारेस्ट राइट एक्ट लाया गया। इसके बाद 26 दिसंबर को मुंबई में आतंकी हमला हुआ जिसने देश को हिला कर रख दिया। आनन फानन में बदलाव किए गए। कानून में बदलाव किया गया। 4 एनएसजी हब स्थापित किए गए। एनआइए का गठन हुआ। इस बीच तेल के बढ़ते दाम और महंगाई ने आम आदमी को परेशान कर रखा था। इन सबके बावजूद 2009 के आम चुनाव में जनादेश यूपीए के पक्ष में गया। उत्तराखंड और दिल्ली में तो उसने बीजेपी का सूपड़ा साफ कर दिया। आंध्र प्रदेश में न सिर्फ उसने वापसी बल्कि दिल्ली का रास्त कांग्रेस के लिए आसान कर दिया। सबसे अच्छी खबर उत्तरप्रदेश से आई जहां पार्टी के 21 सांसद चुन कर आए। 2004 में 145 सीट जीतने वाली यूपीए ने पांच सालों में यहा आंकड़ा 206 तक पहुंचा दिया। लौहपुरूष को चुनाव में चेहरा बनाने वाली बीजेपी के काला धन का मुददा भी जनता को नही खींच पाया। बीजेपी 2009 का चुनाव बुरी तरह हार गई। कांग्रेस के लिए जीत बड़ी थी। प्रधानमंत्री ने लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं में खरा उतरने का वादा किया। 100 दिन का एजेंडा सेट किया। मंत्रालयों को 3 महिने जनता के सामने रिपोर्ट पेश करने को कहा। मंत्रालयों ने भी जोर शोर से लक्ष्य निर्धारित किए। इसमें सबसे ज्यादा चर्चा में रहा सड़क और परिवहन मंत्री को प्रतिदिन 20 किलोमीटर सड़क बनाने का लक्ष्य। ऐसी ही महत्वकांक्षी लक्ष्य बाकी मंत्रालयों ने भी रखे। जनमानस को लग रहा था कि अब विकास और तेजी से होगा। अमीरी गरीबी को खाई पटेगी। अब तक सरकार का सामाजिक एजेंडा उसकी सबसे बड़ी ताकत थी। मगर शायद किसी ने सोचा भी नही होगा कि यूपीए 1 में बोए गए बीज अब उसके लिए कांटे बनने जा रहे है। एक के बाद एक घोटाले ने सरकार को अनुत्तरित कर दिया। राष्टमंडल खेल, 2 जी स्पेक्ट्रम, कोलगेट, रेलगेट, मनरेगा और किसान ऋण माफी योजना ने सरकार की सारी साख मिटटी में मिला दी। सड़क से लेकर संसद तक सरकार को जवाब देना मुश्किल पड़ रहा था। एक घोटाले की तपिश कम नही होती कि दूसरा घोटला सरकार की मुश्किलें बड़ा देता। विपक्ष संसद नही चलने देता और सरकार बेदाग होने का दंभ भरती। देखते देखते यूपीए दो के चार साल पूरे हो गए। सीएजी सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट सरकार को असहज करती रही। सहयोगी साथ छोड़ते चले गए। और इन सब के बीच जनमानस अपने आप को ठगा महसूस करने लगी। लोकपाल को लेकर देश में जबरदस्त आंदोलन हुआ। अरविंद अन्ना और रामदेव सरकार के दुश्मन गए। जनता सड़कों पर थी और सरकार की छिछालिदर हो रही थी। अन्ना के आंदोलन ने सरकार और संसद दोनों को डरा दिया। आनन फानन में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टौलरेन्स की आवाजें आने लगी। सरकार ने रामदेव को न सिर्फ लाठी से डराया बल्कि अरविन्द और अन्ना के रास्ते भी जुदा हो गए। आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर सरकार कुछ खास नही कर पाई। नक्सली हमले और आतंकी घटनाओं से आन्तिरक सुरक्षा से जुड़ी खामियों को भी सामने रख दिया। कुल मिलाकर उपलब्धियां अगर हैं तो सरकार जानती है की घोटालों के शोर में वह नही सुनाई देंगी। सरकार के दक्षिण का मजबूत द्धार आंध्रप्रदेश भी हाथ ने निकलता जा रहा है। पृथक तेलांगाना राज्य का समाधान सरकार नही खोज पाई। कांग्रेस अपनी गल्तियों से यहां भी कमजोर दिखाई दे रही है। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री और सामाजिक एजेंडे को आगे लेकर चल रही यूपीए अध्यक्ष सोनियां गांधी के बीच संतुलन बिगड़ने लगा। नतीजा सरकार और संगठन के सुर लगातर बदलते रहे। अब सरकार की मुश्किल मिशन 2014 है। मगर यहां अरमानों को पंख लगाने के लिए न मनरेगा है न किसान ऋण माफी योजना। और न ही 2004 के तरह कामन मिनिमम प्रोग्राम। सरकार भारत निर्माण का जोर शोर से प्रचार कर तो रही है मगर स्वयं उसे इस बात का अहसास भी है कि जो जनता शाइनिंग इंडिया को नकार सकती है वह भारत निर्माण को भी खारिज कर सकती है। अब सरकार की सारी उम्मीद अपनी महायोजना आपका पैसा आपके हाथ, के भरोसे है। सरकार के रणनीतिकार इसे पहले ही गेमचेंजर बता चुके है। आशा और उम्मीद से भरी यह महत्वकांक्षी योजना क्या नोट के बदले वोट में तब्दील हो पाएगी यह जनता तय करेगी। मगर माहौल सरकार के प्रतिकूल है। ऐसे में सरकार बोनस के तौर पर खाद्य सुरक्षा काूनन लाकर अपनी उड़ान को पंख लगाना चाहती है। भारत निर्माण का प्रचार प्रसार के लिए 180 करोड़ बहाए जा रहे है। जनता को समझाया जा रहा है। हमने आप को घर दिया है, काम दिया है। हमने देश का विकास किया। मगर घोटलों के तूफान में कुछ सुनाई नही दे रहा है।
बुधवार, 22 मई 2013
9 साल का हासिल ?
मौका जश्न का है। उपलब्धियों के बखान का है। जनता के सामने रिपोर्ट पेश करने का है। दरअसल संयुक्त प्रगतीशील गठबंधन ने सत्ता में अपने 9 साल पूरे कर लिए है। प्रधानमंत्री ने प्राथमिकताऐं न सिर्फ गिनाई उसमें सफलता पाने की दमखम भी रखा। खाली मिले ग्लास को भरने का दावा किया। 9 सालों में विकास वह भी सर्वसमावेशी हुआ, अर्थव्यवस्था में सुधार आया, गरीब घटी, महंगाई काबू में आई। विदेशी दोस्तों के साथ रिश्ते आगे बढ़े यानी हर क्षेत्र में सरकार ने चैका मारा। हमार अच्छा काम विपक्षी दलों को रास नही आया इसलिए सरकार के खिलाफ गलत प्रचास प्रसार कर रहे है। सोनियां गांधी ने भाषण दिया तो 9 सालों में शुरू हुई योजनाओं का डंगा पीटा बल्कि बीजेपी को भी लगे हाथ खरी खोटी सुना दी। प्रधानमंत्री के पीछे खड़े होने की बात कही और बचाव की मुद्रा में न रहने की पार्टी को नसीहत दी। 22 मई 2004 को सत्ता में आया यूपीए ने अपने पहले पांच साल में कई ऐतिहासिक काम किए। सबसे पहले 2005 में सूचना का अधिकार काूनन के जरिये पारदर्शिता को एक नया अघ्याय लिखा। 2006 में महात्मा गांधी नरेगा कानून अमल में आया। इसमें काम मांगने में 100 दिन का रोजगार देने का प्रावधान था। साथ ही 15 दिन में मजदूरी देने का प्रावधान किया गया। समय से पैसा न मिलने पर मुआवजा देने की बात भी कही गई। अकुशल कामगारों के लिए गांवों में यह कानून एक वरदान बन गया। अब रोजगार के बाद नजर दौड़ाई गई स्वास्थ्य क्षेत्र की ओर। मातृ मृत्यृ दर और शिशू मृत्यु दर में कमी लाने के लिए राष्टीय गा्रमीण स्वास्थ्य मिशन की शुरूआत की गई। इसमें सब सेन्टर, प्राइमरी हेल्थ सेन्टर, कम्यूनिटी हेल्थ सेन्टर और जिला अस्पताल में मानव संसाधन के साथ साथ उपचार के लिए जरूरी साजो समान का आपूर्ति होने लगी। 108 जैसी इर्मेजेंसी सुविधाओं ने लोगों को बड़ी सहुलियत प्रदान की। इसके लिए अलावा सरकार ने भारत निर्माण के तहत चलाई जा नही योजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया। इसमें इंदिरा आवाज योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतिकरण योजना सिंचाई योजना के साथ साथ गांवों में दूरसंचार के विकास आदि योजनाऐं शामिल थी। न सिर्फ गांवों में बल्कि शहरों में भी जवाहरलाल नेहरू अरबन रेन्यूवल मिशन की शुरूआत की गई। ताकि शहरों के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए। 2008 के बजट में सरकार के किसानों के 71000 करोड़ का ऋण माफी योजना की घोषणा की। इस ऐलान ने सरकार को चुनावी लाभ तो दिया मगर हाल में आई सीएजी की रिपोर्ट ने इसमें हुई भारी अनिमियताओं का ख्ुालासा किया। बाद इतने तक ही समिति नही रही असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए एक सामाजिक योजना प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की शुरूआत की गई। इसमें प्रति परिवार 30 हजार रूपये के बीमा का प्रावधान है। साथ ही आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाने के लिए फारेस्ट राइट एक्ट लाया गया। इसके बाद 26 दिसंबर को मुंबई में आतंकी हमला हुआ जिसने देश को हिला कर रख दिया। आनन फानन में बदलाव किए गए। कानून में बदलाव किया गया। 4 एनएसजी हब स्थापित किए गए। एनआइए का गठन हुआ। इस बीच तेल के बढ़ते दाम और महंगाई ने आम आदमी को परेशान कर रखा था। इन सबके बावजूद 2009 के आम चुनाव में जनादेश यूपीए के पक्ष में गया। उत्तराखंड और दिल्ली में तो उसने बीजेपी का सूपड़ा साफ कर दिया। आंध्र प्रदेश में न सिर्फ उसने वापसी बल्कि दिल्ली का रास्त कांग्रेस के लिए आसान कर दिया। सबसे अच्छी खबर उत्तरप्रदेश से आई जहां पार्टी के 21 सांसद चुन कर आए। 2004 में 145 सीट जीतने वाली यूपीए ने पांच सालों में यहा आंकड़ा 206 तक पहुंचा दिया। लौहपुरूष को चुनाव में चेहरा बनाने वाली बीजेपी के काला धन का मुददा भी जनता को नही खींच पाया। बीजेपी 2009 का चुनाव बुरी तरह हार गई। कांग्रेस के लिए जीत बड़ी थी। प्रधानमंत्री ने लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं में खरा उतरने का वादा किया। 100 दिन का एजेंडा सेट किया। मंत्रालयों को 3 महिने जनता के सामने रिपोर्ट पेश करने को कहा। मंत्रालयों ने भी जोर शोर से लक्ष्य निर्धारित किए। इसमें सबसे ज्यादा चर्चा में रहा सड़क और परिवहन मंत्री को प्रतिदिन 20 किलोमीटर सड़क बनाने का लक्ष्य। ऐसी ही महत्वकांक्षी लक्ष्य बाकी मंत्रालयों ने भी रखे। जनमानस को लग रहा था कि अब विकास और तेजी से होगा। अमीरी गरीबी को खाई पटेगी। अब तक सरकार का सामाजिक एजेंडा उसकी सबसे बड़ी ताकत थी। मगर शायद किसी ने सोचा भी नही होगा कि यूपीए 1 में बोए गए बीज अब उसके लिए कांटे बनने जा रहे है। एक के बाद एक घोटाले ने सरकार को अनुत्तरित कर दिया। राष्टमंडल खेल, 2 जी स्पेक्ट्रम, कोलगेट, रेलगेट, मनरेगा और किसान ऋण माफी योजना ने सरकार की सारी साख मिटटी में मिला दी। सड़क से लेकर संसद तक सरकार को जवाब देना मुश्किल पड़ रहा था। एक घोटाले की तपिश कम नही होती कि दूसरा घोटला सरकार की मुश्किलें बड़ा देता। विपक्ष संसद नही चलने देता और सरकार बेदाग होने का दंभ भरती। देखते देखते यूपीए दो के चार साल पूरे हो गए। सीएजी सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट सरकार को असहज करती रही। सहयोगी साथ छोड़ते चले गए। और इन सब के बीच जनमानस अपने आप को ठगा महसूस करने लगी। लोकपाल को लेकर देश में जबरदस्त आंदोलन हुआ। अरविंद अन्ना और रामदेव सरकार के दुश्मन गए। जनता सड़कों पर थी और सरकार की छिछालिदर हो रही थी। अन्ना के आंदोलन ने सरकार और संसद दोनों को डरा दिया। आनन फानन में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टौलरेन्स की आवाजें आने लगी। सरकार ने रामदेव को न सिर्फ लाठी से डराया बल्कि अरविन्द और अन्ना के रास्ते भी जुदा हो गए। आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर सरकार कुछ खास नही कर पाई। नक्सली हमले और आतंकी घटनाओं से आन्तिरक सुरक्षा से जुड़ी खामियों को भी सामने रख दिया। कुल मिलाकर उपलब्धियां अगर हैं तो सरकार जानती है की घोटालों के शोर में वह नही सुनाई देंगी। सरकार के दक्षिण का मजबूत द्धार आंध्रप्रदेश भी हाथ ने निकलता जा रहा है। पृथक तेलांगाना राज्य का समाधान सरकार नही खोज पाई। कांग्रेस अपनी गल्तियों से यहां भी कमजोर दिखाई दे रही है। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री और सामाजिक एजेंडे को आगे लेकर चल रही यूपीए अध्यक्ष सोनियां गांधी के बीच संतुलन बिगड़ने लगा। नतीजा सरकार और संगठन के सुर लगातर बदलते रहे। अब सरकार की मुश्किल मिशन 2014 है। मगर यहां अरमानों को पंख लगाने के लिए न मनरेगा है न किसान ऋण माफी योजना। और न ही 2004 के तरह कामन मिनिमम प्रोग्राम। सरकार भारत निर्माण का जोर शोर से प्रचार कर तो रही है मगर स्वयं उसे इस बात का अहसास भी है कि जो जनता शाइनिंग इंडिया को नकार सकती है वह भारत निर्माण को भी खारिज कर सकती है। अब सरकार की सारी उम्मीद अपनी महायोजना आपका पैसा आपके हाथ, के भरोसे है। सरकार के रणनीतिकार इसे पहले ही गेमचेंजर बता चुके है। आशा और उम्मीद से भरी यह महत्वकांक्षी योजना क्या नोट के बदले वोट में तब्दील हो पाएगी यह जनता तय करेगी। मगर माहौल सरकार के प्रतिकूल है। ऐसे में सरकार बोनस के तौर पर खाद्य सुरक्षा काूनन लाकर अपनी उड़ान को पंख लगाना चाहती है। भारत निर्माण का प्रचार प्रसार के लिए 180 करोड़ बहाए जा रहे है। जनता को समझाया जा रहा है। हमने आप को घर दिया है, काम दिया है। हमने देश का विकास किया। मगर घोटलों के तूफान में कुछ सुनाई नही दे रहा है।
U as a anchor is amazing and as a writer is even more!!!
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