17 साल पुराना गठबंधन टूट गया। नीतीश बीजेपी से अलग क्या हुए बीजेपी ने बिहार में 18 जून को विश्वासघात दिवस मनाने का फैसला किया। इस दिन बिहार बंद बुलाया हैं दोनो एक दूसरे को छलने का आरोप लगा रहे है। किसने किसको धोख दिया। किसने किसके साथ विश्वासघात किया। इसपर दिमाग लगाने की जरूरत नही। खबर सीधी और सपाट है। दोनों ने अपने नफे नुकसान के चलते तलाक ले लिया। बीजेपी की आखिरी आस नरेन्द्र मोदी हैं वही नीतीश कुमार का मोदी के साथ बने रहना बिहारमें मुस्लिमों की नाराजगी लेना है। मगर सच यह भी है की नीतीश बीजेपी से पल्ला छुड़ाने के लिए के लिए लंबे समय से बेताब थे। उनकी इस शर्त को कौन भूल सकता है कि जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा वह उसका समर्थन करेंगे बहरहाल 19 जून को नीतीश विश्वास मत हासिल करेंगे। वह साबित भी कर देंगे मगर सरकार का इकबाल का क्या होगा? बिहार में दोनों ने मिलकर न सिर्फ अपने वोट प्रतिशत में इजाफा किया बल्कि दोनों को सीटों के लिहाज से भी भारी फायदा पहुंचा। 1996 में दोनो दल साथ आए थे। बिहार में 1989 तक कांग्रेस मुसलमानों केवोटों की चैपिंयन रही। इसके बाद 2005 तक लालू के एमवाई समीकरण का खूब जादू चला। मगर मुसलमानों का भला किसी ने नही किया। लालू तो मुसलमानों को डराते रहे। 2005 के बाद नीतीश ने इस वोट बैंक में छलांग लगाई। नतीजा बीजेपी 2004 में 5 सांसद के मुकाबले 11 तक पहुंच गई। जेडीयू के सांसद 20 तक पहुंच गए। विधानसभा चुनाव में भी दोनों दलों का आंकड़ा खासकर बीजेपी का 55 से 91 तक पहुंच गया और जेडीयू 118 तक पहुंच गई। अब सबसे अहम सवाल यह है कि दोनो दलों का चुनाव पूर्ण गठबंधन था, ऐसे में अलग होना जनता के मैनडेट का निरादर है। इसका समधान है कि अलग होने पर इन दलों को नया जनादेश लेना चाहिए। इससे छोटे दलों की ब्लैकमेलिंग पर रोक लगे। विरप्पा मोईली के नेतृत्व में बनी दूसरे प्रशासनिक आयोग ने यह सिफारिश की थी। बहरहाल बीजेपी का जो भी हो इस फैसले से नीतीश को झटका जरूर लगेगा।
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