दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बन चुकी है। अब केजरीवाल मुख्यमंत्री बन चुके है। यानि अब काम प्रतीकात्मक संदेशों से नही, बल्कि वादों को निभाकर करना होगा। घूस लेने या नही देने के कसमें खिलाकर
भ्रष्टाचार खत्म नही होगा। बिजली पानी शिक्षा स्वास्थ्य और सड़क जैसे मुददों पर काम करके दिखाना होगा। दिल्ली कई मायनों में एक नायाब राज्य है। पूर्ण राज्य के दर्जे के अभाव में यहां नीतियों या कानून बनाने को लेकर कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मान लिजिए मामला कानून व्यवस्था से हो तो दिल्ली पुलिस सीधे गृहमंत्रालय के तहत आती है। दूसरा जमीन से जुड़ा मामला हो तो डीडीए केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के तहत आता है। अगर कोई कानून संसद से पारित हो गया हो तो उसे राज्य में पारित करने से पहले
केन्द्र से हरी झंडी लेना जरूरी है। दिल्ली में संस्थाऐं दर्जनों है मगर इनकी जवाबदारी और जवाबदेही अलग अगल लोगों को है। यानि एमसीडी, सीपीडब्लूडी और डीडीए केन्द्र सरकार के अधिन है जबकि पीडब्लूडी, दिल्ली जल बोर्ड और राज्य परिवहन निगम राज्य सरकार के अधीन है। प्राथमिक शिक्षा एमसीडी के भरोसे है तो माध्यमिक और उच्च शिक्षा के साथ साथ कौशल विकास राज्य सरकार के अधीन है। दिल्ली में तीन बड़े अस्पताल यानि एम्स, सफदरजंग और राममनोहर लोहिया केन्द्र सरकार के जिम्मे हैं। कुछ अस्पताल राज्य के तहत आते है तो कुछ को एमसीडी चलाता है। उदाहरण के लिए मानों सड़कों में पानी भर जाऐं तो आप तय नही कर पाऐंगे की आम आदमी किससे शिकायत करें। अभी हाल यह है की राज्य में आप की अल्पमत सरकार है जिसे कांग्रेस ने न गिरने देने का वादा किया है। सबकी नजर सदन में आने वाले विश्वास प्रस्ताव पर रहेगी। महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एमसीडी में बीजेपी का राज है और केन्द्र में कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार है। दिल्ली को विकास के लिए केन्द्रीय सहायता भी मिलती है। साथ ही केजरीवाल अब तक विपक्ष की राजनीति करते रहे मगर सरकार चलाने की हकीकत से वाकिफ दो चार होने का समय अब आ गया है। एक और बात जो आम आदमी पार्टी को ध्यान रखनी होगी वह है विधासभा अध्यक्ष का पद जो हर कीमत पर उन्हें अपना रखना होगा।
भ्रष्टाचार खत्म नही होगा। बिजली पानी शिक्षा स्वास्थ्य और सड़क जैसे मुददों पर काम करके दिखाना होगा। दिल्ली कई मायनों में एक नायाब राज्य है। पूर्ण राज्य के दर्जे के अभाव में यहां नीतियों या कानून बनाने को लेकर कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मान लिजिए मामला कानून व्यवस्था से हो तो दिल्ली पुलिस सीधे गृहमंत्रालय के तहत आती है। दूसरा जमीन से जुड़ा मामला हो तो डीडीए केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के तहत आता है। अगर कोई कानून संसद से पारित हो गया हो तो उसे राज्य में पारित करने से पहले
केन्द्र से हरी झंडी लेना जरूरी है। दिल्ली में संस्थाऐं दर्जनों है मगर इनकी जवाबदारी और जवाबदेही अलग अगल लोगों को है। यानि एमसीडी, सीपीडब्लूडी और डीडीए केन्द्र सरकार के अधिन है जबकि पीडब्लूडी, दिल्ली जल बोर्ड और राज्य परिवहन निगम राज्य सरकार के अधीन है। प्राथमिक शिक्षा एमसीडी के भरोसे है तो माध्यमिक और उच्च शिक्षा के साथ साथ कौशल विकास राज्य सरकार के अधीन है। दिल्ली में तीन बड़े अस्पताल यानि एम्स, सफदरजंग और राममनोहर लोहिया केन्द्र सरकार के जिम्मे हैं। कुछ अस्पताल राज्य के तहत आते है तो कुछ को एमसीडी चलाता है। उदाहरण के लिए मानों सड़कों में पानी भर जाऐं तो आप तय नही कर पाऐंगे की आम आदमी किससे शिकायत करें। अभी हाल यह है की राज्य में आप की अल्पमत सरकार है जिसे कांग्रेस ने न गिरने देने का वादा किया है। सबकी नजर सदन में आने वाले विश्वास प्रस्ताव पर रहेगी। महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एमसीडी में बीजेपी का राज है और केन्द्र में कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार है। दिल्ली को विकास के लिए केन्द्रीय सहायता भी मिलती है। साथ ही केजरीवाल अब तक विपक्ष की राजनीति करते रहे मगर सरकार चलाने की हकीकत से वाकिफ दो चार होने का समय अब आ गया है। एक और बात जो आम आदमी पार्टी को ध्यान रखनी होगी वह है विधासभा अध्यक्ष का पद जो हर कीमत पर उन्हें अपना रखना होगा।
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