भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र का 80 फीसदी हिस्सा निजी हाथों में है। महज 20 फीसदी हिस्सा सरकार के जिम्मे है। इस 20 फीसदी में भी 80 फीसदी राज्य सरकार के नीचे आता है। यही कारण है कि बार बार कहा जाता है की स्वस्थ्य क्षेत्र में राज्यों को भी अपना बजट आवंटन बडाना होगा। केवल केन्द्र सरकार के आवंटन बडाने से कुछ नही होगा। दुनिया में आबादी में हमारी हिस्सेदारी 16 फीसदी के आसपास है, मगर बीमारी में हमारा योगदान 20 फीसदी से ज्यादा है।
स्वास्थ्य बजट
यूपीए सरकार जब 2004 में सर्वसमावेशी विकास के नारे का साथ सत्ता में आसीन हुई तो उसने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में इस बात की घोषणा की कि स्वास्थ्य क्षेत्र की तस्वीर को बदलने के लिए सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी का 2 से 3 फीसदी इस क्षेत्र में दिया जायेगा। मगर अभी तक गाड़ी 1.06 फीसदी के आसपास है। वही विश्व स्वस्थ्य संगठन के मुताबिक विकासशील देशों को जीडीपी का 5 फीसदी स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च करना चाहिए। केन्द्र सरकार की मानें तो वो इस दिश में तेजी से आगे बड़ रही है। जरूरत है तो राज्यों के बेहतर समर्थन की। यहां यह भी बताते चलें की स्वास्थ्य क्षेत्र राज्यो ंका विशय है। 11 पंचवर्षिय योजना में 140135 करोड की राशि का निर्धारण किया गया है। 90558 करोड की राशि का प्रबंध किया है। जो 10वी पंचवर्षीय योजना के मुकाबले 227 फीसदी ज्यादा है। इसमें से 90558 करोड़ की राशि केवल केन्द्र सरकार का महत्वकांक्षी कार्यक्रम राष्टीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के लिए है जिसमें अब तक 42000 करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके है। सरकार ने 12वीं योजना में सबसे ज्यादा ध्यान स्वास्थ्य क्षेत्र में देने की बात कही है।
मानव संसाधन की कमी
स्वस्थ्य की सबसे ज्यादा खराब तस्वीर आपको ग्रामीण क्षेत्र में दिखेगी। भौतिक सुविधाओं को मुहैया कराने में सरकार कुछ हद तक जरूर सफल रही है, जिसमें प्रमुख है उपकेन्द, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पताल । मगर डाक्टर और नर्सो की भारी टोटा सरकार के माथे में बल ला देता है। हमारे देश में डाक्टर जनसंख्या अनुपात 1ः1722 है। यानि 1722 आबादी पर 1 डाक्टर। आदर्श स्थिति 1ः500 की है। डब्लयूएचओं के मुताबिक डाक्टर जनसंख्या अनुपात 1ः250 होना चाहिए। मगर ग्रामीण भारत में यह अनुपात तो और ज्यादा बदतर स्थिति मे है। गांव में 34000 की आबादी में 1 डाक्टर है। मौजूदा स्थिति में भारत में 8 लाख डाक्टर और 20 लाख नर्सो की कमी है। इसके अलावा गुणवत्ता पूर्ण पैरामेडिकल स्टाफ की भी बेहद कमी है।
रूरल एमबीबीएस
सरकर अब इस कमी को पूरा करने के लिए बैचुलर आफ रूरल हेल्थ केयर या रूरल एमबीबीएस कोर्स पर विचार कर रह है। साढे तीन साल का यह कोर्स होगा और 6 महिने की इंटरनशिप। इसके बाद तैयार हो जायेगा एक डाक्टर । यह डाक्टर सिर्फ उपकेन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र में तैनात होगें। हालांकि कुछ विशेषज्ञों ने इस पर ऐतराज जताया है। मगर सरकार अब इसपर आगे बढ़ने का मन बना चुकी है। साथ ही एमबीबीएस करने वालों के लिए 1 साल गांव में सेवा देना अनिवार्य कर दिया है। इस पोस्टिंग को उनके आगे की पढ़ाई के साथ ज़ोड दिया गया है।
स्वाथ्य में उत्तर भारत दक्षिण के मुकाबले पीछे
स्वास्थ्य के लिहाज से एक बहुत बडा अन्तर उत्तर और दक्षिण भारत में भी है। मसलन देष में तकरीबन 300 मेंडीकल कालेजों में से 190 सिर्फ पांच राज्यों में है। मसलन बिहार की आबादी 7 करोड़ के आसपास मगर मेडीकल कालेज 9। ऐसा ही हाल झारखंड का है। 3 करोड़ की आबादी में 3 मेडीकल और 1 नर्सिंग कालेज। इस अन्तर को पाटने की भी सख्त दरकार है।
मिलीनियम डेवलपमेंट गोल का क्या होगा!
सरकार 2012 तक मातृ मृत्यु दर को यानि एमएमआर को प्रति लाख 100 तक लाना चाहती है। जो 2007 में 254 था। शिशु मृत्यु दर को 30 तक जो 2007 मंे 55 था। अस्पताल में प्रसव कराने आने वाली महिलाओं की तादाद बड़ रही है। जननी सुरक्षा योजना के तहत अब तक 3 करोड़ से ज्यादा महिलाऐं अस्पतालों में बच्चों को जन्म दे चुकी है। टीकाकरण में भी अभी रास्ता थोडा कठिन है। 2012 तक 100 फीसदी का लक्ष्य जो फिलहाल 58 फीसदी है।
डाक्टरों का शहरी प्रेम!
अगर आप सोचते है कि डाक्टरी आज भी सेवा करने का एक माध्यम है तो आप गलत है। यह एक विशद्ध व्यवसाय बन गया है। ज्यादा कमाई के चक्कर के चलते डाक्टर अब गांव की ओर नही जाना चाहता। यही कारण है कि डाक्टरों की ज्यादातर आबादी शहरो ं में सेवाऐं प्रदान कर रही। इंडियन मेडीकल सोसइटी के सर्वे के मुताबिक 75 फीसदी डाक्टर शहरों में काम कर रहे है। 23 फीसदी अल्प शहरी इलाकों मे और 2 फीसदी ग्रामीण इलाकों में। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है की ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य कहां टिकता है।
प्राचीन चिक्त्सा प्रणाली पर कोई ध्यान नही!
आपने रामायण मे संजीवनी बूटी का नाम तो सुना होगा। जिसे संूघने के बाद लक्ष्मण लम्बी मूर्छा से जागे थे। आज आर्युवेदिक, होमयोपैथिक, सिद्धा और यूनानी जैसी चिकित्सा प्रणाली की तरफ को खास रूख नही है। ऐसा नही कि यह चिकित्सा प्रणाली फायदेमंद नही है। दरअसल सवाल यह है कि इसे फायदेमंद बनाने के लिए हम कितने गंभीर है।
निजि अस्पतालों पर कसी जाए नकेल!
जब देश की 77 फीसदी आबादी की हैसियत एक दिन में 20 रूपये से ज्यादा खर्च करने की नही है। तो क्या वह इन बडे हांस्पिटलों में अपना या परिजनों का इलाज कर सकता है। निजि अस्पताल इलाज की एवज में मनमाने दाम मांग रहे हैं। गरीब कहां से लायेगा। इसलिए इन बहुमुखी सुविधाओं से लैस अस्पतालों के उपर एक प्राधिकरण हो जो इस पर नजर रखे।
कहते है पहला सुख निरोगी काया। मगर भारत में इस सुख की तस्वीर थोडी धंुधली है। हमारे देश में 20 फीसदी सवस्थ्य सेवाऐं ही सरकार के तहत आती है। इस 20 फीसदी में भी 80 फीसदी राज्य सरकारों का क्षेत्र में आता है। यानि स्वास्थ्य सेवाओ ंका 80 फीसदी हिस्सा निजी होथों में है। इसलिए ब्रिटेन की एक मसहूर पत्रिका लैंसेट के मुताबिक भारत में सालाना 3.5 करोड़ लोग अपनी जेब से स्वास्थ्य चेत्र में खर्च कर गरीबी रेखा में चले जाते हैं। अब देखना यह होगा की प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना उनका बेहतर ख्याल रख पाती है या इस ह़़श्र भी बाकी सरकारी योजना जैसा रहता है।
स्वास्थ्य बजट
यूपीए सरकार जब 2004 में सर्वसमावेशी विकास के नारे का साथ सत्ता में आसीन हुई तो उसने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में इस बात की घोषणा की कि स्वास्थ्य क्षेत्र की तस्वीर को बदलने के लिए सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी का 2 से 3 फीसदी इस क्षेत्र में दिया जायेगा। मगर अभी तक गाड़ी 1.06 फीसदी के आसपास है। वही विश्व स्वस्थ्य संगठन के मुताबिक विकासशील देशों को जीडीपी का 5 फीसदी स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च करना चाहिए। केन्द्र सरकार की मानें तो वो इस दिश में तेजी से आगे बड़ रही है। जरूरत है तो राज्यों के बेहतर समर्थन की। यहां यह भी बताते चलें की स्वास्थ्य क्षेत्र राज्यो ंका विशय है। 11 पंचवर्षिय योजना में 140135 करोड की राशि का निर्धारण किया गया है। 90558 करोड की राशि का प्रबंध किया है। जो 10वी पंचवर्षीय योजना के मुकाबले 227 फीसदी ज्यादा है। इसमें से 90558 करोड़ की राशि केवल केन्द्र सरकार का महत्वकांक्षी कार्यक्रम राष्टीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के लिए है जिसमें अब तक 42000 करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके है। सरकार ने 12वीं योजना में सबसे ज्यादा ध्यान स्वास्थ्य क्षेत्र में देने की बात कही है।
मानव संसाधन की कमी
स्वस्थ्य की सबसे ज्यादा खराब तस्वीर आपको ग्रामीण क्षेत्र में दिखेगी। भौतिक सुविधाओं को मुहैया कराने में सरकार कुछ हद तक जरूर सफल रही है, जिसमें प्रमुख है उपकेन्द, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पताल । मगर डाक्टर और नर्सो की भारी टोटा सरकार के माथे में बल ला देता है। हमारे देश में डाक्टर जनसंख्या अनुपात 1ः1722 है। यानि 1722 आबादी पर 1 डाक्टर। आदर्श स्थिति 1ः500 की है। डब्लयूएचओं के मुताबिक डाक्टर जनसंख्या अनुपात 1ः250 होना चाहिए। मगर ग्रामीण भारत में यह अनुपात तो और ज्यादा बदतर स्थिति मे है। गांव में 34000 की आबादी में 1 डाक्टर है। मौजूदा स्थिति में भारत में 8 लाख डाक्टर और 20 लाख नर्सो की कमी है। इसके अलावा गुणवत्ता पूर्ण पैरामेडिकल स्टाफ की भी बेहद कमी है।
रूरल एमबीबीएस
सरकर अब इस कमी को पूरा करने के लिए बैचुलर आफ रूरल हेल्थ केयर या रूरल एमबीबीएस कोर्स पर विचार कर रह है। साढे तीन साल का यह कोर्स होगा और 6 महिने की इंटरनशिप। इसके बाद तैयार हो जायेगा एक डाक्टर । यह डाक्टर सिर्फ उपकेन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र में तैनात होगें। हालांकि कुछ विशेषज्ञों ने इस पर ऐतराज जताया है। मगर सरकार अब इसपर आगे बढ़ने का मन बना चुकी है। साथ ही एमबीबीएस करने वालों के लिए 1 साल गांव में सेवा देना अनिवार्य कर दिया है। इस पोस्टिंग को उनके आगे की पढ़ाई के साथ ज़ोड दिया गया है।
स्वाथ्य में उत्तर भारत दक्षिण के मुकाबले पीछे
स्वास्थ्य के लिहाज से एक बहुत बडा अन्तर उत्तर और दक्षिण भारत में भी है। मसलन देष में तकरीबन 300 मेंडीकल कालेजों में से 190 सिर्फ पांच राज्यों में है। मसलन बिहार की आबादी 7 करोड़ के आसपास मगर मेडीकल कालेज 9। ऐसा ही हाल झारखंड का है। 3 करोड़ की आबादी में 3 मेडीकल और 1 नर्सिंग कालेज। इस अन्तर को पाटने की भी सख्त दरकार है।
मिलीनियम डेवलपमेंट गोल का क्या होगा!
सरकार 2012 तक मातृ मृत्यु दर को यानि एमएमआर को प्रति लाख 100 तक लाना चाहती है। जो 2007 में 254 था। शिशु मृत्यु दर को 30 तक जो 2007 मंे 55 था। अस्पताल में प्रसव कराने आने वाली महिलाओं की तादाद बड़ रही है। जननी सुरक्षा योजना के तहत अब तक 3 करोड़ से ज्यादा महिलाऐं अस्पतालों में बच्चों को जन्म दे चुकी है। टीकाकरण में भी अभी रास्ता थोडा कठिन है। 2012 तक 100 फीसदी का लक्ष्य जो फिलहाल 58 फीसदी है।
डाक्टरों का शहरी प्रेम!
अगर आप सोचते है कि डाक्टरी आज भी सेवा करने का एक माध्यम है तो आप गलत है। यह एक विशद्ध व्यवसाय बन गया है। ज्यादा कमाई के चक्कर के चलते डाक्टर अब गांव की ओर नही जाना चाहता। यही कारण है कि डाक्टरों की ज्यादातर आबादी शहरो ं में सेवाऐं प्रदान कर रही। इंडियन मेडीकल सोसइटी के सर्वे के मुताबिक 75 फीसदी डाक्टर शहरों में काम कर रहे है। 23 फीसदी अल्प शहरी इलाकों मे और 2 फीसदी ग्रामीण इलाकों में। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है की ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य कहां टिकता है।
प्राचीन चिक्त्सा प्रणाली पर कोई ध्यान नही!
आपने रामायण मे संजीवनी बूटी का नाम तो सुना होगा। जिसे संूघने के बाद लक्ष्मण लम्बी मूर्छा से जागे थे। आज आर्युवेदिक, होमयोपैथिक, सिद्धा और यूनानी जैसी चिकित्सा प्रणाली की तरफ को खास रूख नही है। ऐसा नही कि यह चिकित्सा प्रणाली फायदेमंद नही है। दरअसल सवाल यह है कि इसे फायदेमंद बनाने के लिए हम कितने गंभीर है।
निजि अस्पतालों पर कसी जाए नकेल!
जब देश की 77 फीसदी आबादी की हैसियत एक दिन में 20 रूपये से ज्यादा खर्च करने की नही है। तो क्या वह इन बडे हांस्पिटलों में अपना या परिजनों का इलाज कर सकता है। निजि अस्पताल इलाज की एवज में मनमाने दाम मांग रहे हैं। गरीब कहां से लायेगा। इसलिए इन बहुमुखी सुविधाओं से लैस अस्पतालों के उपर एक प्राधिकरण हो जो इस पर नजर रखे।
कहते है पहला सुख निरोगी काया। मगर भारत में इस सुख की तस्वीर थोडी धंुधली है। हमारे देश में 20 फीसदी सवस्थ्य सेवाऐं ही सरकार के तहत आती है। इस 20 फीसदी में भी 80 फीसदी राज्य सरकारों का क्षेत्र में आता है। यानि स्वास्थ्य सेवाओ ंका 80 फीसदी हिस्सा निजी होथों में है। इसलिए ब्रिटेन की एक मसहूर पत्रिका लैंसेट के मुताबिक भारत में सालाना 3.5 करोड़ लोग अपनी जेब से स्वास्थ्य चेत्र में खर्च कर गरीबी रेखा में चले जाते हैं। अब देखना यह होगा की प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना उनका बेहतर ख्याल रख पाती है या इस ह़़श्र भी बाकी सरकारी योजना जैसा रहता है।
नया सर्कस
जवाब देंहटाएंआप पार्टी को सब चैनल बाप पार्टी बना रहे है!
प्रजातन्त्र के प!चायत को खाप पार्टी बना रहे है!
अरवि!द केजरी गिरधारी है बाकी गोकुल की गोपी है!
सडक छाप, बेरोजगार सब सिर पर गा!धी की टोपी है
सारे बन्दर षिलाजीत खाकर दिल्ली मे! कुद रहे है!
सभी समस्या गायब है!,बस ये ही अब मौजूद रहे है!
सारे चैनल इनसे ज्यादा, पागल होकर घूम रहे है!
आप पार्टी की टोपी के कफन सिरो! मे! झूम रहे है!
षब्दो! के अश्टा!ग योग की कपाल भारती चैनल मे!
सारे तोते आप पार्टी के छाये है! हर पैनल मे!
आम आदमी खास हो गया प्रजातन्त्र पागल खाने मे!
नये वर्श की नयी मदिरा है, लोकतन्त्र के पैमाने मे!
आम आदमी की टोपी मे! जाम छलकते देख रहा हू!
मै! भी आम आदमी बन कर अपनी नजरे! से!क रहा हू!
इनका र!ग ढ!ग देख रहा हू! नषा मुझे भी हो जाता है
प्रजातन्त्र टुच्चो! का सर्कस झेल रही भारत माता है
ना बत्ती ना ब!गला ले!गे , ये अन्ना की औलादे! है!
अ!कुर पौधे पनप रहे है!, प्रजातन्त्र की नई खादे! है!
अब बिना सुरक्षा के घुमे!ग े दिल्ली के गलियारो! मे!
राजनीति के नये नमूने , स!विधान के चैबारे मे!
लोक- तन्त्र की नई सर्कस है लुफ्त उठाने वालो! की
पोखर मे! जोकर को देखो, भर्ती नये दलालो! की
नये ढ!ग का राजतन्त्र निकला है राज घराने से
जनता सपना देख रही है, जन - मत के हर्जाने से
आम आदमी इस भारत का सडक मे! पत्थर तोड रहा है
आम आदमी फटे लिबाषो! को भारत मे! जोड रहा हेै
दो वक्त की रोटी आमआदमी भीख मा!ग कर ही खाता है
पढा लिखा बे - रोजगार भी आम आदमी कहलाता है
स!जय और विस्वास ,केजरी आम आदमी की भाशा मे!
योगेन्दर, योगेष , सायना, आम आदमी अभिलाशा मे!
वैभवषाली ,प्रजातन्त्र मे! आम आदमी बन जाते हेै!
सर्दी का मौसम है, पूछो आम आदमी क्या खाते है!
इस भारत मे! नेता कम, अब सभी नमूने आयेगे!
अपनी - अपनी प्रतिभाओ! का भारत नया बनाये!गे
स्वप्न - दोश के बाबा और ल!गोटे सपना देख रहे है!
कवि ‘आग ’के छन्द य!हा पर फन्द आग से फे!क रहे है!!!