संसद में आए दिन हंगामा होना कोई नही बात नही है। हंगामा आज सियासी हथियार बन गया है। राजनीतिक दल इसे अपना विशेषाधिकार समझने लगे है। सदन में सांसदों के लिए कई नियम बनाये गए है। मगर दुर्भाग्य से इन नियमों का हर रोज चीरहरण हो रहा है।
1-कोई सदस्य अगर भाषण दे रहा हो तो उसमें बांधा पहुंचाना नियम के खिलाफ है।
2-सांसद ऐसी कोई पुस्तक समाचार पत्र या पत्र नही पडे़गा जिसका सभा की कार्यवाही से सम्बन्ध न हेा ।
3- सभा में नारे लगाना नियम विरूद है।
4-सदन में प्रवेश और निकलने के वक्त अध्यक्ष की पीठ की तरफ नमन करेगा।
5-सभा में नही बोल रहा हो तो शान्त रहना चाहिए
6-भाषण देने वाले सदस्यों के बीच से नही गुजरेगा
7-अपने भाषण देने के तुरन्त बाद बाहर नही जायेगा
8-हमेशा अध्यक्ष को ही सम्बोधित करेगा।
9-सदन की कार्यवाही में रूकावट नही डालेगा।
इन सारे नियमों के लब्बोलुआब को कुछ यूं समझ ले कि सदन में अध्यक्ष के आदेश के बिना पत्ता भी नही हिल सकता। ऐसे कई नियम मौजूद है लेकिन मानने वाला कोई नही। नियमों की अनदेखी संसदीय संकट
की ओर इशारा कर रही है। लिहाजा समय रहते इसमें पूर्ण विराम लगाना आवश्यक हो गया है।
1-कोई सदस्य अगर भाषण दे रहा हो तो उसमें बांधा पहुंचाना नियम के खिलाफ है।
2-सांसद ऐसी कोई पुस्तक समाचार पत्र या पत्र नही पडे़गा जिसका सभा की कार्यवाही से सम्बन्ध न हेा ।
3- सभा में नारे लगाना नियम विरूद है।
4-सदन में प्रवेश और निकलने के वक्त अध्यक्ष की पीठ की तरफ नमन करेगा।
5-सभा में नही बोल रहा हो तो शान्त रहना चाहिए
6-भाषण देने वाले सदस्यों के बीच से नही गुजरेगा
7-अपने भाषण देने के तुरन्त बाद बाहर नही जायेगा
8-हमेशा अध्यक्ष को ही सम्बोधित करेगा।
9-सदन की कार्यवाही में रूकावट नही डालेगा।
इन सारे नियमों के लब्बोलुआब को कुछ यूं समझ ले कि सदन में अध्यक्ष के आदेश के बिना पत्ता भी नही हिल सकता। ऐसे कई नियम मौजूद है लेकिन मानने वाला कोई नही। नियमों की अनदेखी संसदीय संकट
की ओर इशारा कर रही है। लिहाजा समय रहते इसमें पूर्ण विराम लगाना आवश्यक हो गया है।
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