मंगलवार, 11 मार्च 2014

मोदी राहुल के गरीब

राहुल कह रहें है कि यूपीए के 10 साल में 14 करोड़ गरीब गरीबी रेखा के नीचे से उपर आ गए हैं। उनके आंकलन के पद्धति के बारे में किसी को नही मालूम। हां इतना जरूर है की उनके आंकलन का मापदंड गांव में 26 रूपये और शहर में 32 रूपये है। यानि जो गांव में 26 रूपये प्रतिदिन खर्च कर सकता है वह गरबी नही है और जो शहर में 32 रूपये खर्च कर सकता है वह गरबी नही है। मोदी के गरीब ज्यादा है। वहां 12 रूपये गांव में खर्च करने वाला और 22 रूपये खर्च करने वाला गरीब नहीं है। यह दोनों देश के महानायक हैं। दोनों देश की दशा दिशा सुधारने का दावा कर रहे हैं। मगर दोनों के माडल एक से हैं। बस कहने भर के लिए उनमें अंतर दिखाते हैं। मगर वास्तविक तौर पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों उदारीकरण के माडल को आगे बढ़ा रहें हैं। मोदी के गुजरात में बिजली पैदा होती है जबकि दिल्ली में बिजली खरीदनी पड़ती है। मगर गुजरात में दिल्ली से महंगी बिजली उपभोक्ताओं को दी जाती है। जिसका विरोध करने के लिए बीजेपी कांग्रेस का विरोध करती है। मगर गुजरात में महंगी बिजली को लेकर वह चुप रहती है। उसकी तरह मोदी गुजरात की तुलना भारत से करते हैं, जो अपने आप में गलत है। योजना आयोग को पहले गरीबी मांपने का एक आदर्श मापदंड तैयार करना चाहिए। जब देश को ये ही नही मालूम की गरीब कितने है तो उसको टारगेट करने वाली उसकी नितियां हमेशा अधूरे और कमजोर नतीजे देंगी। यानि दोनों महानायक अपने फायदे के लिहाज़ से जनता साध रहें है। मगर महानायक असली वह है जो गलती कबूलता है और उसे दूर करने की चेष्ठा करता है। यहां दोनो ही मामले में दोनों पीछे दिखाई देते हैं।

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