नरेन्द्र मोदी ने अपने मंत्रीमंडल के आकार से साफ कर दिया है कि उनके इरादे क्या हैं। अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के नेताओं को बुलाकर उन्होनें सबकों चैंका दिया। लगे हाथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से मुलाकत में आतंकवाद और मुंबई हमलों को लेकर भारत क्या सोचता है इसे दो टूक लहजे में बता दिया। दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव के लिए भी यह एक बेहत जरूरी कदम था की भारत सार्क के इन 8 देशों से अच्छे रिश्ते रखे। अपने पहले इम्तिहान में मोदी ने इसपर अच्छा संदेश दिया है। साथ ही विश्व को भी यह संदेश देने में मोदी कामयाब रहे की वो सबको साथ लेकर चलने पर विश्वास रखतें है। बहरहाल यह तो शुरूआत है, असली परीक्षा तो अभी बाकी है। इसमें कोई दो राय नही की नरेन्द्र मोदी के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। मगर संसद के केन्द्रीय कक्ष में उनके भाषण से यह साफ हो गया की वह आशावाद से भरे हुए है। निराशा के बारे में वह नही सोचते। इस लिहाज़ से हमें वर्तमान चुनौतियों को एक अवसर के तौर पर देखना चाहिए। मेरे विचार से नरेन्द्र मोदी के सामने भारत की विकास गाथा का आगे ले जाने का एक ऐतिहासिक अवसर है। उनके पक्ष में बहुत कुछ जाता है। सारी उम्मीद के केन्द्र में वहीं है यानि जीत के लिए भी वहीं जिम्मेदार और हार के लिए भी वही जिम्मेदार होंगे। यानि जिम्मेदारी और जवाबदेही के लिहाज़ से उनपर दबाव ज्यादा होगा। इसलिए उन्हें ऐसे भगीरथ प्रयास करने होंगे जिनसे नतीजें निकले। इसलिए मोदी ने अपना मंत्रिमंडल भी छोट रखा है। कई मंत्रालयों को मिलाया गया है। इसके पीछे उददेश्य बेहतर समन्वय की होगा। दरअसल पिछली सरकार में विभिन्न मंत्रालयों के बीच आपसी मतभेद खुलकर सामने आए। इसके लिए मंत्रियों के समूह और अधिकार मंत्रियों के समूह बनाए गए। मगर कुछ खास नही हो पाया। जब निवेश को लेकर माहौल गिरने लगा तो सरकार ने कैबीनेट कमिटि आॅन इनवेस्टमेंट बनायी। इसने तकरीबन 6 लाख करोड़ के निवेश को हरी झंडी दिखाई। मोदी सरकार इससे न सिर्फ उभरना चाहेगी बल्कि फैसले लेने के मामलें में दो कदम आगे रहेगी।
केन्द्र राज्य संबंध- यूपीए सरकार के दौरान ज्यादातर गैर कांग्रेसी सरकारें भेदभाव का आरोप लगाती रहीं। कई राज्य सरकारें राज्य से ज्यादा अपेक्षा पाली हुई थी । खासकर वो जो विशेष राज्य के दर्जे की मांग लंबे समय से कर रहें हैं। इससे भी अलग मोदी के लिए सबका साथ सबका विकास गाथा को जमीन पर उतारने के लिए राज्यों से बेहतर रिश्ते कायम करने होंगे। क्योंकि भारत में जनकल्याणकारी योजनाओं के बेहतर
परिणामों के लिए उन्हे राज्य सरकार के प्रदर्शन पर निर्भरता रहेगी। साथ ही वस्तु और सेवाकर जैसे प्रमुख आर्थिक फैसले को अमलीजामा पहनाने के लिए उन्हें राज्यों का समर्थन चाहिए। चूंकि यह एक संविधान संशोधन विधेयक है।
मंत्रालयों के बीच समन्वय - यूपीए सरकार के दौरान कई मंत्रालयों में आपस में ठनी रहती थी। यही कारण था की इसके निपटारें के लिए मंत्रियों के समूह बनाए गए। समन्वय के अभाव का नतीजा यह रहा की कई क्षेत्रों में इसका नुकसान साफ देखा गया। खासकर गो और नो गो ऐरिया को लेकर पर्यायवरण मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के बीच तू- तू मैं -मैं अक्सर देखी गई। इसके चलते जमीन अधिग्रहण के कई मामले लटके रहें।
नतीजा कई बिजली घर कोयले की कमी से जूझते रहे।
बाबू फैसले लेने में डरते हैं- आरटीआई और हाल में आए घोटालों के बाद बाबूओं के फैसले लेने में देरी साफ देखी गई। बाबू किसी भी फाइल में हस्ताक्षर करने से डरतें है। इसका एक बड़ा कारण सूचना का अधिकार भी है। दबी जुबान में इसकी चर्चा होती रही मगर यूपीए सरकार सूचना के अधिकार में जनदबाव के चलते आरटीआई में बदलाव चाहते हुए भी नही कर पायी। मगर सरकार को इसपर गंभरता से विचार करना होगा।
खर्च बनाम परिणाम- भारत में सामाजिक क्षेत्र में खर्च साल दर साल बढ़ता गया मगर नतीजे उस तेजी से नही मिले। यही कारण है की जनता की कमाई का बड़ा पैसा विकास कार्यो के बजाया भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। पिछले 10 सालों में शिक्षा, स्वास्थ्य कृषि ग्रामीण विकास और शहरी विकास के लिए जमकर पैसा आवंटित किया गया मगर उसके बावजूद निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हम समय से नही कर पाए।
खर्च पर नियंत्रण- भारत में जनता के पैसों की लूट कोई नही बात नही है। मगर 2008 में जब देश और दुनिया की अर्थव्यवस्थाऐं चरमराने लगी तो एक शब्द बड़ा प्रचलित हुआ आस्टेरिटी मेजर्स। सरकार ने इसकी शुरूआत भी की। मगर खर्चो में कटौति से ज्यादा मंत्रालयों के बजट में कटौति कर दी। भारत के परिपेक्ष में इसका इस्तेमाल सही मायनों में होना चाहिए। मंत्रालयों को अपने खर्च में कटौति करनी होगी। कई सिफारिशें वेस्टफूल एक्सपेंडिचर को कम करने की सिफारिशें कर चुके हैं मगर इसमें कोई खास बदलाव नही आया।
सब्सिडी कैसे कम करेंगे- वित्तमंत्रालय का भार संभालते हुए अरूण जेठली ने साफ कर दिया की उनकी प्राथमिकता में क्या है। उनके मुताबिक आर्थिक विकास दर में सुधार, महंगाई पर लगाम और राजकोषिय संतुलन को बनाए रखना जरूरी है। साथ ही फैसले लेने में देरी को लेकर जो आरोप मनमोहन सरकार पर लगते रहे इससे वो बाहर निकालना चाहतें है। मगर यह सब जमीन पर उतारना इतना आसान नही होगा।
भारत के राजकोषिय घाटे को कम रखने के लिए सब्सिडी को कम करना जरूरी है। खासकर खाद्य तेल और उवर्रक सब्सिडी का भार लगातार बढ़ते जा रहा है जो लम्बे समय में असहनीय होगा। यूपीए ने जब इसे कम करने की हिम्मत दिखाई तो सहयोगी के साथ साथ बीजेपी से सड़क से संसद तक कोहराम मचा दिया। ऐसे में सरकार में आकार मोदी को देर सबेर इस कड़वे घूंट को पीना होगा।
मंत्रालयों का प्रदर्शन - मोदी ने 17 मंत्रालयों को 7 में मिला दिया है। मसलन काॅरपोरेट मंत्रालय वित्त मंत्रालय में और सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय को जहाजरानी मंत्रालय से जोड़ दिया है। यानि मोदी अपने मंत्र मिनिमम गर्वमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस के मुताबिक अपने मंत्रालय का आकार तय किया है। साथ ही वो महत्वपूर्ण मंत्रालयों के काम पर सीधी नजर रखेंगे। इशारा साफ है कि अपने व्यक्तित्व के अनुरूप मोदी का सारा ध्यान जी2 यानि गुड गर्वेनेंस और पी2 यानि प्रो पीपुल नीति पर होगा।
अनुसंधान पर खर्च- भारत दूसरे देशों के मुकाबले अनुसंधान में बेहद कम खर्च करता है। विकास के लिए नित नए अनुसंधानों की जरूरी होती है। खेती से लेकर विज्ञान तक सबमें नई तकनीक की जरूरत है। ऐसे में अनुसंधान आधारित मंत्रालयों के एक निश्चित भाग अनुसंधान में होना चाहिए।
महंगाई पर नकेल- यूपीए सरकार की तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के बावजूद वह जनता के बीच इतनी अलोकप्रिय क्यों हो गई। इसका सबसे बड़ा कारण है महंगाई और भ्रष्टाचार। जहां पिछले 6 सालों में महंगाई ने आम आदमी को खूब रूलाया और सरकार तमाम प्रयासों के बाद इसपर लगाम नही लगाम नही लगा पायी। नई सरकार के लिए भी यह एक टेढी खीर साबित होगी। अगर मौसम विभाग के मुताबिक मानसून कम रहता है, तो उससे निपटने के उपाय अभी से तलाशने होंगे। साथ ही कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने के अलावा उसके रखरखाव की उचित व्यवस्था भी जरूरी है। भारत में 50 हजार करोड़ से ज्यादा की फल और सब्जियां सालाना बर्बाद हो जातीं है।
भ्रष्टाचार पर वार- यूपीए सरकार के करारी हार की यह दूसरी सबसे बड़ी वजह रही। 2जी, कोलगेट, रेलगेट, आदर्श सोसाइटी और सीडब्लूजी घोटाले ने सरकार की खूब किरकिरी कराई। यूपीए टू में मनमोहन सरकार इन आरोपों से अपने को बचाती नजर आई। मगर जनता ने अपने जनादेश से यह साफ कर दिया है की प्राकृतिक संसाधनों को लूटने की इजाज़त किसी को नही दी जा सकती। मोदी सरकार के लिए यह एक संदेश भी है। इसलिए नीतिगत मुददों पर फैसला लेते इन बातों का ध्यान रखना होगा।
कुल मिलाकर मोदी सरकार एक्शन में है। रिएक्शन जनता को करना है। उम्मीदें बेहद है जो स्वयं नरेन्द्र मोदी ने जगाई है। इसलिए जनता की कसौटि पर हार और जीत सिर्फ उनकी होगी। क्योंकि अबकी बार बीजेपी की नहीं, मोदी सरकार है।
केन्द्र राज्य संबंध- यूपीए सरकार के दौरान ज्यादातर गैर कांग्रेसी सरकारें भेदभाव का आरोप लगाती रहीं। कई राज्य सरकारें राज्य से ज्यादा अपेक्षा पाली हुई थी । खासकर वो जो विशेष राज्य के दर्जे की मांग लंबे समय से कर रहें हैं। इससे भी अलग मोदी के लिए सबका साथ सबका विकास गाथा को जमीन पर उतारने के लिए राज्यों से बेहतर रिश्ते कायम करने होंगे। क्योंकि भारत में जनकल्याणकारी योजनाओं के बेहतर
परिणामों के लिए उन्हे राज्य सरकार के प्रदर्शन पर निर्भरता रहेगी। साथ ही वस्तु और सेवाकर जैसे प्रमुख आर्थिक फैसले को अमलीजामा पहनाने के लिए उन्हें राज्यों का समर्थन चाहिए। चूंकि यह एक संविधान संशोधन विधेयक है।
मंत्रालयों के बीच समन्वय - यूपीए सरकार के दौरान कई मंत्रालयों में आपस में ठनी रहती थी। यही कारण था की इसके निपटारें के लिए मंत्रियों के समूह बनाए गए। समन्वय के अभाव का नतीजा यह रहा की कई क्षेत्रों में इसका नुकसान साफ देखा गया। खासकर गो और नो गो ऐरिया को लेकर पर्यायवरण मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के बीच तू- तू मैं -मैं अक्सर देखी गई। इसके चलते जमीन अधिग्रहण के कई मामले लटके रहें।
नतीजा कई बिजली घर कोयले की कमी से जूझते रहे।
बाबू फैसले लेने में डरते हैं- आरटीआई और हाल में आए घोटालों के बाद बाबूओं के फैसले लेने में देरी साफ देखी गई। बाबू किसी भी फाइल में हस्ताक्षर करने से डरतें है। इसका एक बड़ा कारण सूचना का अधिकार भी है। दबी जुबान में इसकी चर्चा होती रही मगर यूपीए सरकार सूचना के अधिकार में जनदबाव के चलते आरटीआई में बदलाव चाहते हुए भी नही कर पायी। मगर सरकार को इसपर गंभरता से विचार करना होगा।
खर्च बनाम परिणाम- भारत में सामाजिक क्षेत्र में खर्च साल दर साल बढ़ता गया मगर नतीजे उस तेजी से नही मिले। यही कारण है की जनता की कमाई का बड़ा पैसा विकास कार्यो के बजाया भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। पिछले 10 सालों में शिक्षा, स्वास्थ्य कृषि ग्रामीण विकास और शहरी विकास के लिए जमकर पैसा आवंटित किया गया मगर उसके बावजूद निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हम समय से नही कर पाए।
खर्च पर नियंत्रण- भारत में जनता के पैसों की लूट कोई नही बात नही है। मगर 2008 में जब देश और दुनिया की अर्थव्यवस्थाऐं चरमराने लगी तो एक शब्द बड़ा प्रचलित हुआ आस्टेरिटी मेजर्स। सरकार ने इसकी शुरूआत भी की। मगर खर्चो में कटौति से ज्यादा मंत्रालयों के बजट में कटौति कर दी। भारत के परिपेक्ष में इसका इस्तेमाल सही मायनों में होना चाहिए। मंत्रालयों को अपने खर्च में कटौति करनी होगी। कई सिफारिशें वेस्टफूल एक्सपेंडिचर को कम करने की सिफारिशें कर चुके हैं मगर इसमें कोई खास बदलाव नही आया।
सब्सिडी कैसे कम करेंगे- वित्तमंत्रालय का भार संभालते हुए अरूण जेठली ने साफ कर दिया की उनकी प्राथमिकता में क्या है। उनके मुताबिक आर्थिक विकास दर में सुधार, महंगाई पर लगाम और राजकोषिय संतुलन को बनाए रखना जरूरी है। साथ ही फैसले लेने में देरी को लेकर जो आरोप मनमोहन सरकार पर लगते रहे इससे वो बाहर निकालना चाहतें है। मगर यह सब जमीन पर उतारना इतना आसान नही होगा।
भारत के राजकोषिय घाटे को कम रखने के लिए सब्सिडी को कम करना जरूरी है। खासकर खाद्य तेल और उवर्रक सब्सिडी का भार लगातार बढ़ते जा रहा है जो लम्बे समय में असहनीय होगा। यूपीए ने जब इसे कम करने की हिम्मत दिखाई तो सहयोगी के साथ साथ बीजेपी से सड़क से संसद तक कोहराम मचा दिया। ऐसे में सरकार में आकार मोदी को देर सबेर इस कड़वे घूंट को पीना होगा।
मंत्रालयों का प्रदर्शन - मोदी ने 17 मंत्रालयों को 7 में मिला दिया है। मसलन काॅरपोरेट मंत्रालय वित्त मंत्रालय में और सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय को जहाजरानी मंत्रालय से जोड़ दिया है। यानि मोदी अपने मंत्र मिनिमम गर्वमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस के मुताबिक अपने मंत्रालय का आकार तय किया है। साथ ही वो महत्वपूर्ण मंत्रालयों के काम पर सीधी नजर रखेंगे। इशारा साफ है कि अपने व्यक्तित्व के अनुरूप मोदी का सारा ध्यान जी2 यानि गुड गर्वेनेंस और पी2 यानि प्रो पीपुल नीति पर होगा।
अनुसंधान पर खर्च- भारत दूसरे देशों के मुकाबले अनुसंधान में बेहद कम खर्च करता है। विकास के लिए नित नए अनुसंधानों की जरूरी होती है। खेती से लेकर विज्ञान तक सबमें नई तकनीक की जरूरत है। ऐसे में अनुसंधान आधारित मंत्रालयों के एक निश्चित भाग अनुसंधान में होना चाहिए।
महंगाई पर नकेल- यूपीए सरकार की तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के बावजूद वह जनता के बीच इतनी अलोकप्रिय क्यों हो गई। इसका सबसे बड़ा कारण है महंगाई और भ्रष्टाचार। जहां पिछले 6 सालों में महंगाई ने आम आदमी को खूब रूलाया और सरकार तमाम प्रयासों के बाद इसपर लगाम नही लगाम नही लगा पायी। नई सरकार के लिए भी यह एक टेढी खीर साबित होगी। अगर मौसम विभाग के मुताबिक मानसून कम रहता है, तो उससे निपटने के उपाय अभी से तलाशने होंगे। साथ ही कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने के अलावा उसके रखरखाव की उचित व्यवस्था भी जरूरी है। भारत में 50 हजार करोड़ से ज्यादा की फल और सब्जियां सालाना बर्बाद हो जातीं है।
भ्रष्टाचार पर वार- यूपीए सरकार के करारी हार की यह दूसरी सबसे बड़ी वजह रही। 2जी, कोलगेट, रेलगेट, आदर्श सोसाइटी और सीडब्लूजी घोटाले ने सरकार की खूब किरकिरी कराई। यूपीए टू में मनमोहन सरकार इन आरोपों से अपने को बचाती नजर आई। मगर जनता ने अपने जनादेश से यह साफ कर दिया है की प्राकृतिक संसाधनों को लूटने की इजाज़त किसी को नही दी जा सकती। मोदी सरकार के लिए यह एक संदेश भी है। इसलिए नीतिगत मुददों पर फैसला लेते इन बातों का ध्यान रखना होगा।
कुल मिलाकर मोदी सरकार एक्शन में है। रिएक्शन जनता को करना है। उम्मीदें बेहद है जो स्वयं नरेन्द्र मोदी ने जगाई है। इसलिए जनता की कसौटि पर हार और जीत सिर्फ उनकी होगी। क्योंकि अबकी बार बीजेपी की नहीं, मोदी सरकार है।
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