परम श्रद्वेय। किसानों को लेकर चर्चा बहुत हुई। अब जरूरत है उनके विकास के लिए कुछ जरूरी उपाय करने की। हमें ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना होगा कि किसान को समय पर सस्ता कर्ज, नवीनतम जानकारी, खाद, बीज, पानी, उवर्रक और उसके उत्पाद का उचित मूल्य मिले। साथ ही बजट में प्रस्तावित अटल पेंशन योजना, सुरक्षा बीमा योजना और जीवन ज्योति बीमा योजना जैसे महत्वपूर्ण योजनाओं से इस समुदाय को जोड़ा जाए। कुल मिलाकर खेती को लाभकारी कैसे बनाया जाए? इस प्रश्न का उत्तर तलाशना है?
भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौति उसकी खाद्य सुरक्षा है। एनएसएसओ के मुताबिक 41 फीसदी किसान विकल्प मिलने पर किसानी छोड़ना चाहता है। 1981 से लेकर 2001 तक 81 लाख किसान किसानी छोड़ चुके हैं। आज भी छोड़ रहें हैं। देश का 90 फीसदी किसान 2 एकड़ से कम जमीन में खेती कर रहा है। 1997 से लेकर अब तक 250000 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुकें हैं। आज भी कर रहें हैं। किसान अपने परिवार का भरण पोषम करने में असमर्थ है। आपके एक भारत श्रेष्ठ भारत बनाने के मिशन की शुरूआत इस महान कार्य से होनी चाहिए।
भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौति उसकी खाद्य सुरक्षा है। एनएसएसओ के मुताबिक 41 फीसदी किसान विकल्प मिलने पर किसानी छोड़ना चाहता है। 1981 से लेकर 2001 तक 81 लाख किसान किसानी छोड़ चुके हैं। आज भी छोड़ रहें हैं। देश का 90 फीसदी किसान 2 एकड़ से कम जमीन में खेती कर रहा है। 1997 से लेकर अब तक 250000 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुकें हैं। आज भी कर रहें हैं। किसान अपने परिवार का भरण पोषम करने में असमर्थ है। आपके एक भारत श्रेष्ठ भारत बनाने के मिशन की शुरूआत इस महान कार्य से होनी चाहिए।
भारत में विश्व की 4 फीसदी जल उपल्ब्धता है, 2.3 फीसदी जमीन है मगर जनसंख्या के मामले में हमारी हिस्सेादारी 16 फीसदी के आसपास है। यानि खेती में जबरदस्त दबाव है। तमाम उपायों के बावजूद 1980-81 में 185 मिलीयन हेक्टेयर खेती योग्य भूमि आज घटकर 183 हेक्टेयर हो खेती योग्य भूमि को संरक्षित करना। जमीनी पानी के अंधाधुंध दोहन पर रोक लगाना। भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है जबकि देष में 60 फीसदी सिंचाई और 80 फीसदी पीने के लिए हम भूजल का उपयोग करते है। पंजाब के दक्षिण पश्चिम प्रांत में जहां भूजल स्तर 80 फुट था अब वह 30 फुट तक नीचे आ गया है। इतना ही नही उवर्रकों के अंधाुधंध प्रयोग से पानी में आसेर्निक की मात्रा के बढ़ने से न सिर्फ जमीन की उर्वरा श्क्ति प्रभावित हुई है बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। आपने जो सुझाव दिया है पर ड्राप, मोर क्राप को जमीन पर लागू करना होगा। कुषि विज्ञान केन्द्रांे के अनुसंधान को किसानों के खेत तक ले जाना होगा। साथ ही यह निवेदन कि देश के कृषि विज्ञान केन्द्रों का आडिट किया जाए।
हमें अनाज के रखरखाव की व्यवस्था में बदलाव लाना चाहिए। हमें ग्रामीण स्तर पर भंडारण की व्यवस्था करनी चाहिए। ग्राम सभा को इसके रखरखाव की जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए। इससे बर्बादी भी रूकेगी। परिवहन लागत भी घटेगी और जरूरतमंदों तक समय पर राशन पहुंचने के साथ-साथ भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी।
माननीय जब आप 1.25 करोड़ आबादी की बात करें तो 50 करोड़ पशुधन के बारे में भी अवश्य जिक्र करें। किसान के लिए एक निर्धारित मासिक रकम की व्यवस्था, 2007 में आई राष्ट्रीय किसान नीति का क्रियान्वयन, न्यूनतम समर्थन मूल्य के आंकलन की पद्वति में बदलाव, किसान की सीधे बाजार तक पहुंच और इस क्षेत्र से जुड़ी नवीनतम जानकारी तक किसान की पहुंच।
भारत में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता विकसित देशों के मुकाबले 3 गुना कम हैं। भारत में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1127 किलोग्राम है जबकि अमेरिका में 2825 और चीन में 4455 किलोग्राम है। चावल की प्रति हेक्टयर उत्पादकता भारत में 3124 किलोग्राम जबकि अमेरिका और चीन में यह 7694 और 6265 किलोग्राम है। इसे कैसे बढ़ाया जाए इस पर विचार हो?
हमारा एनपीके का अनुपात असंतुलित है। आदर्श अनुपात 4ः2ः1 होना चाहिए। दूसरी तरफ हम प्रति हेक्टेयर उवर्रक का इस्तेमाल कम करतें हैं। भारत में प्रति हेक्टेयर जमीन पर 117.07 किलोग्राम उवर्रकेां का इस्तेमाल होता है जबकि चीन में यह मात्रा 289.10, इजिप्ट में 555.10 और बंग्लादेश में 197.6 किलोग्राम है। भारत के उवर्रकों के इस्तेमाल का अुनपात एक आंकड़े के मुताबिक भारत में 2001 से 2008 तक उत्पादन 8.37 फीसदी बढ़ा, उत्पादकता 6.92 मगर उवर्रकों में मिलने वाली सब्सिडी का बिल 214 फीसदी बड़ गया।
किसानों की खेती में हुए नुकसान के गणना का तरीका दशकों पुराना है। इसमें बदलाव लाना चाहिए। किसानों को बड़े पैमाने पर क्राप इंश्योरेंश स्कीम का फायदा मिलना चाहिए।
माननीय जब आप 1.25 करोड़ आबादी की बात करें तो 50 करोड़ पशुधन के बारे में भी अवश्य जिक्र करें। किसान के लिए एक निर्धारित मासिक रकम की व्यवस्था, 2007 में आई राष्ट्रीय किसान नीति का क्रियान्वयन, न्यूनतम समर्थन मूल्य के आंकलन की पद्वति में बदलाव, किसान की सीधे बाजार तक पहुंच और इस क्षेत्र से जुड़ी नवीनतम जानकारी तक किसान की पहुंच।
भारत में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता विकसित देशों के मुकाबले 3 गुना कम हैं। भारत में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1127 किलोग्राम है जबकि अमेरिका में 2825 और चीन में 4455 किलोग्राम है। चावल की प्रति हेक्टयर उत्पादकता भारत में 3124 किलोग्राम जबकि अमेरिका और चीन में यह 7694 और 6265 किलोग्राम है। इसे कैसे बढ़ाया जाए इस पर विचार हो?
हमारा एनपीके का अनुपात असंतुलित है। आदर्श अनुपात 4ः2ः1 होना चाहिए। दूसरी तरफ हम प्रति हेक्टेयर उवर्रक का इस्तेमाल कम करतें हैं। भारत में प्रति हेक्टेयर जमीन पर 117.07 किलोग्राम उवर्रकेां का इस्तेमाल होता है जबकि चीन में यह मात्रा 289.10, इजिप्ट में 555.10 और बंग्लादेश में 197.6 किलोग्राम है। भारत के उवर्रकों के इस्तेमाल का अुनपात एक आंकड़े के मुताबिक भारत में 2001 से 2008 तक उत्पादन 8.37 फीसदी बढ़ा, उत्पादकता 6.92 मगर उवर्रकों में मिलने वाली सब्सिडी का बिल 214 फीसदी बड़ गया।
किसानों की खेती में हुए नुकसान के गणना का तरीका दशकों पुराना है। इसमें बदलाव लाना चाहिए। किसानों को बड़े पैमाने पर क्राप इंश्योरेंश स्कीम का फायदा मिलना चाहिए।
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