क्या आप जानतें है की भारत में अबू सलेम और दाउद इब्राहिम भी चुनाव लड़ सकतें है। ऐसा मुमकिन है। 2006 में मुख्य चुनाव आयुक्त ने यही चिंता प्रधानमंत्री के सामने रखी थी। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बाद की निचली अदालत से 2 साल की सजा़ या उससे ज्यादा में सदस्यता स्वतः रदद हो जाएगी कुछ उम्मीद जगी। जो आज आप कैंडिडेट की शैक्षिक योग्यता और आर्थिक स्थिति के बारे में जान पातें है, उसे भी सुप्रीम कोर्ट ने लागू किया। राजनेता संसद के जरिये इस आदेश पलटने की कोशिश भी की। मगर सुप्रीम कोर्ट नही माना। चुनाव सुधार। देश की सबसे बड़ी जरूरत। मित्रों अगर राजनीति की चाल सुधर जाए तो बाकी चीजें अपने आप दुरूस्त हो जाऐंगी। मगर इस राजनीति में बदलाव कोई लाना ही नही चाहता। ऐसा नहीं की सरकारों को मालूम नही की करना क्या है। सवाल है कि करेगा कौन? दर्जनों समितियों की सिफारिशें धूल फांक रही है। 1975 से अब तक। मगर राजनीति है की सुधरने का नाम ही नही लेती। मसलन
1975 तारकुन्डे समिति
1990 गोस्वामी समिति
1993 एनएन वोहरा समिति
1998 इंद्रजीत गुप्ता समिति
1999 विधि आयोग की रिपोर्ट
2001 संवीधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए बनी राष्टीय समीक्षा समिति
2004 चुनाव आयोग की सिफारिशें
2008 विधि मंत्रालय से जुड़ी स्थाई समिति की रिपोर्ट
2008 दूसरा प्रशासनिक सुधार अयोग
समितियों का खेल जबरदस्त हुआ। मगर 4 दशक बीत गए मगर सरकारों का एक ही रटारटाया बयान। सहमति बनाने के लिए प्रयासरत हैं?
1975 तारकुन्डे समिति
1990 गोस्वामी समिति
1993 एनएन वोहरा समिति
1998 इंद्रजीत गुप्ता समिति
1999 विधि आयोग की रिपोर्ट
2001 संवीधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए बनी राष्टीय समीक्षा समिति
2004 चुनाव आयोग की सिफारिशें
2008 विधि मंत्रालय से जुड़ी स्थाई समिति की रिपोर्ट
2008 दूसरा प्रशासनिक सुधार अयोग
समितियों का खेल जबरदस्त हुआ। मगर 4 दशक बीत गए मगर सरकारों का एक ही रटारटाया बयान। सहमति बनाने के लिए प्रयासरत हैं?
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