कोई सिर पर ले उड़ा...
कोई कांधे पर ले भागा..
और सफर शायद लंबा था इसलिए कई तो ट्रैक्टर पर लाद कर ले गए। खाट की ऐसी ठाठ थी...कि लुट कर भी अपने खास होने का उसने देश को अहसास करा दिया। प्रतीकों की राजनीति करना भारतीय नेताओं की आदत है, इसलिए कुछ दिनों पहले तक चायवाले ख़ास थे और अब खाट वाले इतरा रहे हैं..वक्त बदला है पहले चाय पर चर्चा होती थी...अब खाट का बोलबाला है..अब तक लोगों का बोझ-उठाए फिर रही खाट को ये पहली बार पता चला कि उसका रूतबा भी कम सियासी नहीं...खाट की अहमियत कांग्रेस समझ गई लेकिन ये बेचारे तो लाचार हैं वो तो अब भी यही जानते हैं...खाट वोट की नहीं उनकी ज़रूरत की चीज़ है..इसलिए जिसे खाट मिली वो उसे ले उड़ा। कैमरे की नज़रों में लुटते खाट की तस्वीरों ने ज्यादा सुर्खियां बटोरी..लेकिन यहां चर्चा तो सियासी है..खाट पर बैठकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पहले लखनऊ और फिर दिल्ली तक का सफ़र करने निकले हैं..
राहुल गांधी के लिए सवाल कांग्रेस सिमटती ज़मीन का है...शीला दीक्षित को चेहरा बनाने का दांव कारगर होता नहीं दिख रहा...इसलिए उन्हें इस खाट से ज्यादा आस है...ये अलग बात कि सियासी विरोधियों को इस खाट में भी खोट नज़र आ रहा है। खाट खड़ी करना कहावत पुरानी है लेकिन अहमियत कम नहीं...विपक्षी राहुल गांधी का जमकर मखौल उड़ा रहे है। सपा बसपा और बीजेपी पहले ही उन्हे मिशन यूपी की दौड़ से बाहर मान रही है। मगर राहुल के रणनीतिकारों का क्या करें वो तो सोझ रहे होंगे राहुल से तो चमत्कार की उम्मीद नही क्या जाने ये खाट ही चमत्कार कर जाए?
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