शनिवार, 30 मई 2009
नेता कहिन जीतो हर कीमत पर
चुनाव चुनाव चुनाव। कितने अच्छे है यह चुनाव। नेताओं को जानो। उनके देश प्रेम्र को मानो। दोस्तों को खिलाफ होते देखो। अपनो को पराये होते देखो। जो कल तक एक दूसरे के खिलाफ आग उगलते देखे जाते थे, आज एक दूसरे की जय जयकार करते नही अघाते। न किसी को किसी से हमेशा के लिए प्रेम न नाराजगी। जैसी समय की मॉंग वैसा मुखौटा पहन लो। गठबंधन भी सुविधा के हिसाब से। विचारधारा की खाल उधेड दो, मगर हाथ में आई सोने देने वाली मुर्गी न जाने दो। जनता से अनाप सनाप वादे कर दो। पॉच साल के बाद रटा रटा बयान दे दो। जो कहा वही किया। इसके अलावा कुछ नही किया। प्लीज एक बार और वोट दे दो। जनता के भी क्या कहने। किसी से ज्यादा प्रेम नही। प्रसाद सबको मिलेगा की तर्ज पर वोट थोडा थोडा सबको। थोडा बहुत ख्याल जात बिरादरी का भी। नेता कहिन जीतो हर कीमत पर। सत्ता में हर कोई बैठना चाहता है। नही मिली तो सारी करी कराई मेहनत में पानी फिर जायेगा। राजनीति में कमाई भी ठीक ठाक है। पॉच साल में विकास के नाम पर जेब भरो। ये मिडीया भी अजीब जन्तु है। पॉच हजार वाले को कैमरे में कैद करती है। पॉच करोड वाले की इमानदारी पर किसी को शक नही होता। राजीनिति मे सौदेबाजी की भी अपार संभावनाऐं है। क्यों आपको नही मालूम की सरकार के पक्ष में वोट डालने में करोडों मिले थे। दुख तो इस बात का है कि ऐसा मौका बार बार क्यों नही आता। हम तो बहती गंगा में हाथ धो नही पाए। कास मैं भी सांसद होता। कुछ संभावनाऐं तो बनती। खूब बडी बडी बातें करता। वादे करता, घोटाले करता। विकास के नाम पर चिल्ला कर अपनी आवाज खराब कर देता। नतीजों से पहले जीत को लेकर अति उत्साहित होता। नतीजों के बाद कहता शायद झूठ बोलने में कुछ कमी रह गई थी।
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