प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने दूसरे कार्यकाल में विकास की एक ऐसी इबारत लिखना चाहते है। जहॉं अमीर और गरीब के बीच का फासला कम हो सके। इसलिए उन्होनें अपनी नई पारी में इसका ऐलान भी कर दिया है। जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन के सहारे वो शहर का निर्माण कर रहे है तो भारत निर्माण के माध्यम से गॉंव की तस्वीर और तकदीर बदलने के प्रयास जारी है। मगर एक बात है जो इस तस्वीर को धुंधला कर रही है, वह है इसके तहत तय किये लक्ष्यों का पूरा न होना। यह खुद सरकार को भी मालूम है। भारत निर्माण का जन्म 2005 में हुआ। इसके तहत गॉंवों को 4 सालों में बिजली पानी सड़क सिंचाई टेलीफोन और घर मुहैया कराने के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित किये गये थे। इसमे 6 योजनाऐं शामिल है जो गॉव के मूलभूत ढॉंचे को मजबूत करने का काम करेंगी। इनमें से ज्यादातर काम पूरे नही हो पाये। इसके लिए सरकार ने 174000 करोड़ का आवंटन किया मगर काम के धीमेपन ने न सिर्फ सरकार को निराश किया बल्कि आम जनमानस तक को कई सुविधाओं से महरूम होना पडा। अब सरकार अपने नये कार्यकाल में कुछ नए लक्ष्य निर्धारित करने की बात कर रही है। मसलन इंदिरा आवास के तहत 2005 से 2009 के बीच 60 लाख मकान बनाये जाने थे जिन्हें समय से पूरा कर लिया गया। इससे उत्साहित सरकार अब अगले पॉंच सालों में 1 करोड़ 20 लाख मकान बनाने जा रही है। मगर बिजली पानी सडक और सिंचाई के काम का पिछला रिकार्ड बेहद खराब रहा है। बस टेलीफोन गॉवों तक तेजी से पहंचाने में सरकार सफल रही है। बिजली जिसे 125000 गॉवों में जगमगाना था वो 66000 गॉंवों तक ही जा पाई। सडकों का दायरा 350000 किलोमीटर फैलाने का था उसका काम 36 फीसदी ही हो पाया। ऐसा ही हाल सिंचाई और पानी का रहा। सिंचाई का तय लक्ष्य 10 मिलीयन हेक्टेयर का था। हो पाया आधा। पीने के पानी की कहानी भी कमोबेश यही रही। अब सरकार इसको लेकर पेरशान है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसको लेकर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुके है। अब सवाल यह उठता है कि सिर्फ लक्ष्य निर्धारित करने से काम नही बनेगा। सभी काम अपनी तय समयसीमा से पूरे सके इसके लिए कुछ जरूरी उपाय करने होगें। मसलन योजनाओं को पूरा करने का जिम्मा राज्य सरकार की मशीनरी का है। अगर वो इसे नही कर पाते तो उनके खिलाफ कारवाई होनी चाहिए। जरूरत पड़ने पर सरकार आर्थिक दंड भी लगा सकती है। अगर इसके लिए संविधान संशोधन की जरूरत पडे तो उससे भी पीछे नही हटना चाहिए। शायद लोगों के प्रति सरकारों की जवाबदेही तभी बन पायेगी। तब न तो केन्द्र सरकार क्रियान्वयन सही से न कर पाने का ठीकरा राज्य सरकारों के मथ्थे मड़ पायेगी। न ही राज्य सरकार बहानेबाजी कर आसानी से बच पायेगें। एक दूसरे को नीचा दिखाना समस्या का समाधान नही है। केन्द्र सरकार को राज्यों के साथ मिल बैठकर इसका कोई न कोई उपाय निकालना होगा। सिर्फ ज्यादा पैसे देने से काम नही बनेगा। जवाबदेही और पारदर्शिता तय की जानी चाहिए।
BHATT JI JANKARI LABHDAYAK LAGI.
जवाब देंहटाएंTV PAR AAPKI CHARCHA SUNTA RAHTA HU.
PADH KAR UAR BHI ACHHA LAGA.
GUNO KI KHAAN HO AAP.
DHANYAVAD
RAMESH SACHDEDVA
hpsshergarh@gmail.com