जनादेश 2009 ने कई राजनीतिक पंडितों को दातों तले उंगली दबाने के लिए मजबूर कर दिया। किसी को ऐसे जनादेश की आशा नही थी। खुद कांग्रेसी दिग्गज हैरान थे। पहले मालूम होता तो शायद राहुल बाबा भी टीडीपी और नीतिश कुमार का मन नही टटोलते। न ही विरप्पा मोईली से मीडीया प्रभारी का जिम्मा छिना जाता। मगर नतीजों ने सब कुछ साफ कर दिया। आखिर यह संकेत किस ओर था। किसके लिए था। किसके खिलाफ था। भारत की आवाम आखिर क्या चाह रही है। क्यों उसने एक ऐसे दल पर भरोसा किया जिसके कार्यकाल में मुंबई में आतंकवादी हमला हुआ। महंगाई आसमान छूने लगी। आर्थिक मंदी के प्रभाव के चलते रोजगार पर लात पड़ रही थी। चलिए समझते है कि भारत की जनता का इसके पीछे का संदेश क्या है। भारत की जनता गठबंधन राजनीति के बेमेल जोडो से तंग आ गई है। वह तंग आ गई है कि सत्ता पाने के लिए राजनीतिक दल वह सब कुछ कर रहे है जो जनता जनार्दन को नागवार गुजर रहा है। यह यह गठबंधन से निराश जनता को दो दलीय व्यवस्था की राजनीति की तरफ बडने के लिए दिया गया जनादेश है। शायद इसिलिए टीडीपी, टीआरएस और एलजेपी से शुरूआत उन्होनें कर दी है। छोटे दलों के लिए यह संकेत भी है और चेतावनी भी। समय से नही सुधरे तो सिर्फ नाम रह जायेगा। साथ ही यह चुनाव सकारात्मक और नकारात्मक प्रचार के बीच एक लक्ष्मण रेखा भी खींचता है। बीजेपी का प्रचार इसका जीता जागता प्रमाण है। सबसे बडी बात है कि भारत की आवाम ईमानदारी को आज भी सलाम ठोकती है। इसिलिए तो बीजेपी के लाख कहने पर भी कि यह प्रधानमंत्री बहुत कमजोर है। फैसले 10 जनपथ से होते है। जनता ने भाव नही दिया। यहॉं पर एक बड़ा फर्क है। मेरा मानना है कि यह सच भी है तो कांग्रेस की सबसे बडी ताकत भी यही है। अनुशासन का सबसे बडा कारण भी यही है। इसी वजह से यह पार्टी अब तक न सिर्फ खडी है बल्कि लोगो ने इसे विश्वास पात्र भी माना है। इसमें कोई दो राय नही कि सच्चे मायने में इसका श्रेय सोनियॉं गांधी को ही जाता है और कई हद तक ईमानदार और विनम्र प्रधानमंत्री के साथ ही राहुल गांधी की युवाओं पर भरोसा करने की रणनीति पर भी। चुनाव के दौरान बीजेपी में इसका अभाव दिखाई दिया। नतीजा 2004 के 138 सीटों से गिरकर 116 पर आ गए। तीसरे मोर्चे और चौथे र्मोचे की भी जनता ने हवा निकाल दी। साथ ही यह पैगाम भी दे दिया कि अगर सुविधा के हिसाब से पाला बदलने की बाजीगरी आप लोगो ने दोबारा दिखाई तो हम माहिर लोगो आपको सबक सिखा देंगे। एक सीख कांग्रेस के लिए भी। हमने आप पर विश्वास किया है आप हमारी अपेक्षाओं पर खरा उतरिये। क्योंकि पॉंच साल बाद आपके तकदीर का फैसला हमें ही करना है। सही मायने में इस चुनाव ने राजनीतिक दलों को न सिर्फ आत्ममंथन का मौका दिया है बल्कि ईमानदारी से अपनी गलतीयों को जानने और सुधारने का मौका भी।
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