सोमवार, 3 मई 2010

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन

राष्ट्रीय विकास परिषद की 53वी बैठक में सारी माथापच्ची इस बार पर थी कि देश में कृषि उत्पादन को कैसे बढ़ाया जाए। गिरती उत्पादकता और बढती खाघान्न की मांग ने सरकार के माथे पर बल डाल रखा था। सरकारों के सामने बढती आबादी के पेट भरने की चुनौति थी। लम्मी जद्दोजेहद के बाद नामकरण हुआ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का। मिशन के तहत अगले पांच सालों में खाघान्न के उत्पादन को 20 लाख टन तक बढाने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें चावल का उत्पादन 1 करोड़ टन, गेहूं का 80 लाख टन और दालों का उत्पादन 20 लाख टन तक करने का लक्ष्य है। मिशन के तहत 17 राज्यों के 312 जिलों को चुना गया। जिसमें चावल के लिए 136 जिले, गेहूं के लिए 141 और दालों के लिए 171 जिलों चयन किया गया। इतना ही नही, गेहूं के लिए 13 मिलियन हेक्टेयर ,चावल के लिए 20 मिलियन हेक्टेयर दालों के लिए 22 मिलियन टन हेक्टेयर अतिरिक्त जमीन इस्तेमाल में लायी जा रही है। मौजूदा वित्त वशZ में असम के पांच और झारखण्ड के 10 नए जिलों को इस मिशन से जोड़ गया। कुल मिलाकर मिशन 2012 तक सरकार इस पर 4882.48 करोड का खर्च करेगी। पहली बार उत्पादन बड़ाने के लिए सरकार किसानों तक खेती से जुडी नयी तकनीक पहुंचा रही है। किसानों को अच्छे बीज के साथ साथ कृशि सम्बन्धित उपकरणों मुहैया कराये जा रहे है। अच्छा उत्पादन करने वाले जिलों को प्रोत्सहान देने के बात कही गई है। लक्ष्य तक पहुंचने के लिए निगरानी तन्त्र का गठन किया गया है। मगर सरकार की यह योजना धराशायी होती दिखाई दे रही है। बीते तीन सालों में दाल उत्पादन से जुडे 171 जिलों पर नज़र डाली जाए तो योजना की हकीकत खुद पर खुद बयॉ हो जाती है। दिसम्बर 2009 तक आवंटित किए 1014.35 करोड़ के मुकाबले 369.57 करोड़ ही खर्च हो पाये। मतलब साफ है जब योजना के लिए आवंटित पैसा ही खर्च नही हुआ तो लक्ष्य तक पहुंचने का सपना देखना बेमानी लगता है। योजना को पूरा होने में अभी 2 साल बाकी है। देखना दिलचस्प यह होगा कि क्या सरकार इस लक्ष्य के आसपास पहुंच पाती है।

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