मंगलवार, 4 मई 2010
अनिवार्य मतदान कितना जरूरी
वोट देना किसी भी नागरिक का अधिकार है लिहाजा इसे अनिवार्यता के दायरे में लाना कितना व्यवहारिक होगा। इन दिनों राजनीति के गलियारें में यह मुददा ज़िरह का विशय बना हुआ है। लोगों की राय बटी हुई है। कुछ लोगो का तो यहां तक कहना है कि चुनाव के दौरान किये हुए वायदों को भी कानून जामा पहनाना चाहिए। बहरहाल इस बहस का जन्म गुजरात विधानसभा द्धारा पारित गुजरात स्थानीय प्राधीकरण संशोधन कानून 2009 जिसमें शहरी निकाय और पंचायत चुनावों में मत डालने को अनिवार्य बनाया गया था से शुरू हुई। फिलहाल यह विधयेक राज्यपाल ने गुजरात सरकार को वापस लौट दिया है। वही लोकसभा में कांग्रेस के सांसद जेपी अग्रवाल द्धारा लाये गए अनिवार्य मतदान विधेयक 2009 पर चर्चा हुई। चर्चा के दौरान ज्यादातर राजनीतिक दल इस बात पर सहमत दिखे की गिरते मतदान प्रतिशत को सम्भालने के लिए मतदान को अनिवार्य बनाना जरूरी है। इस देश में 75 करोड़ मतदाता है। जिनमें से सिर्फ 60 फीसदी ही अपने मत का चुनाव के दौरान इस्तेमाल करते है। बस यही बात भारतीय लोकतन्त्र के लिए एक मुश्किल सवाल है कि आखिर क्यों लोग चुनाव के दौरान अपना वोट डालने नही आते। क्या जनमानस की अदालत में राजनीतिक दलों की विश्वसनियता कठघरे में खडी है। क्या लोकतन्त्र के सबसे बडे उत्सव में बड़ते बाहुबल और धनबल ने लोगों को निराश किया है। क्या मतदाता सूचियों में भारी गडबडियां गिरते मतदान का कारण है। क्या जनता और जनप्रतिनीधि के बीच की दूरियां इसके लिए जिम्मेदार है। क्या यह जानना जरूरी नही है कि कौन वोट देने आता है, कौन नही। क्या भारतीय मतदाता जनप्रतिनीधियों के बदलते आचरण के चलते अपने को ठगा महसूस करता है। यह कुछ ऐसे सवाल है जिनका जवाब ढ़ूंढना आज जरूरी है। आंकडे इस बात की गवाही देते है की ज्यादा वोट प्रतिशत का मतलब सत्ताधारी दल के खिलाफ होता है। पहले लोकसभा चुनाव से लेकर 15वी लोकसभा के मतदान प्रतिशत पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि चुनाव प्रतिशत सुधरने के बजाय गिरा है। लोकसभा के इतिहास में 1984 में 63.56 प्रतिशत मतदान हुआ जो अब तक का एक रिकार्ड है। गौरतलब है कि यह चुनाव इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ जिसमें पुरूश मतदाताओं की संख्या 68.18 प्रतिशत और महिलाओं की संख्या 58.60 प्रतिशत रही। यहां गौर करने की बात यह भी है बीते 15 लोकसभा चुनाव में इतनी बडी तादाद में पुरूश और महिला मतदाता वोट देने के लिए घर से नही निकले। बहरहाल इन प्रयासों पर चुनाव आयोग यह कहकर पानी फेर चुका है कि यह कदम अव्यवहारिक है। इसमें एक पहलू 49 ओ से भी जुडा हुआ है। चुनाव आयोग इस प्रावधान को लागू करने से जुडी सिफारिश सरकार को दे चुका है। बहरहाल यह सुझाव सरकार के पास विचाराधीन है।
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किसी की राय कुछ भी हो ,जो लोकतंत्र की मजबूती के लिए सोचते हैं ,उनकी राय एक है की,आज अनिवार्य मतदान की आवश्यकता है /
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