औद्योगिक और सर्वधन विभाग द्धारा जारी चर्चा पत्र में मल्टी ब्राण्ड रिटेल के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बात कही गई है। रिटेल भारत में कृषि क्षेत्र के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। 8 से 9 प्रतिशत की सालाना दर से यह क्षेत्र आगे बडा रहा है। इससे पहले एकल रिटेल ब्राण्ड में 2006 में 51 फीसदी एफडीआई को अनुमति दी थी। साथ ही होलसेल में 100 फीसदी विदेशी निवेश की। 2006 से मई 2010 तक 901 करोड का निवेश इस क्षेत्र में आया है। इसमें से ज्यातातर निवेश खेल से जुडे परिधानों में लग्जरी समान जेवरात और हैण्डबैग में आया है। मगर मल्टी ब्राण्ड के मसले में विरोध की तीव्रता देखते हुए लगता है कि यह मसला ठण्डे बस्ते में चला जायेगा। दरअसल चर्चा पत्र के आते ही विरोध के सुर कडे होते जा रहे है। वामदल तो खिलाफ थे ही मुख्य विपक्षी दल भाजपा भी सरकार के खुलकर विरोध में आ गई है। उसका मानना है कि इस क्षेत्र में विदेशी निवेश का मतलब छोटे कारोबरियों और रेहडी पटरी वालों जिनकी की संख्या 4 करोड़ के आसपास है अपने रोजगार से महरूम हो जायेंगे। भारत में 95 फीसदी खुदरा कारोबारी असंगठित क्षेत्र से आते है। केवल 5 फीसदी संगठित क्षेत्र से आते है। आज जरूरत है मल्टी ब्राण्ड क्षेत्र में विदेशी निवेश की इजाज़त देने से पहले निम्नलिखित सवालों का जवाब ढंढा जाऐ।
1-छोटे कारोबारियों और रेहडी पटटी वालों पर इसका क्या प्रभाव होगा।
2-क्या वोलमार्ट जैसी दिग्गज कंपनियां जो भारत के बाजार में प्रवेश के लिए ललायित है,उतने लोगों को रोजगार दे पायेंगी जितने लोग असंगठित खुदरा कारोबार से जुडे है।
3-इस बात में कितना दम है कि किसान और ग्राहकों का इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा।
4-आज थोक और फुटकर दामों में जो बडा अन्तर है क्या उसे पाटने में मदद मिलेगी।
5-आखिर में सबसे अहम भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पडेगा।
सच्चाई यह है कि सिंगल ब्राण्ड में इन नियमों का पालन नही हो रहा है। भारत में रिटेल में जीडीपी की हिस्सेदारी 10 फीसदी के आसपास है जबकि चीन में यह 8फीसदी ब्राजील में 6 फीसदी और अमेरिका में 10 फीसदी है। भारत में तकरीब 1.5 करोड़ रिटेल स्टोर है जिनमें प्रमुख है पैन्टलून, सौपर्स स्टॉप , स्पैंसर, हाइपर सीटी, लाइफस्टाइल, सुभिक्षा और रिलायंस। रिटेल क्षेत्र 70 फीसदी खाद्यान्न से जुडा हुआ है। जिसका मतलब इसमें होने वाले निवेश का असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पडेगा। जो लोग रिटेल में विदेशी निवेश के पक्ष में है उनका कहना है कि इस क्षेत्र में एफडीआई आने से तकनीक और ढांचागत विकास तेजी से बडेगा। देश में सालाना आधर पर जो 50 हजार करोड़ का राशन और सब्जियां बेकार चली जाती है, उसमें सुधार आयेगा। यह सब इसलिये क्योंकि हमारे यहां प्रोसेसिंग महज 2 फीसदी होती है जबकि आस्टेलिया और फीलिपीन्स जैसे देशों में यह 90 फीसदी है। इस बात को ध्यान में रखकर सरकार इस क्षेत्र में सुधार के लिए विदेशी निवेश की बात कर रही है। अगर इस क्षेत्र में एफडीआई को हरी झण्डी मिलती है तो इस बात का प्रावधान करना जरूरी होगा कि कोई प्राधिकरण का गठन किया जाए जो इस क्षेत्र पर अपनी नज़र रख सके। साथी ही वाणिज्य मन्त्रालय से जुडी स्थाई समिति ने यह सिफारिश की है कि सरकार असंगठित क्षेत्र के कारोगारियों को संगठित कैसे बना सकती है उस पर विचार करें।
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