मंगलवार, 31 अगस्त 2010

मानसून सत्र का लेखाजोखा



लगभग 26 दिन चला मानसून सत्र मंगलवार को अनिश्चित काल तक के लिए स्थगित कर दिया गया। यह 15वीं लोकसभा का पांचवा सत्र था। मानसून सत्र में कुल अवधि 136 घंटे 10 मिनट की रही, जिसमें से 45 घंटे हंगामें की भेंट चढ़ गए। हंगामें के चलते 11 दिन प्रश्नकाल नही चला। इस दौरान 18 विधेयक सभा पटल पर रखे गए। 20 विधेयकों को लोकसभा ने पारित किया जिनमें परमाणु दायित्व विधेयक 2010 और सांसदों के वेतन और भत्तों से जुड़े विधेयक भी शामिल है। सदन में कुल 460 तारांकित सवाल पूछे गए जिनमें से केवल 46 प्रश्नों का मौखिक जवाब मिला यानि प्रतिदिन 1.91 फीसदी। इसके अलावा 5283 अतारांकित प्रश्नों के जवाब सदन पटल पर रखे गए। मौजूदा वित्त वर्ष के लिए अनुदानों की अनुपूरक मांगों पर सामान्य रेलवे और झारखण्ड पर चर्चा हुई और ध्वनिमत से इसे पारित कर दिया। देश भर में उर्वरकों की उपलब्धता पर आधे घंटे की चर्चा हुई। लोकमहत्व के 314 मुददे सांसदों ने उठाये। 276 मामलों को नियम 377 के तहत सासन्दों ने उठाया। विभिन्न मन्त्रालयों से सम्बन्धित स्थाई समितियों की 45 प्रतिवेदन सभा पटल पर रखे गए। इसके अलावा निम्नलिखित लोकमहत्व से जुड़े मुददों पर नियम 193 के तहत चर्चा हुई।
राष्मण्डल खेलों के निर्माण में हो रही देरी।
भोपाल गैस त्रासदी।
देश भर में बाढ़ से उत्पन्न स्थिति।
अनूसूचित जाति और जनजाति पर अत्याचार।

अल्पावधी चर्चा के दौरान गैर कानूनी खनन और जम्मू और कश्मीर की स्थिति पर चर्चा हुई। इसके अलावा पहली बार संसदीय इतिहास में नियम 342 के तहत अर्थव्यवस्था पर मुद्रािस्फति का दबाव व इसका आम आदमी पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा हुई। इसके अलावा जनसंख्या को स्थिर रखने जैसे महत्वपूर्ण मददे पर जोरदार बहस देखने को मिली। ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के नीचे दिये गए मुददों पर माननीयों ने सरकार का ध्यान खींचा।
ऑनर किलिंग।
मणीपुर में नगा संगठनों द्धारा किए गए बन्द से उत्पन्न स्थिति।
श्रीलंका में तमिल विस्थापितों का पुर्नवास।
भोजपुरी और राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने।
भारतीय मछवारों पर श्रीलंका के नौसेना के बढ़ते हमले।
पीएयू-201 किस्म के 40 लाख टन चावल को खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम 2006 के चलते अस्वीकार किये जाने।
इतना ही नही मानसून सत्र में मन्त्रीयों से 57 वक्तव्य दिये। लोकसभा की कार्यवाही कई दिन देर रात तक चली। निजि विधेयकों की अगर बात की जाए तो इस सत्र में 25 निजि विधेयक सदन में लाए गए। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने माननीयों से दो टूक कहा कि लाखों बलिदान के बाद ही आज हम यहां बैठे है। लगातार संसद की कार्यवाही में गतिरोध पैदा करना खतरनाक है और भविष्य में इसके गम्भीर परिणाम होंगें। मगर लगता नही कि इसका असर सासन्दों पड़ पड़ेगा। दरअसल माननीयों को इस तरह के भाषणों को सुनने की आदद पड़ गई है। डर इस बात का है कि उनकी यह आदत लोकतन्त्र के लिए वाकई घातक है। क्योंक यह सबसे बड़ी पंचायत से लोगों की भारी अपेक्षाऐं जुड़ी होती हैं और जनप्रतिनिधयों को चाहिए वह इसका सम्मान करें।

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