शनिवार, 21 अगस्त 2010
बाल मजदूरी का दंश
बाल मजदूरी के खिलाफ 1986 में कानून पारित होने के बाद भी आज भी बाल श्रमिक बडे पैमाने पर मौजूद है। सरकार आंकडों के मुताबिक आज इनकी संख्या 90 लाख 75 हजार के आसपास है। जिसमें से उत्तर प्रदेश 2074000 और आंध्रप्रदेश में 1201000 बच्चे आज भी बालमजदूर हैं। अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा बाल मजदूर कृषि क्षेत्र में काम करते है। इसके अलावा 60 हजार बच्चे ग्लास और चूड़ी उद्योग में, 2 लाख माचिस बनाने के कारोबार में, 4.20 लाख कारपेट उद्योग और 50 हजार ताले बनाने के काम में जुड़े हुए है। एक बड़ी तादाद घरेलू नौकरों के तौर पर भी बच्चों की है। बालश्रम का अर्थशास्त्र बिलकुल सीधा है। कानून बनने के बाद भी लोग इनका शोषण करते है तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण इनका सस्ते में मिलना है। दूसरा आप जितना मर्जी इनसे काम करवा सकते है। परिवार गरीब है लिहाजा रोजी रोटी का इन्ताजाम करने की जिम्मेदारी इनके कोमल जीवन को कठोर बना रही है। आज सरकार शिक्षा का कानून अमल में ला चुकी है, मगर जब तक भारत का भविष्य रोटी की तलाश में इस तरह काम का बोझ उठायेगा तक तक विकसित भारत का सपना देखना बेमानी है। बाल श्रम से इस देश को मुक्ति दिलाने में हर एक आदमी बड़चड़कर हिस्सेदार बन सकता है। केवल सरकार के भरोसे सबकुछ छोड़ने से कुछ नही होने वाला। सरकार का प्रर्दशन क्या रहा है। 2001 की जनगणना के मुताबिक बाल श्रमिकों की देश में तादाद 1.26 करोड़ थी। भारत सरकार आज 22 राज्यों के 266 जिलों में राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना चला रही है। मगर इसका कोई खास असर जमीन पर देखने को नही मिल रहा है। आज जरूरत है ऐसे लोगों के खिलाफ कठोर कारवाई करने की जिसने मासूमियत के धन की महत्वकांक्षा के चलते जमीन के तले दबा दिया है। लिहाजा हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि इन बच्चों को हरसम्भव तैयार करें ताकि राष्ट्र निर्माण में इनका योगदान भी मिल सके।
सब आंकडे सरकारी है. सच कहीं अधिक कडबी है. हल तो यह है की मिडिया. अधिकारी और व्यापारी सब के यहां बाल मजदूर हैं..
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