रविवार, 26 दिसंबर 2010

महा - भारत

अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन। दुनिया के सबसे ताकतवर देश। 2010 का साल इन पांचों महाशक्तियों के भारत आगमन के लिए जाना जाएगा। इनका भारत प्रेम से स्पष्ट है कि भारत विश्व मंच में अपनी एक अलग पैठ बना चुका है। खासकर हमार अर्थव्यवस्था ने मंदी से बाहर निकलते हुए जिस तरह की विकास दर हासिल की है उसने सबको मजबूर कर दिया है कि वर्तमान में भारतीय बाजार में निवेष की बड़ी गुंजाइश है। भारत को भी अपने कई क्षेत्रों में विदेशी निवेश की जरूरत है। खासकर ढांचागत विकास की गति को बनाए रखने के लिए।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार 
चीन को छोड़कर बाकी चारों देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के साथ भारत की उसमें अहम भागीदारी की पुरजोर वकालत की हमें खुश कर दिया। पहली बार अमेरिका ने न सिर्फ भारत की दावेदारी का खुलकर समर्थन किया बल्कि अफगानिस्तान में हमारे काम की जमकर सराहना भी की। इधर चीन के रवैये में कुछ खास बदलाव देखने को नही मिला। मगर सवाल उठता है कि उसका यह विरोध अकेले क्या गुल खिलाएगा। वह कहते है न कि अकेला चना क्या भाड़ फोड़े। मतलब चीन को भी देर सबेर भारत का समर्थन करना ही पड़ेगा। बहरहाल संयुक्त राष्ट्र में सुधार की प्रक्रिया काफी जटिल है। फिलहाल इसी झुनझुने से दिवाली मनानी चाहिए।
आतंकवाद और पाकिस्तान 
सिक्के के दो पहलू। दोनों के बीच के इस अटूट रिश्ते को चीन को छोड़कर सभी ने जमकर खरी खोटी सुनाई। पाकिस्तान को 26/11 के हमलावरों को कानून के दायरे में लाने और आतंकी ढांचा नष्ट करने की चेतावनी दी गई है। आज की भारतीय विदेश नीति में यह बात बड़ी मायने रखती है कि किसी देश का प्रमुख का भारत दौर बिना पाकिस्तान को सुनाए खत्म नही होना चाहिए। वरना सीधे तौर पर इसे रणनीतिकारों की असफलता माना जाता है।
व्यापार
 मेरे ख्याल से पांचों महाशक्तियों की भारत प्रेम की यह सबसे बड़ी वजह रही है। आज भारत के बाजार में भारी क्षमता है। 450 बिलियन के खुदरा बाजार और 150 बिलियन के परमाणु बाजार पर ज्यादातर देश अपनी लार टपका रहे हैं। साथ ही हमें हमारी ढांचागत सुविधाओं के बेहतर बनाने के लिए भारी निवेश की जरूरत है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविट कैमरून जून में अपनी भारत यात्रा के दौरान 40 अद्योगपतियों का प्रतिनिधिमंडल लेकर आए। दोनों देशों के बीच वर्तमान व्यापार जो 11.5 बिलियन अमेरिकी डालर है, उसे बड़ाकर 2014 तक 24 बिलियन अमेरिकी डालर करने का लक्ष्य रखा गया। बराका ओबामा तो अपने साथ 215 आर्थिक दिग्गजों को लेकर आये थे। क्योंकि वह अपने घर में बढ़ती बरोजगारी दर जो 10 प्रतिशत के आसपास थी, से निपटना चाहते थे। वह सफल भी हुए तकरीबन 54 हजार नौकारियां जो ले गए। साथ ही दोनों देशों के बीच व्यापार वर्तमान 37 से बड़ाकर 2015 तक 75 बिलियन अमेरिकी डालर करने का लक्ष्य तय किया गया। फ्रांस और रूस के साथ भी व्यापार बड़ाने को लेकर सहमति बनी। फ्रांस के साथ 2016 में हमारा व्यपार 16 बिलियन अमेरिकी डालर तक पहुंचेगा जो फिलहाल 8 बिलियन अमेरिकी डालर के आसपास है। जबकि रूस के साथ व्यापार बड़ाकर 2015 तक 20 बिलियन अमेरिकी डालर करने का लक्ष्य है। साथ ही रूस के साथ अब तक 30 बिलियन अमेरिकी डालर की सबसे बड़ा रक्षा समझौता हुआ है। आखिर में चीन जो 400 उद्योगपतियों का प्रतिनिधि मंडल लेकर भारत पहुंचा था। दोनों देशों बीच का व्यापार इस वर्ष 60 बिलियन अमेरिकी डालर को पार कर जायेगा। इसे भी बड़ाकर 2015 तक 100 बिलियन अमेरिकी डालर करने पर समझौता हुआ है।
चीन की यात्रा से नाउम्मीदी 
वेन जियाबाओं की यात्रा से किसी को ज्यादा उम्मीद नही थी। मगर जानकारों की माने तो इस बार भारत ने चीन को एक संदेश देने की जरूर कोशिश की। खासकर स्टेपल वीजा को लेकर। विगत है की चीन लम्बे समय से भारत की घेरेबंदी में जुटा हुआ है। खासकर हमारे पड़ोसी मुल्कों में उसके द्धारा किया जा रहा ढांचागत विकास संदेह के घेरे में है।
कुल मिलाकर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत एक तेजी से उभरती हुई आर्थिक शक्ति है बल्कि ओबामा के शब्दों में उभर गया है। अब बस जरूरत है इस बड़ती विकास दर को सर्वसमावेशी बनाने की।

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