यूपीए सरकार ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में इस बात पर सहमति जताई कि स्वास्थ्य क्षेत्र में जीडीपी का 3 फीसदी तक खर्च किया जाएगा। ऐसा इसलिए की भारत विष्व के उन चन्द देषों में एक है जहां 80 फीसदी स्वास्थ्य सुविधाऐं निजि हाथों में है। सरकार के तहत महज 20 फीसदी है। फिलहाल सरकार ने कुल बजट का स्वास्थ्य क्षेत्र में 2010-11 में 2.3 फीसदी आवंटित किया। आज स्वास्थ्य में केन्द्र और राज्यों का मिलाकर खर्च जीडीपी का 1.06 फीसदी के आसपास है। 2008-09 में यह आंकड़ा 1.02 फीसदी था। ग्रामीण स्वास्थ्य की सेहत सुधारने के मकसद से 2006 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरूआत हुई। 11 वीं पंचवर्षीय योजना में एनएचआरएम योजना में 89478 करोड़ खर्च करने की बात कही गई। लेकिन अब तक इस योजना को केवल 48452.6 यानि 54.2 फीसदी ही मिल पाया। इसी तरह जिला अस्पताल जिसे अपग्रेड करने की बात कही जा रही है उसे 2780 करोड़ के मुकाबले पहले चार सालों में महज 284 करोड़ यानि 10.2 फीसदी ही आवंटन हुआ है। मानव संसाधन की कमी को पूरा करने के लिए तय बजट का 9.9 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में रह रहे लोगों के स्वास्थ्य बीमा के लिए 40.01 फीसदी का ही आवंटन किया गया है। इन दोनों मदों में 2007-2012 तक 4000 करोड़ और 4495 करोड़ खर्च किए जाना था। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के आने के बावजूद गांवों में डाक्टरों नर्सो और पैरामेडिकल स्टाफ का भारी टोटा है। बहरहाल मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया ने कुछ बदलाव किए है। मसलन शिक्षक छात्र अनुपात संख्या 1ः1 की जगह 1ः2 कर दी है। अस्पताल बनाने के लिए जमीन की उपलब्धता की सीमा को घटाकर आसान कर दिया है। लिहाजा ज्यादा बजट आवंटन के साथ गांवों की सेहत को सुधारने के लिए सरकार को अभी एक लंबा रास्ता तय करना है।
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