बुधवार, 2 मार्च 2011

कौन चाहता है चुनाव सुधार


चुनाव सुधार पर बहस लगभग तीन दशक से ज्यादा पुरानी है। सरकारों के पास सिफारिशों की एक लम्बी फेहरिस्त है। मगर जनप्रतिनिधित्व काननू 1951 में बदलाव करने की जहमत किसी ने उठाई। सुधारों की वकालत हर दल की जुबां पर है मगर सवाल यह की इसे जमनी पर उतारने में इतना वक्त क्यों। जबकि इसके लिए आधा दर्जन से ज्यादा समितियों का गठन किया गया है।
1975 तारकुण्डे समिति
1993 एनएन वोहरा समिति
 दिनेष गोस्वामी समिति
2001 इंद्रजीत गुप्ता समिति
विधि आयोग की एक 170वी रिपोर्ट
विधि मंत्रालय से जुड़ी स्थाई समिति की रिपोर्ट
इसके अलावा चुनाव आयोग सुधारों से जुड़ा 22 सफरिशों का पुलिंदा सरकार को सौंपा है। साथ ही आज जो जनप्रतिनिधियों के बारे में हम जानकारी जान पाते है उसके पीछे की वजह सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश हैं। सरकार के सामने इस समय चुनाव सुधार को लेकर जो मुख्य चुनौतियां हैं। उनमें प्रमुख हैं।
राजनीति में बड़ते  अपराधीकरण पर रोक कैसे लगाई जाए
चुनाव में हो रहे बेतहाशा पैसों पर कैसे रोक लगाई जाए
चुनाव के दौरान गिरता मतदान प्रतिशत के पीछे क्या वहज है
क्या मतदान को अनिवार्य मतदान बना देना चाहिए
क्या दो जगह से दावेदारी पर रोक लगनी चाहिए
आयाराम गयाराम पर लगाम कैसे लगे।
और जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार
बहरहाल  चुनाव सुधारों के लेकर देश के कई कोनों पर जनमत मंथन चल रहा है। विधि मंत्री की मानें तो इसके बाद एक व्यापक सुधारों से जुड़ा विधेयक जल्द सदन में पेश किया जायेगा।

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