शनिवार, 12 मार्च 2011

मिशन विश्वकप। आखिर क्यों हारा भारत दक्षिण अफ्रिका से


आखिर क्यों हारा भारत दक्षिण अफ्रिका से।
कल की हार के पांच बड़े कारण।
पहला- बल्लेबाजी क्रम में छेड़छाड की कोई जरूरत नही थी। आपका रन औसत सात के पार था। लिहाजा विराट की जगह यूसूफ को भेजने का निर्णय गलत साबित हुआ। धौनी पहले यह गल्ती इंग्लैंड के साथ भी कर चुके हैं। यह पर ध्यान देनेे की बात है कि विराट बहुत ही सूझबूझ के सथ खेलता है और जरूरत पड़ने पर वह बड़े शाट लगा सकता है।
दूसरा- सबसे बड़ी गलती तीन पेसर के साथ उतरना। धोनी ने अब तक अश्विन को मौका नही दिया है। यह जानते हुए की पीयुष चावला कुछ खास नही कर पा रहे हैं। मेहमान टीम आपके औसत तेज गेंदबाजों को खेलने में सक्षम है। उन्हें मुश्किल में सिर्फ स्पीनर डाल सकते है। इसलिए अश्विन को टीम में लेना एक बेहतर निर्णय साबित होता।
तीसरा- दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाजों को आखिरी ओवर कराने के लिए नेहरा को चुनना। नेहरा को लगातर आ बैल मुझे मार वाली कहावत चरितार्थ हो गई। नेहरा की पहली ही गेंद में ऐज लगकर बात सीमा रेखा के बाहर चली गई। तेज गेंदबाजों के साथ यह खतरा बरकरार रहता है। यह बात समझ में तब आती जब श्रीलंका के कप्तान संगकारा मलिंगा से आखिरी ओवर इस परिस्थिति में कराते। मगर धोनी का नेहरा को चुनना समझ से परे था। आखिरी ओवर दूसरा हमारे खिलाडियों कोई मलिंगा नही हैं जो जब और जितनी मर्जी चाहे यार्क लेंग्थ की गेंद फेंक सकते हैं। सबसे सही फैसला होता हरभजन सिंह का चुनना और उनका एक ओवर बाकी था। साथ ही वह अच्छी लय में दिख रहे थे। उपर से दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाज स्पीनर को खेलने में इतने माहिर नहीं जितना की उन्होंने नेहरा को खेला।
4था- बैटिंग पावरप्ले लेने की टाइमिंग। किसी भी मैच में जब आपका रन औसत 7 के आसपास हो तो पावरप्ले को 46वें ओवर में ही लेना चाहिए। ऐसा इसलिए की आपका रन औसत शानदार है। दूसरा आपके विकेट आपके पास है। तीसरा आपके पास युसूफ युवराज और धोनी जैसे विस्फोटक बल्लेबाज हैं। यानि आखिर के पांच ओवर में यही लक्ष्य रहता की जो भी रन मिला जाए वही बेहतर हैं।
पांचवा- एकदिवसीय मैचों में यह कहावत बड़ी आम है। पकड़ों कैच जीतों मैच और छोड़ो कैच हारो मैच। युवराज और गंभीर ने जो साधारण से कैच छोड़े उससे भी टीम को नुकसान पहुंचा। नुकसान कितान हो सकता है इसका उदाहरण कामरान अकमल का रौस टेलर का कैच छोड़रा
बहरहाल इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रिका जैसी टीमों के खिलाफ हार की एक बड़ी वजह रणनीति का खामी थी। दूसरी बात इसे आप मिथ कह सकते हैं। ज्यादातर मैचों में जहां सचिन ने शतक बनाया है वहां भारत को हार का सामना करना पड़ा है। हालांकि डेल स्टेन के उपर जो आक्रमण की रणनीति थी वह कामयाब दिखी। डेल स्टेन अपने पहले स्पैल में सचिन और सेहवाग से भयभीत दिखे। मगर अपने दूसरे स्पेल में इस खिलाड़ी ने पांच विकेट लेकर भारत के मजबूत नींच की कब्र खोद दी। क्षेत्ररक्षण में सुधार दिखा। मगर युवराज और गंभीर ने साधारण से कैच छोड़ दिए। कुल मिलाकर विश्व विजेता बनने का सपना देखने वाले भारतीय खिलाड़ियों को आगे आने वाले मैचों में सजग रहना होगा। आर अश्विन को टीम में जगह दी जाए। वह गेंद के साथ बैट से भी अच्छा साथ निभा सकते हैं। भारत ने अब तक चार मैच बंग्लादेश, इंग्लैंड, आयरलैंड, नीदरलैंड और साउथ अफ्रिका के साथ मैच खेलें है। इन सारे मैचों के देखकर कहीं भी ऐसा नही लगता कि यह टीम विश्वविजेता बन सकती हैं। खासकर बंग्लादेश आयरलैंड और नीदरलैंड जैसी टीमों से जीतने के लिए हमें जमकर पसीना बहाना पड़ा। भारत क्वाटर फाइनल में जगह बना चुका है। मगर इस तरह की गल्ती दोहराना मानों आ बैल मुझे मार वाली कहावत को चरितार्थ करना होगा। लिहाजा इस टीम के लिए एक ही मंत्र है। पिछली गल्तियों से सीखों और हर नए दिन में एक नयी सोच के साथ एक नई शुरूआत करों।

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