रविवार, 13 मार्च 2011

राशन गरीब का, चांदी नेता और अफसरों की


भारत में गरीबों को सस्ता राशन मुहैया कराने की एक मात्र सरकारी योजना सार्वजनिक वितरण प्रणाली। इसके तहज देश के 6.52 करोड़ जिसमें 2.43 करोड़ अति गरीब है परिवारों को सस्ता राशन मुहैया कराया जाता है। सरकार की आर्थिक समीक्षा के मुताबिक 52 फीसदी पीडीएस का खाद्यान्न काले बाजार में बिक जाता है। इसका मतलब सरकारें चाहे वह केन्द्र हो या राज्य सब की सब निकम्मी रही है कालाबाजारी रोकने में। लिहाजा सस्ते राशन बांटने के ढोल पीटने की नैतिकता यह खो चुके है। कितनी शर्म की बात है कि 52 फीसदी अनाज खुले बाजार में बिक जाता है। मगर सरकारों के पास शिकायतें महज मुठठी भर दर्ज होती है। क्योंकि सारा खेल नेताओं और अफसरशाही की आड़ में होता है। इसलिए कोई भी मामला दर्ज नही हो पाता। सरकारों के नुमाइंदे चाहे वह खाद्य मंत्री हो या खाद्य सचिव दिल्ली के विज्ञान भवन में आकर वितरण प्रणाली में सुधार पर माथापच्ची करते है। जबकि इस खेल के सबसे बड़े या कहें कि इस खेल का सबसे बड़ा हिस्सा इनकी ही झोली में जाता है। कहने का मतलब है चोरों से चोरी रोकने पर चर्चा होती है। अगर श्किायतों पर अगर गौर किया जाए तो 2007 में 99, 2008 में 94, 2009 में 169 और सितंबर 2010 तक 142 शिकायतें पूरे देश में दर्ज हुई। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब मामले ही दर्ज नही होंगे तो कारवाई क्या खाक होगी। मेरा मानना है कि इस व्यवस्था में एक दिन में बदलाव आ सकता है। बस जरूरत है कुछ ठोस उपाय करने की।
1-सस्ता गल्ला की दुकानों को जल्द ही कम्पयूटीकृत कर दिया जाए। साथ ही इनकी दुकानों का खुलने का दिन व समय निश्चित हो।
2-जरूरत मंदों को स्मार्ट कार्ड उपलब्ध कराए जाए।
3- हर राज्य की राजधानी में एक केन्द्रीय व्यवस्था का निर्माण किया जाए ताकी कोई भी कहीं से भी पीडीएस से जुड़ी जानकारी प्राप्त कर सके।
4-हर जिले में शिकायत निवारण की व्यवस्था की जाए।
5-चावल, गेंहू ,चीनी, दाल और तेल को खुले के बजाय सील पैकेट में दिया जाए।
6-खाद्यान्न ले जाने के लिए परिवहन नीति को कठोर और स्पष्ट बनाया जाए।
7-पीडीएस की ढुलाई करने वालें टकों को सफेद रंग कर दिया जाए ताकि कालाबाजारी के समय आसानी से इसे चिन्हित किया जा सके।
8-इसके परिवहन से जुड़े ठेकेदारों के चयन के लिए विशेष प्रावधान किया जाए। मसलन कालाबाजारी की सजा 10 साल। खास बात कोर्ट को इस मामले के निपटारे में 1 साल से ज्यादा न लगे।
इसके अलावा कुछ अहम सवाल जिनके जवाब सियासतदानों को ढूंढने होंगे। क्या आज तक किसी खाद्य मंत्री को कालाबाजारी के चलते जेल की हवा खानी पड़ी है। जबकि यह तथ्य किसी से नही छिपा कि कालाबाजारी से कमाई गई रकम के सबसे बड़े हिस्सेदार यही होते है।
क्यों आज तक एक भी खाद्य सचिव को सजा नही हुई।
क्यों जिलापूर्ति अधिकारी को जवाबदेही नही बनाया गया। क्यों किसी बाबू के गले में रस्सी पहनाकर मामले को रफा दफा कर दिया जाता है। इस व्यवस्था को न सुधारने के पीछ हमारे नेताओं का सबसे बड़ा हाथ है। कौन चाहता है कि इस सरकारी दुधारू गाय का दूध मिलना बंद हो जाए। उदाहरण के तौर पर अब तक 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा फर्जी राशन कार्ड निरस्त किए जा चुके है। अकेले दिल्ली यानि देश की राजधानी में एक महिला के नाम 801 राशन कार्ड जारी किए गए। सवाल आज मंशा का है और वह भी ऐसे समय में जब हम खाद्य सुरक्षा विधेयक पर मंथन कर रहे है। हालात आज कुछ ऐसे ही हैं
निश्चित है दौर तबाही है,
शिशे की अदालत में पत्थर की गवाही है।
इस दुनिया में कहीं ऐसी तफशील नही मिलती ,
कातिल ही लुटेरा है कातिल ही सिपाही है।

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