पांचवें दिन हम फिर उसी जगह पहुंचे। मगर जंगल बिलकुल शांत था। कहीं कोई आवाज नहीं, कोई हलचल नहीं। ऐसा दो ही वजहों से होता है। या तो बाघ आराम फरमाने में मस्त है या फिर शिकार खाने में व्यस्त। बाघ को आराम करने के लिए बिलकुल वीरान जगह पसंद है। यहां किसी की उस पर नजर न पड़े। क्योंकि उसे मालूम है कि उसके दिखने का मतलब है जंगल में कोहराम। इससे उसके आराम फरमाने में खलल पड़ता है। वह शिकार पर भी चुपके-चुपके ही निकलता है। क्योंकि शोर-शराबे के बीच दूसरे जीव सतर्क हो उठते हैं। ऐसे में शिकार उसके पंजों से निकल जाता है। लगभग शाम 6 बजे पूरे 9 घंटे के बाद बाघ हरकत में आया। हम वापिस अपने ठिकाने पर पहुंच चुके थे। हमारी बाघ की तलाश पूरी हो चुकी थी। मगर हमारी कथा के तीन महत्वपूर्ण सवालों के जवाब जानने अभी बाकी थे। पहला बाघ की गणना की पद्धति क्या है? दूसरा बाघ और आदमी के बीच टकराव क्यों बढ़ रहा है और तीसरा काॅर्वेट नेशनल पार्क ने बाघों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए हैं? हमारे देश में बाघों की गणना के लिए ‘पगमार्क पद्धति’ यानी उसके पंजों के निशानों की गणना अपनाई जाती रही है, मगर अब इसके लिए उन्नत तकनीक का प्रयोग होने लगा है। इसे कहते हैंµ‘कैमरा टैपिंग’। इसके लिए जगह-जगह पेड़ों में एक निश्चित ऊंचाई पर कैमरे लगा दिए जाते हैं। इन कैमरों में सेंसर लगे होते हैं। जैसे ही बाघ यहां से गुजरता है, उसकी तस्वीर इस कैमरे में कैद हो जाती है।
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