जमीन अधिग्रहण और पुर्नवास विधेयक 2011 को लेकर सरकार ने जनता से सुझाव मांगे है। सरकार का जो नया प्रारूप सामने आया है उससे उम्मीद जरूर बंधती है। बहरहाल यह तेजी तब आई जब न्यायपालिका अधिग्रहण के तौर तरीकों को लेकर सख्त हुई। जिसका ताजा उदाहरण है नोएडा एक्सटेंषन । मौजूदा प्रारूप के मुताबिक सरकार तीन फसली या सिंचित जमीन का अधिग्रहण नही करेगी। इमरजेंसी क्लाज का इस्तेमाल दुर्लभ से दुर्लभतम स्थिति में किया जाएगा। 80 फीसदी किसानों की रजामंदी के बाद ही सरकार निजि करोबारियो के लिए जमीन अधिग्रहण करेगी। इसके लिए शहरी हलाकों में मुआवजे की रकम जमीन के बजार भाव से दुगनी होगी जबकि ग्रामीण इलाकों में यह रकम 6 गुना होगी। साथ ही इस प्रारूप में पुर्नवास से जुड़े कई प्रावधान जोड़े गए हैं। मसलन जमीन मालिकों के लिए रोजगार का प्रावधान। ऐसे लोग जिनकि आजीविका उक्त जमीन पर टिकी है। ऐसे परिवारों के 20 साल तक 2000 रूपये दिए जाने का प्रावधान है। अगर अधिग्रहण शहरीकरण के लिए किया गया है तो 20 फीसदी विकसित जमीन जमीन मालिक को वापस दी जाएगी। प्रारूप में यह भी कहा गया है कि आदिवासी समुदाय ज्यादा मुआवजे के हकदार होंगे। अगर 100 एकड़ से ज्यादा जमीन अधिग्रहित की जायेगी तो इसका सामजिक प्रभाव आंकलन करना जरूरी होगा। किसान की शिकायतांे के निपटान के लिए प्राधिकरण का गठन जैसे तमाम बदलावों की बात कही जा रही है। यह इसलिए भी जरूरी है कि किसान का जमीन से पेट के अलावा भावानात्मक और सांस्कृतिक रिश्ता भी है। फिर देश में सिंगुर और नोएडा एक्टेंषन जैसे घटनाक्रम दुबारा न हेा इसके लिए 117 साल पुराने कानून के स्वरूप को बदले जाने की सख्त दरकार है।
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