संसदवाणी के स्वर से मैं मूक बधिर कहलाता हूं।
लोकतंत्र की हर घटना को जनमानस में लाता हूं
खोद रहा हूं बुनियादें! मै! पत्थर को पाने को
उस दीपक को हाथ लिये, मैं! ढूंढ रहा तहखाने को
मैं वो अजगर देख रहा जो माल शौक से खाते है।
देश के टुकडे-टुकडे करने में भी नही लजाते है!
हर चैनल में गुत्थम-गुत्था , कीचड़ मुंह में फेंक रहे है!
महंगाई की आग लगाकर रोटी अपनी सेक रहे हैं।
चैनल भी मजबूर हुए है इनकी शक्ल दिखाने को
तैयार खड़ा है राष्ट्रदोह भी राष्ट्रगीत को गाने को
हम तो इनकी भाव-भंगिमा जनता को दिखलाते हैं।
लोकसभा भी बोल रही ,क्या नेताओं की बातें हैं।
राजनीति के कटुसत्य को संसदवाणी बोल रही
भ्रष्टाचारी की पोल-कपोल को संसदवाणी खोल रही।
ये संसद की वाणी है जो राष्ट्र-वाद पर जीती है
संसद की वाणी की खबरों में सच्चायी परिणीति है!!
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