बीते कुछ सालों में कैग सूर्खिया में रहा। उसकी रिपोर्ट पर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा मचा। सरकारी धन के दुरूपयोग से पर्दा उठा। नितियों को लागू करने से होन वाले अनुमानित नुकसान ने देश को हिला कर रख दिया। 2 जी और कोलगेट पर आई रिपोर्ट ने तो सरकार की चूलें हिला दी। नतीजा अनजान सीएजी का नाम हर जुंबा पर सुनाई देने लगा।
कैग का काम
दरअसल कैग जैसी संवैधानिक संस्थाओं काम काम जनता के पैसों की निगरानी करता है। मसलन
क्या जनता का धन सही जगह खर्च हो रहा है?
क्या सही व्यक्ति तक इसका लाभ पहुचं रहा है?
क्या अपनाई गई नीतियों जनहित में है?
क्या इन नीतियों को से सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ है। इन सभी मामलों की कैग बारीकी से जांच करता है। रिपोर्ट संसद में पेश की जाती
है। लोकलेखा समिति इस पर दिमाग लड़ाती है। या कहें की कैग की रिपोर्ट का पीएसी आडिट करती है। अब पीएसी की रिपोर्ट संसद में पेश
की जाती है। इसके बाद सरकार को इस पर कार्यवाही करनी पड़ती है?
कैग का काम
दरअसल कैग जैसी संवैधानिक संस्थाओं काम काम जनता के पैसों की निगरानी करता है। मसलन
क्या जनता का धन सही जगह खर्च हो रहा है?
क्या सही व्यक्ति तक इसका लाभ पहुचं रहा है?
क्या अपनाई गई नीतियों जनहित में है?
क्या इन नीतियों को से सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ है। इन सभी मामलों की कैग बारीकी से जांच करता है। रिपोर्ट संसद में पेश की जाती
है। लोकलेखा समिति इस पर दिमाग लड़ाती है। या कहें की कैग की रिपोर्ट का पीएसी आडिट करती है। अब पीएसी की रिपोर्ट संसद में पेश
की जाती है। इसके बाद सरकार को इस पर कार्यवाही करनी पड़ती है?
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