संसद सत्र का दूसरा दिन। रक्षा मंत्री उत्तराखंड में आई महाप्रलय और उसके बाद भारत सरकार के बचाव और पुनर्वास से जुड़े कार्यो से जुड़ा एक वकतव्य सदन में देंगे। भोजन के अधिकार विधेयक पर चर्चा की संभावना है। देखिए कितना दिलचस्प है कि 70 के दशक से हमने गरीबी हटाओं योजना का सिंहनाथ किया। आज 4 दशक बात भी हम दो तिहाई आबादी को खाद्य सुरक्षा सस्ता चावल, गेंहू और मोटा अनाज क्रमशः 3, 2 और 1 रूपये में दे रहे हैं। गरीबी का जब गांव में 27.20 पैसे और शहर में 32.30 पैसे के आधार पर आंकलन किया जा रहा है तब यह हाल है। वाधवा समिति की सिफारिश यानि की 100 रूपये प्रतिदिन को अगर मान लिया जाए तो क्या होगा? इससे भी ज्यादा जरूरी भारत सरकार बिना तैयारी के यह आर्डिनेंस लाई है। मौजूदा सावर्जनिक वितरण प्रणाली के सहारे इसे लागू करना जनता की गाड़ी कमाई को बर्बाद करना होगा। क्या सरकार के पास इन पांचसवालों का कोई जवाब है? पहला कौन गरीब और कितने गरीब? दूसरा अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जा रहा हैं? तीसरा अनाज के रखरखाव की तैयारियां क्या है? चैथा भ्रष्ट वितरण प्रणाली में क्या आमूलचूल परिवर्तन क्या कर लिया गया है? पांचवा और आखिरी अर्थव्यवस्था एक ऐसे मुहाने में खड़ी है की बीते 10 सालों में सबसे कम विकास दर 5 फीसदी के आसपास हम हासिल कर पाऐंगे? ऐसे स्थिति में 1 लाख करोड़ से सालाना ज्यादा का प्रावधान कहां से होगा? अब आप तय करिये, यह फूड सिक्यूरीटी बिल है या वोट सिक्यूरीटी बिल?
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