बिहार में जनता परिवार और एनडीए आमने सामने होंगे। या यूं कहिए कि अवसरवाद की राजनीति के धुरंधर जनता से विकास के नाम पर वोट मागेंगे। लालू के जंगलराज के लाफ लड़ने वाले नीतीश कुमार अचानक उनके अनुज बन गऐं हैं। दिल मिले हो या नही मगर मजबूरी ने मिलने को बाध्य कर दिया। बीजेपी के लिए बिहार का दंगल साख का सवाल है। चूंकि दिल्ली की ऐतिहासिक हार के बाद एक और हार का मतलब उससे बेहतर भला कौन जान सकता है? बीजेपी में मोदी से खार खाए कई नेता मौके का इंतजार कर रहें हैं। इसमें कोई दो राय नही की नीतीश ने बिहार में बदलाव की कोशिश की थी। मगर बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद वो अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहे। मांझी, पासवान और कुशवाहा एनडीए के घटकदल हैं। पप्पू जुड़ने की तिकड़म पर काम कर रहें हैं। मगर बिहार का दंगल राजनीतिक दलों के साथ साथ कई नेताओं के राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा। सवाल यह कि क्या अवसरवाद की राजनीति करने वाले नेताओं को जनता सबक सिखाएगी?
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