भारत सुरक्षित हाथों में है। हुक्मराम ऎसा कहते हैं। मुंबई हमलों के बाद कहा था। पठानकोट हमले के बाद भी यही दोहरा रहें है। मगर हर बार चंद आतंकी देश को दहलाने में कामयाब हो जाते हैं। ऎसा क्यों? क्या हमारा सुरक्षा तंत्र इतना कमजोर है। जानकारी होने के बावजूद इनकाउंटर इतना लंबा क्यों चला? आतंकी सीमा के भीतर कैसे प्रवेश कर गए? किसकी नाकामी के चलते इस आतंकी घटना को लेकर सवाल उठ रहें है? खैर जवाबदेही तय करने की रिवायत इस मुल्क में नही है। यहां तो हमले के बाद विधवा अलाप किया जाता है। नेता अपनी सुविधानुसार बयान देते हैं। टीआरपी के आदमखोर पाकिस्तान को खरीखोटी सुनाकर अपना सीना ठंडा कर लेते हैं। कुल मिलाकर बात आई गयी जैसी होती है। मानो अगले हमले का इंतजार कर रहें हो? यह हालात तब हैं जब एनएसजी गरुड़ और वायु सेना के जवान मोर्चे पर हों। यानि पुलिस पर भरोसा करना बेमानी है। अगर अब भी नहीं बदले तो इस मुल्क का क्या होगा राम जाने।
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