क्या आप जानते है कि दुनिया का हर पांचवा बच्चा भारत में रहता है। 22 प्रतिशत बच्चे कम वजन के पैदा होते हैं। 1000 बच्चों में से 50 बच्चे अपने जीवन का पहला साल नही देख पातें यानि बीमारी उन्हें पहले साल में लील लेती है। जब बात 0- से 5 वर्ष तक के उम्र की आती है तो 42.5 फीसदी बच्चे कम वज़न के होते हैं, जबकि जब बात कुपोषण की होती है तो 6 से 35 माह के 79 फीसदी बच्चों में खून की कमी पाई गई। अगर एनएफएचएस 2 की बात करें तो 74 फीसदी बच्चों में खून की कमी पाई गई जब यह आंकड़ा बढ़कर एनएफएचएस में बढ़कर 79 फीसदी हो गया। सवाल उठता है की सरकार द्धारा इस कुपोषण मुक्त कार्यक्रम में भारी खर्च के बावजूद यह आंकड़ बड़ कैसे गया। जब बात गांव और शहरों की आती है तो गांव में यह आंकड़ा 81 फीसदी है। बहरहाल सरकार ने स्टेट न्यूर्टीशनल काउंसिल और स्टेट
न्यूर्टीशन एक्शन प्लान जैसे कार्यक्रम के जरिये कुपोषण से लडना चाहती है। जन्म देने वाली मां अगर कमजोर रहेगी तो बच्चा कैसे स्वस्थ होगा। देश में 36 फीसदी महिलाऐं किसी न किसी बीमारी का शिकार है। जबकि 56.2 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है। भारत में 11 से 18 साल की युवतियों की संख्या 8.32 करोड़ यानि कुल आबादी का 16.7 फीसदी है। इसमें 2.75 करोड़ यानि 33 फीसदी कुपोषण का शिकार हैं। जबकि 56 फीसदी युवतियों में खून की कमी पाई गई। 1 से 10 कक्षा में पढ़ रहे 63.5 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई पूरी करने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं। देश में 15 से 19 साल की 50 प्रतिशत लड़कियां कुपोषण का शिकार हैं। जहां तक सरकार द्धारा इस समस्या से निपटने के लिए चलाए जा रहें कार्यक्रमों की बात है तो महिलाओं खास कर गर्भवती महिलाओं के लिए आइसीडीएस यानि एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम आंगनवाडी के जरिये चलाया जा रहा है। इसके अलावा आरसीएस, जननी सुरक्षा योजना, राष्टीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, इंदिरा गांधी मातृृत्व सहयोग योजना, एकीकृृत बाल संरक्षण कार्यक्रम, राजीव गांधी नेशनल क्रेच स्कीम, स्वच्छ भारत , ग्रामीण शुद्ध पेयजल योजना, मीड डे मील सर्व शिक्षा अभियान, किशोरी शक्ति योजना और खाद्य सुरक्षा कानून जैसे दर्जनों कार्यक्रम है। सवाल उठता है इतने कार्यक्रमों में हजारों लाखों करोड़ खर्च करने के बाद माताओं में खून की कमी और बच्चे कुपोषित क्यों है। सरकार मेक इन इंडिया, स्क्लि इंडिया, क्लिन इंडिया और डीजीटल इंडिया पर काम करे मगर कुपोषित भारत के चलते यह सपने बेकार हैं।
Sir apki debate dekhi kisaano pr.Dekhkr acha lga ki humare desh me patrakarita jeevit hai ab bhi.Aapne sbhi ko bolne ka pura mauka and unhe yaad bhi dilaya ki apni seema me rehkr wo kisano k lye kya kya kr skte the.Humara elite ENGLISH SECTION which feels watching english debates in which the anchor puts words in mouth of debaters must be seen to gain KNOWLEDGE,I want to say to them that THIS IS CALLED BEING AN ANCHOR AND CONDUCTING A HEALTHY DEBATE which really raises the issue.
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