बुधवार, 3 मार्च 2010
अर्थशास्त्र बनाम राजनीति
इन दिनों अर्थशास्त्र और राजनीति आमने सामने है। मसला है तेल के दामों का बड़ना। राजनीति इसे पचा नही पा रही है वही अर्थशास्त्र मुस्कुरा रहा है कि कमसे से कम इस बार उसे राजनीति का शिकार नही होना पडेगा। अहम सवाल क्या हमेशा अर्थशास्त्र को राजनीति के चाबुक से हांका जायेगा। यहां राजनीति भी बेशर्म है। बिना किसी ठोस प्रमाण के हमेशा अर्थशास्त्र को चुनौति देती फिरती है। कभी महंगाई का हव्वा बनाकर तो कभी आम आदमी का ढोल पीटकर । मगर अर्थशास्त्र इस बार फुल तैयारी के साथ मैदान पर है। सिफारिशों के एक लम्बी फेहरिस्त अपने साथ लेकर वो मैदान में आ डटा है। रंगराजन और कीरीट पारीख समिति उसका केस पहले ही मजबूत कर चुके है। बचा खुचा काम 13वें वित्त आयोग ने यह कहकर पूरा कर दिया कि सिब्सडी सुधार पर सरकार को हर हाल में आगे बड़ना होगा। यही कारण है अर्थशास्त्र इस बार अपने को किसी के पैरों तले नही रूदवाने देगा। तभी तो सरकार के बजट में बढते राजकोशीय दबाव का डर दिखालकर अपना खेल दिखा रहा है। दांव ऐसा चला है की पूरे विपक्ष को एकजुट होने का मौका दे दिया । यहां तक की सरकार सर्मथकों का भी मुंह बनवा दिया। मगर साथ ही इलाज की ओर भी इशारा कर दिया । अरे इलाज कैसा भाई। लालू भले ही ‘ारद यादव से हाथ मिलाले मगर नीतिश को आंख दिखाना थोड़े ही भूलेंगे। क्या माया मुलायम के बीच प्रेम के फूल खिल सकते है। इतना ही नही ममता दीदी की कमजोर नस भी उसके पास है । बिना हाथ के पिश्चम बंगाल में ममता दीदी का मुख्यमन्त्री बनने का सपना कैसे पूरा होगा। डीएमके की तो छोडिए, सिर्फ विरोध के नाम पर विरोध हो रहा है। सीरीयसनैस नही है भाई। यानी ‘ातरंज की बिसात पर इस बार सारे दांव अर्थशास्त्र चलेगा। और राजनीति छाती पीटपीट कर देखती रह जायेगी। सबसे बडा सच बात निकली है, तो दूर तलक जायेगी।
wow....kya bat hai. Shatranj ki bisat per is bar sare danv sirf aur sirf Arthshastra chalega...rajneeti chhati peetati rah jayegee aur wakai bat nikalee hai to door talak jayegee....likhte rahen bhai....bahut lamba safar karna hai..shubhkamnaon ke sath
जवाब देंहटाएंbahut khoob
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