सोमवार, 19 जुलाई 2010

खाद्यान्न सुरक्षा की चुनौतियां और समाधान

सरकार का वादा है भूख से लडने का। गरीब को रोटी मुहैया कराने का। बकायदा इसके लिए कानून लाने का । कानून का नाम होगा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून। बीते एक साल से इस कानून पर मन्थन जारी है मन्त्रीयों के समूह के बाद और राष्ट्रीय सलाहाकार परिशद में इस कानून पर चर्चा हो रही है। उम्मीद की जा रही है देश में सबसे बडी पंचायत में यह विधेयक जल्द आयेगा। भूखे पेट को भोजन की गारंटी। यानि प्रत्येक गरीब परिवार हर महिने 3 रूपये किलो की दर से 25 किलो गेहूं या चावल पाने का अधिकार मिल जायेगा। कांग्रेस का लोकसभा चुनाव के दौरान किया गया है महत्वपूर्ण वादा है। गेहूं और चावल कितनी मात्रा में दिया जाए। कौन से लोग इसे पाने के अधिकारी होगें। क्या कुछ नए उत्पादों को इसमें शामिल किया जायेगा और आखिर में जरूरतमन्दों तक इसकी पहुंच कैसे बनाई जाए। सरकार इस कानून को लागू करने से पहले पीडीएस की खामियों केा भी दूर कर लेना चाहती है। ताकि गरबी के दरवाजे तक निश्चित मात्रा में राशन पहुंचाने का उसका सपना पूरा हो सके। जरा सोचिए जिन परिवारों की राते भूखे पेट गुजरती है, उनके लिए इस कानून के क्या मायने है। मगर कानून बनने के बाद देश से क्या भूखमरी मिट जायेगी। दरअसल गरीब कौन है। गरीब कितने है। गरीबी मापने का एक आदशZ पैमाना क्या होना चाहिए। कानून लागू करने से पहले इसका जवाब मिलना बाकी है। बड़ती आबादी के लिए रोटी का इन्तजाम करना सरकार का काम है। मगर बिना उत्पादन बड़ाये आखिर यह कैसे सम्भव हो पायेगा। हमारे देश में आजादी के 60 सालों के बाद भी प्रति हेक्टेयर उत्पादकता विकसित देशों के मुकाबले एक तिहाई है। मगर इसके लिए जरूरी है खेती को फायदेमन्द बनाया जाए। वैसे तो सरकार किसानों के लिए कई तरह की योजनाऐं चला रही है, कई तरह की सिब्सडी प्रदान कर रही है।  पिछले कुछ सालों में न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी भारी बढोत्तरी हुई है। मगर किसानों के मुताबिक इन योजनाओं का फायदा उन तक नही पहंच पा रहा है। लिहाजा हर हाल में अनाज का उत्पादन बड़ाना होगा। अच्छा उत्पादन कब बड़ेगा। सीधे सवाल का सीधा जवाब। जब खेती योग्य भूमि बडे़गी। ज्यादा रकबे में खेती होगी। किसान को बीज, खाद और पानी के साथ उत्पाद के बेहतर दाम मिलेंगे।  किसानों को सस्ता कर्ज आसान शतोंZ पर मुहैया कराना होगा। कैसी विडम्बना है कि 60 फीसदी खेती के लिए आज भी आज भी किसान आसमान की तरफ टकटकी लगाये रहता है। अगर अनाज की किसी साल बंपर पैदावार हो भी जाए तो उसे सम्भाले कहां। एक और जहां किसी के पास खाने को अनाज उपलब्ध नही है, वही दूसरी और यह खुले आसमान के नीचे अनजा सड़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में तकरीबन 1 लाख कारोड का अनाज रखरखाव के अभाव में सड़ जाता है। देश में भारतीय खाद्य निगम सबसे बडी भण्डारण संस्था है। एफसीआई की क्षमता 25.7 लाख मैट्रिक टन के आसपास है। जबकि खुले में उसके पास 28 लाख मैट्रिक टन की क्षमता है। हमारे यहां अनाज की आज भी मैनवल हैण्डलिंग की जाती है। जबकि विश्वभर में मैक्नाइज्ड हैण्डैलिंग हो रही है। आज सरकार के पास सबसे बडा मौका है कि गांवों में बनने वाले राजीव पंचायत भवन की जगह गोदाम बनाए जाये ताकि पंचायत स्तर में ही उसके रखरखाव और वितरण की व्यवस्था हो सके। साथ ही इस कदम से सरकार के खाद्यान्न सिब्सडी का बिल भी नीचे आ जायेगा। इससे बडी चुनौति जरूरत मन्दों तक कानून के मुताबिक राशन कैसे पहुंचेगा। फिलहाल यह काम सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से किया जाता था। भ्रष्टचार के दलदल में धंस चुकी इस प्रणाली को दुरूस्त कैेस किया जाए इसके लिए सरकर विचार कर रही है। वितरण के मामले में हमारा अनुभव खराब रहा है। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सरकारी बाबूओं और ठेकेदारों ने दुधारू गाय समझ लिया । नतीजा राशन ज्यादातर गरीबों तक पहंचने के बजाए बाजार में बिक जाता है। इसके सुधार के लिए सरकार को सस्ता गल्ला विक्रेता का लाइसेंस किसी व्यक्ति को देने के बजाय किसी स्वयं सहायत समूह के दिया जाए। साथ ही इसमें दिये जाने वाले कमीशन के लाभाकारी बनाया जाए। इससे जुडे आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 को और कठोर बनाया जाए। इसमें कोई दो राय नही की सरकार एक ऐतिहासिक कदम उठाने जा रही है। मगर जब तक सरकार इन चारों स्तंभों को मजबूत नही करेगी तब तक यह कानून अपने उददेश्य के मुताबिक गरीबों तक नही पहुंच पायेगा। मतलब साफ है कि कानून से पहले इन चार पहलुओं पर गम्भीरता से विचार करना होगा। 
पहला गरीबों की सही पहचान
दूसरा उत्पादन बडाने के उपाय करना
तीसरा भण्डारण की उचित व्यवस्था और
चौथा वितरण प्रणाली को दुरूस्त बनाना।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें