हाल ही में सिक्किम में आए 6.9 तीव्रता वाले भूकंप से भारी जानमाल का नुकसान हुआ। 100 से ज्यादा लोगों को यह भूकंप लील गया, कई लापता है और सैकड़ों घायल है। तकरीबन इस आपदा के चलते 1 लाख करोड के नुकसान का अनुमान है। हाल ही यूएन द्धारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में 2010 की आपदाओं के देखते हुए प्राकृतिक आपदाओं के मददेजर विश्व में दूसरे स्थान पर रखा है। भारत की भोगौलिक क्षेत्र का 59 फीसदी भूभाग भूकंप के लिहाज से संवेदनशील माना जाता है। 38 भारतीय शहर मसलन दिल्ली, कोलकाता, मुबंई, चिन्नेई, पुणे और अहमदाबाद जैसे शहर साधारण से लेकर उच्च तीव्रता वाले भूंकप क्षेत्र में आते है। 344 नगर भूकंप के लिहाज से अतिसंवेदशील क्षेत्र में आते है। एक आंकड़े के मुताबिक 1990 से लेकर 2006 तक 23000 लोग अपनी जान गवां चुके हैं। इसमें लातूर 1993, जबलपुर 1997, चमोली 1999, भुज 2001, सुमात्रा 2004, जिसके बाद सुनामी आई और 2005 में आया जम्मू कष्मीर में आया भूकंप शामिल हैं। इसमें गुजरात के भुज में आए भुकंप में 13800 लोगों की मौत हो गई। आज पूरे विश्व में कहीं कोई ऐसी प्रणाली नही है जो भूकंप से जुड़ी भविष्यवाणी कर सके लिहाजा सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव है। प्राकृतिक आपदा और मानवजनित आपदा से निपटने के लिए केवल बचाव ही एक मात्र रास्ता है। इसी बचाव कार्य को ठोस स्वरूप प्रदान करने के लिए 2005 मे एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून 2005 अस्तित्व में आया। 2006 में इस कानून के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन किया गया। प्रधानमंत्री को इस प्राधिकरण का केन्द्र के स्तर पर अध्यक्ष बनाया गया है, राज्यों के स्तर पर मुख्यमंत्री और जिले के स्तर पर जिलाधिकारी को बनाया गया है। आज हर साल बाढ़, सूखे, भूकंप और जमीन का खिसकना जैसी आपदाऐं आम हैं। जाहिर तौर पर इन्हें रोका नही जा सकता मगर हमारी तैयारियां इसमें होने वाले जानमाल को कम कर सकती है। अभी तक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण मानवजनित आपदा और दैवीय आपदा को लेकर 25 दिशानिर्देश जारी कर चुका है। इसके अलावा राज्य सरकारों को इन स्थितियों ने निपटने के लिए सुझाव भी दिए गए है मगर राज्यों ने इसे गंभीरता से नही लिया। 2009 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति सामने आई जिसमें आपदाओं से निपटने की खाका तैयार किया गया। साथ ही केन्द्र के स्तर चार राष्ट्रीय आपदा रिस्पोंस फोर्स का गठन किया गया है। भारत को भूकंप के लिहाज से चार क्षेत्रों मसल जोन 2 से लेकर जोन 5 में बांटा गया है। जोन 5 को भूकंप के लिहाज से अतिसंवेदनशील माना जाता है। पूर्वोतर के राज्यों के साथ जम्मू कश्मीर उत्तराखंड हिमांचल प्रदेश रण और पश्चिमी बिहर के कुछ क्षेत्र जोन पांच में आते हैं। जोन चार में जम्मू कश्मीर हिमांचल उत्तराखंड के बाकी बचे क्षेत्र के साथ दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ भाग इसमें ष्शामिल है। पिछले 100 सालों में चार महाभयंकर भूकंप से इस देश को दो चार होना पड़ा। इसमें कांगड़ा 1905, बिहार-नेपाल 1934, असम 1950, और उत्तरकाषी 1991 शामिल है। इतनी बड़ी आपदाओं झेलने के बावजूद कोई खास बदलाव हमारी कार्यषैली में नही दिखाई पड़ता।
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