शिक्षा
मुसलमानों में साक्षरता दर 59.1 प्रतिशत है जो कि राष्टीय औसत 64.8 प्रतिशत से कम है।
6 से चैदह उम्र के 25 फीसदी मुसलमान बच्चो ने या तो स्कूल देखा नही या उन्होने छोड़ दिया।
एक बडी तादाद में मुसलिम लडके और लडकियों ने मैटिक की परिक्षा पास नही की या उन्होने इससे पहले ही स्कूल को छोड़ दिया।
4 फीसदी के कम मुसलिम बच्चे गे्रजवेट या डीप्लोमा होल्डर है। जबकि 20 साल के सात फीसदी बच्चे है।
मुसलमानों में लडकियों और महिलाऐं के लिए खासकर ठोस प्रतिबद्धता की जरूरत है।
मस्लिम बहुल इलाके में माध्यमिक स्कूल की तादाद खासी कम है। इसके अलावा लड़कियों के लिए अलग से स्कूल की आवश्यकता है। लडकियों के लिए छात्रावास की भी खासी कमी है।
मुस्लिम अभिभावकों में भौतिक समाज और वर्तमान शिक्षा के प्रतिकूल नही, लेकिन उनके पास विकल्प की खासा कमीं। साथ ही वो अपने बच्चों को मदरसे में पढने देना नही चाहते।
कौशल क्षमता का विकास।
स्कूली शिक्षा नही लेने वाले मुसलमानों केा स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण देना।
कामगारों की बदलती सेवा और तकनीक क्षेत्र के साथ विर्निमाण क्षेत्र के लिए तैयार करना जिन्होने बीच तक की शिक्षा ली है।
भूमंडलीकरण के दौर में कामगारों के कौशल को और अधिक धारदार बनाने के लिए वित्तिय सहायता उपलब्ध कराना।
रोजगार और अधिक मौके।
स्वरोजगार मुस्लिमों की आय का प्रमुख साधन है।
12 फीसदी पुरूष मुसलमान रेहरी पट्टी के काम में जुडे़ हैं जो राष्टीय औसत जो कि 8 फीसदी से भी कम है।
70 फीसदी मुस्लिम महिलाएं घरेलू काम से जुड़ी हैं जो सामान्य 51 फीसदी से काफी ज्यादा है।
इसके अलावा इस समुदाय के बडे हिस्से के लोग बीड़ी उद्योग और गारमेन्ट्स से जुड़े है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें