मंगलवार, 29 नवंबर 2011

सूचना का अधिकार कानून 2005


सूचना का अधिकार कानून  को लागू हुए 6 साल बीत गए है। यह कानून भारत में 13 अक्टूबर 2005 में लागू हुआ। अपने अस्तित्व में आने के बाद इस कानून ने पारदर्शिता और जवाबदेही की एक नई इबारत लिखी। देष में भ्रष्टाचार को रोकने और समाप्त करने में इस कदम को बहुत प्रभावी कदम के तौर पर देखा जा रहा है। यह कानून आम नागरिकों को सभी सरकारी रिकार्डो और प्रपत्रों में दर्ज जानकारी को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार देता है। आम आदमी से सरोकार रखने वाली योजनाओं, नीतियों और कार्यक्रमों में क्या चल रहा है इसकी जानकारी पाने का हकदार आज हर नागरिक है। मगर गंभीरता के अभाव आज कानून की धार को कुंद बना रहा है।
पहला कानून की जानकारी का आम लोगों के बीच अभाव।
2009 में हुए एक सर्वे के मुताबिक गांव में 13 फीसदी आबादी और षहरों में 33 फीसदी आबादी इस कानून के बारे में जानकारी रखती है। महिलाओं के मुकाबले पुरूषों में इस कानून के लेकर जागरूकता ज्यादा है। बहरहाल सरकार अखबार और टीवी चैनलों के माध्यम से जागरूता बढ़ा रही है।
 दूसरा  मांगी गई जानकारी की गुणवत्ता 
 सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से लोग असंतुष्ट दिखे। सर्वे के मुताबिक इनकी तादाद 75 फीसदी थी।
तीसरा लंबित पड़े मामले
बुनियादी ढांचे और बजट के अभाव में अकेले केन्द्रीय सूचना आयोग में 2009-10 में 19842 और 2010-11  में  24071 शिकायतें लंबित पड़ी हैं।
चैथा व्हिसलब्लोअर्स की सुरक्षा 
सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल का भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले कई सामजिक कार्यकाताओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। बहरसाल सरकार इसी सत्र में इनकी सुरक्षा के लिए कानून लाने जा रही है।सूचना का अधिकार कानून एक क्रांतिकारी कदम है जरूरत है का इसका क्रियान्वयन जमीन पर बेहतर तहत से किया जाए।

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