केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने हाल ही में नई खरीद नीति को हरी झंडी दे दी। इस साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने लालकिले की प्राचीर से भ्रष्टाचार से लड़ने के उपायों की घोषणा करते हुए इस नीति का भी जिक्र किया था। भ्रष्टाचार के मामले में चैतरफा आरोपों से घिरी सरकार के लिए यह राहत की बात है। हमेषा सार्वजनिक खरीद को लेकर विवाद रहते थे। मंत्रियों से लेकर नौकरशाहों तक अपने चहेतों के हितों को साधने के लिए अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग के आरोप लगते रहते थे। सीधे कहें तो सार्वजनिक खरीद में कई सालों से यह तपका अपनी जेब गरम करते आ रहा था। माना जा रहा है अब इसपर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकेगी। इस क्रय नीति में पहली बार लघु छोटे और मझोले उद्योगों की सेहत को भी ध्यान में रखा गया है। सरकार की इस नीति के मुताबिक सरकारी संस्थानों और सरकारी उपक्रमों को अपनी कुल खरीद का 20 फीसदी हिस्सा लघु छोटे और मझोले उद्योगों से खरीदना पड़ेगा। इस 20 फीसदी में से भी 4 फीसदी उन एमएसएमई से जिनका स्वामित्व अनुसूचित जाति और जनजाति लोगों से है। बस इस प्रावधान को लेकर कुछ संगठनों ने दबी जुबान से आपत्ति जताई है। कुछ का कहना है कि यह उत्तर प्रदेष चुनावों से पहले की सियासी बिसात है जिसको साधकर कांग्रेस माया के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने का असफल प्रयास कर रही है। बहरहाल यह प्रयास कितना सफल होता है यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा। मगर आवाम के लिए अच्छी खबर यह है की देर से ही सही एक सार्वजनिक क्रय नीति तो इस देश में आई। इस नीति का लम्बे समय से इंतजार किया जा रहा था। दुनिया में लगभग 50 देशों के पास अपनी क्रय नीति है। हमारे देश में सावर्जनिक क्रय नीति के तहत सालाना 12 से 15 लाख करोड़ की खरीद की जाती है। यह जीडीपी के 15 से 20 फीसदी है। एक अनुमान के मुताबिक स्पष्ट नीति के अभाव में सालाना 20 से 30 फीसदी का नुकसान इस क्रय के चलते होता था। माना जा रहा है इस नीति के लागू होने के बाद इसमें रोक लगेगी। मगर सरकार के लिए मुष्किल कुछ और है। आने वाले दिनों में सरकार को यह मसला गले ही हड़डी साबित हो सकता है। वैसे भी इन दिनों कांग्रेस का कोई भी तीर निशाने में लगने के बजाय उसके जी का जंजाल बन रहें हैं। देश में मौजूद लघु, छोटे और मझोले उद्योग हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे सकल घरेलू उत्पाद यानि की जीडीपी में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 8 फीसदी के आसपास है। इसके अलावा विनिमार्ण क्षेत्र का 40 फीसदी उत्पादन इस क्षेत्र से आता है। 6 करोड़ लोगों को यह सेक्टर रोजगार देता है। साथ ही निर्यात में इसकी भागीदारी 40 फीसदी के आसपास है। कुल मिलाकार यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तंभ है। इस लिहाज से नई खरीद नीति में इस क्षेत्र को प्राथमिकता देना एक अच्छी पहल है। मगर किसी खास जाति के लिए निष्चित प्रावधान करना किसी भी लिहाज से उचित नही है। क्योंकि इससे आने वाले समय में अनावश्यक विवाद पैदा होंगे। मसलन कल मुलायम सिंह इस खरीद नीति में मुस्लिमों के लिए विशेष प्रावधान करने का मुददा उठाये तो क्या होगा। अगर प्रकाश सिंह बादल सिंख समुदाय के लिए प्रावधान करने की बात कहें तो सरकार क्या करेगी। इसी तरह अन्य पिछड़ा वर्ग अपना हिस्सा मांगेगा तो क्या सरकार दे पाएगी। इसके अलावा कल कुछ महिला संगठन महिलाओं के लिए इसमें प्रावधान खासकर जिन उद्योगों का मालिकाना हक महिलाओ के पास है उनसे भी एक निश्चित खरीद की जाए क्या सरकार ऐसा कर पाएगी। आज नही तो कल इन सवालों से सरकारों को दो चार होना ही पड़ेगा। खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कह चुके है की अल्पसंख्यकों का इस देष के संसाधनों में पहला अधिकार है। सच्चर समिति की रिपोर्ट इस बात को साफ कर चुकी है कि देष में आर्थिक शैक्षिक सामाजिक और राजनीतिक तौर पर मुस्लिम बहुत पिछड़ा हुआ है। सवाल उठता है कि क्या इस नई खरीद नीति में उनका हिस्सा नही होना चाहिए। क्या उत्तरप्रदेश में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से यह सवाल नही पूछेगा। इसका जवाब सियासतदानों के पास क्या है। अगर हम लघु छोटे और मझोले उद्योगों पर एक नजर डालें तो आंकड़ों से जाहिर होता है कि किस समुदाय का कितना मालिकाना हक है। इसमें अनुसूचित जाति 7.73 फीसदी, अनुसूचित जनजाति 3.03 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग 38.70 फीसदी है। लगभग 55.55 प्रतिषत कायर्रत इकाइंया सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गो की हैं। इसी तरह अल्पसंख्यक समुदायों की बात की जाए तो लघु छोटे और मझोले उद्योगों में मुस्लिम का मालिकाना हक 10.24 फीसदी, सिख समुदाय का 2.43 फीसदी और ईसाई समुदाय 4.16 फीसदी है। मगर इनके लिए इस नीति में कुछ नही है। लिहाजा सरकार से पूछा जाना चाहिए की इस खरीद में अल्पसंख्यकों का हिस्सा कहां है। खासकर तब जब 2009 के लोकसभा चुनावों में मुस्लिम मतदाता ने बड़े पैमाने में कांग्रेस को वोट दिया।। हो सकता है कि मुलायम सिंह और लालू यादव मुस्लिम मोह में मौके की नजाकत को भांपते हुए इस क्रय नीति में मुस्लिमों को भी आरक्षण देने की मांग कर सकते हैं। इसमें गलत भी क्या है। देश में जाति और धर्म की राजनीति उफान में है जिसका फायदा हर राजनीतिक दल उठाने की फिराक में रहता है। बहरहाल इस क्रय नीति में कुछ अच्छी बातें छिपी हैं जिसका अच्छा असर हमारे लघु छोटे और मझोले उद्योगों की सेहत पर जरूर पड़ेगा। फिलहाल कुल खरीद का 4 से 5 फीसदी ही अभी एमएसएमई क्षेत्र से खरीदा जाता है। अगर यह हिस्सा बढ़ता है तो यह एमएसमई सेक्टर के विकास में अहम भूमिका निभाएगा। मगर यह क्षेत्र आज भी कई आमूलचूल परिवर्तन की बाट जोह रहा है। आज इस सेक्टर को बदलते परिवेश में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिहाज से अपने आप को तैयार करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने इसी के मददेनजर 2009 में एक टास्क फोर्स का गठन किया था। 2010 में इस रिपोर्ट में इस क्षेत्र के लिए कई जरूरी सिफारिशें की गई। यह सिफारिशें कौशल विकास से लेकर नई तकनीक के विकसित करने, ढांचागत विकास और ऋण की आसान सुविधा जैसे मसलों से जुड़ी है। नई क्रय नीति में एमसएसमई के लिए किया गया प्रावधान इस सिफारिश का एक हिस्सा है। भारत के विकास में एमएसएमई क्षेत्र का महत्वता को बनाए रखने के लिए जरूरी है की टास्क फोर्स की सिफारिशों में तेजी से काम किया जाए ताकि नई पौंध इस क्षेत्र की तरफ आकर्षित हो।
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